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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2751
आईएसबीएन :0

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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- अभिप्रेरणा क्या है? खेल एवं शारीरिक शिक्षा में अभिप्रेरणा की आवश्यकता का वर्णन कीजिए।

उत्तर- 

अभिप्रेरणा का अर्थ

प्रेरणा या अभिप्रेरणा शब्द का प्रचलन अंग्रेजी भाषा के मोटीवेशन के समानअर्थी के रूप में होता है। 'मोटीवेशन' शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के मोटम धतु से हुई है, जिसका अर्थ मूव या इन्साइट टु ऐक्शन होता है। अतः प्रेरणा एक संक्रिया है, जो जीव को क्रिया के प्रति उत्तेजित करती है या उकसाती है। प्रेरणा का अर्थ स्पष्ट करने के लिये हमें इच्छाओं और प्रेरकों को स्पष्ट समझना आवश्यक है। जब हमें किसी वस्तु की आवश्यकता होती है, तो हमारे अन्दर एक इच्छा उत्पन्न होती है, इसके फलस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न हो जाती है, जो प्रेरक शक्ति को गतिशील बनाती है।

प्रेरणा इन इच्छाओं और आन्तरिक प्रेरकों तथा क्रियाशीलता की सामूहिक शक्ति के फलस्वरूप है। प्रेरक को जाग्रत करके ऊर्जा तथा इच्छा उत्पन्न होती है, जो व्यवहार के लिये आवश्यक है। उच्च प्रेरणा के लिये उच्च इच्छा चाहिए, जिससे अधिक ऊर्जा उत्पन्न हो और गतिशीलता उत्पन्न हो जाती है। अभिप्रेरणा द्वारा व्यवहार को अधिक दृढ़ किया जा सकता है।

प्रेरणा का सम्बन्ध उन कार्यकलापों से है, जिन्हें मनुष्य अच्छा या बुरा समझता है, जिन्हें वह अच्छा समझता है, उन्हें प्राप्त करने की इच्छा करता है और जिन्हें वह बुरा समझता है, उन्हें दूर करने की इच्छा करता है। प्रत्येक व्यक्ति का ध्येय केवल धन प्राप्ति ही नहीं है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार की चीजें, जैसे - पदोन्नति, चुनाव में विजय प्राप्त करना, अपने सहयोगियों एवं मित्रों से सम्मान पाना आदि सम्मिलित है।

अभिप्रेरणा का व्यापक अर्थ - अभिप्रेरणा के लिए कई शब्दों का प्रयोग किया जाता है। अभिप्रेरणा के कई शब्द ऐसे हैं जो भिन्न-भिन्न अर्थ रखते हैं। इन सभी शब्दों की व्याख्या आगे दी गयी है-

1. प्रेरक - यह प्रेरक के नाम से पुकारा जाता है, यह व्यक्ति के अंदर उपस्थित मनो-शारीरिक दशा को किसी कार्य विशेष के लिए प्रेरित करता है। 

2. प्रणोदन - प्रणोदन का सम्बन्ध शरीर की आवश्यकताओं से है। प्रत्येक मनुष्य की आवश्यकताएँ उसे कार्य करने की प्रेरणा देती हैं। मनुष्य को भूख प्यास लगना इसी का संकेत है।

3. प्रोत्साहन - निश्चित वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति प्रयत्न करता है। इसका सम्बन्ध बाहरी वातावरण से माना जाता है।

4. उत्सुकता - उत्सुकता के द्वारा व्यक्ति किसी कार्य को सम्पन्न करने को अभिप्रेरित होता है। बिना उत्सुक हुए किसी कार्य की सम्पन्नता सम्भव नहीं हैं। उत्सुकता व्यक्ति में अन्वेषण वृत्ति तथा जानने के प्रयास को सफलता की ओर अग्रसर करती है।

5. रुचि - प्रत्येक कार्य में व्यक्ति की रुचि नहीं होती। रुचि सभी की अलग-अलग होती है। अतः रुचि के अनुसार ही व्यक्ति अपनी कार्य की सफलता निश्चित करता है। अतः रुचि प्रेरणा का पर्याय बन जाती है।

6. लक्ष्य - लक्ष्य व्यक्ति को परिणाम के सम्बन्ध में सूचित करता है। इसे व्यक्ति चेतनावस्था में प्राप्त करता है।

अभिप्रेरणा की परिभाषाएँ-

1. फ्रेण्डसन के अनुसार - "सीखने में सफल अनुभव अधिक सीखने की प्रेरणा देते हैं।"

2. गिलफोर्ड के अनुसार - "प्रेरणा एक आन्तरिक दशा या कारक है, जिसकी प्रवृत्ति क्रिया को आरम्भ करने या बनाये रखने की होती है।"

3. गुड के अनुसार - "किसी कार्य को आरम्भ करने, जारी रखने और नियमित बनाने की प्रक्रिया को प्रेरणा कहते हैं।"

4. लावेल के शब्दों में - "अभिप्रेरणा एक मनोवैज्ञानिक या आन्तरिक प्रेरणा है जो किसी आवश्यकता की उपस्थिति में उत्पन्न होती है। यह ऐसी क्रिया की ओर गतिशील होती है जो उस आवश्यकता को संतुष्ट करेगी।"

5. ब्लेयर, जेन्स एवं सिम्पसन - अभिप्रेरणा एक प्रक्रिया है जिसमें सीखने वाले की आन्तरिक शक्तियाँ या आवश्यकताएँ उसके वातावरण में विभिन्न लक्ष्यों की ओर निर्देशित होती हैं।

खेल एवं शारीरिक शिक्षा में अभिप्रेरणा की आवश्यकता - खेल एवं शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में अभिप्रेरणा की आवश्यकता एवं महत्व को निम्नलिखित प्रकार से दर्शाया जा सकता है-

(1) सीखना - सीखने का प्रमुख आधार 'प्रेरणा' ही है। सीखने की क्रिया में 'परिणाम का नियम' एक प्रेरक का कार्य करता है। जिस कार्य को करने से सुख मिलता है, उसे वह पुनः करता है एवं दुःख होने पर छोड़ देता है। यही परिणाम का नियम है। अतः बालक की प्रशंसा करना (माता-पिता, अन्य बालकों तथा अध्यापक) द्वारा भी प्रेरणा का संचार करता है और इस प्रकार वह आगे बढ़ता रहता है, परंतु दंड देने या फटकारने पर वह हताश हो जाता है। आगे के लिए वह निरुत्साहित हो जाता है।

(2) लक्ष्य की प्राप्ति - जिस प्रकार बालक के जीवन का एक लक्ष्य होता है, उसी प्रकार विद्यालय का भी एक लक्ष्य होता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में प्रेरणा की मुख्य भूमिका होती है। ये सब लक्ष्य प्राकृतिक प्रेरकों द्वारा प्राप्त होते हैं। कृत्रिम असफल रहते हैं।

( 3 ) चरित्र निर्माण - चरित्र निर्माण शिक्षा का श्रेष्ठ गुण है। इससे नैतिकता का संचार होता है। अच्छे विचार एवं संस्कार जन्म लेते हैं और उनका निर्माण होता है। अच्छे संस्कार निर्माण में प्रेरणा का प्रमुख स्थान है।

(4) अवधान - सफल अध्यापन के लिए यह आवश्यक है कि छात्रों को अवधान पाठ की ओर बना रहे। कक्षा में छात्र पाठ के प्रति कितना जागरूक है, यह प्रेरणा पर ही निर्भर करता है। प्रेरणा के अभाव में पाठ की ओर अवधान नहीं रहेगा और छात्र मस्तिष्क को केन्द्रित नहीं कर पायेगा।

(5) अध्यापन विधियाँ - शिक्षण में परिस्थिति के अनुरूप कई शिक्षण विधियों का प्रयोग करना पड़ता है। इसी प्रकार प्रयोग की जाने वाली शिक्षण विधि में भी प्रेरणा का प्रमुख स्थान होता है। इस स्थिति में ही पाठ रोचक बनाया जा सकता है और अध्यापन को सफल बनाया जा सकता है।

(6) पाठ्यक्रम - छात्र/छात्राओं के पाठ्यक्रम निर्माण में भी प्रेरणा का प्रमुख स्थान होता है। अतः पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों को स्थान देना चाहिए जो उसमें प्रेरणा एवं रुचि उत्पन्न कर सके, तभी सीखने का वातावरण बन पाएगा।

(7) अनुशासन - वर्तमान युग में प्रत्येक स्तर पर हम अनुशासन की समस्या देख रहे हैं। यदि उचित प्रेरकों का प्रयोग विद्यालय में किया जाए तो अनुशासन की समस्या पर्याप्त सीमा तक हल हो सकती है।

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