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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2751
आईएसबीएन :0

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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- शारीरिक शिक्षा में अभिप्रेरणा पर टिप्पणी लिखिए।

अथवा
शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रेरणा की क्या भूमिका है?

उत्तर-

शारीरिक शिक्षा में अभिप्रेरणा

जीवन का प्रत्येक कार्य किसी न किसी अभिप्रेरणा द्वारा प्रेरित होता है। शरीर की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति से लेकर बड़ी से बड़ी उपलब्धियों के पीछे अभिप्रेरकों के बिना सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को रोचक, आनन्दप्रद और प्रभावशाली नहीं बनाया जा सकता। अन्य अध्यापकों के समान शारीरिक शिक्षक भी चाहता है कि उसके छात्र विभिन्न शारीरिक क्रियाओं में रुचि ले और खेल प्रतियोगिताओं में ऊँची उपलब्धियाँ प्राप्त करे। इसके लिए उसे विभिन्न प्रकार के अभिप्रेरक प्रयुक्त करने होते हैं। मुख्यतः निम्नलिखित मुख्य अभिप्रेरकों द्वारा खिलाड़ियों को प्रेरित किया जा सकता है-

(1) आन्तरिक या व्यक्तिपरक अभिप्रेरणा - आन्तरिक अभिप्रेरणा का मूल स्रोत है अत्मिक आनन्द। जब व्यक्ति आत्मिक आनन्द के लिए काम करता है तो वह आन्तरिक अभिप्रेरणा द्वारा प्रेषित होता है। ऐसे व्यक्ति से यदि पूछा जाए "आप यह काम क्यों कर रहे हैं?" तो उसका उत्तर आयेगा, "इससे आनन्द मिलता है।" खेलों में इस अभिप्रेरणा से बहुत लाभ उठाया जा सकता है क्योंकि बच्चों में खेलने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। बच्चों को जितना आनन्द खेलों से मिलता है उतना अन्य किसी काम से नहीं मिलता है। शारीरिक शिक्षक यदि बच्चों के इस 'आनन्द भाव' को सुरक्षित रख सके तो वह खेलों के प्रति स्थायी रुचि की बुनियाद रख सकते हैं। आन्तरिक अभिप्रेरणा से प्रेरित खिलाड़ी खेल-प्रतियोगिताओं में बिना किसी मानसिक तनाव के भाग लेता है। जीत में उसे घमण्ड नहीं होता और हार से वह हतोत्साहित नहीं होता। परिणामस्वरूप प्रत्येक स्थिति में उसका मानसिक तनाव के बिना भाग लेता है। प्रत्येक स्थिति में उसका मानसिक संतुलन कायम रहता है और मानसिक संतुलन स्वस्थ व्यक्तित्व की बहुत बड़ी विशेषता है जिसे विकसित करना शारीरिक शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य है।

(2) बाह्य या वस्तुपरक अभिप्रेरणा - जब व्यक्ति किसी वस्तु की प्राप्ति के लिए काम करता है तो वह वस्तु उसके लिए अभिप्रेरक बन जाती है। इस प्रकार की अभिप्रेरणा को बाह्य या वस्तुपरक अभिप्रेरणा कहते हैं। खेल में भाग न लेने वाले बच्चे को यदि मिठाई का लालच दिया जाए तो वह खेल में भाग लेने के लिए तैयार हो जाता है। मिठाई उसके लिए अभिप्रेरक है। स्कूलों और कॉलेजों में कई विद्यार्थी शारीरिक क्रियाओं में इसलिए भाग लेते हैं क्योंकि उनको 'रिफ्रेशमेंट' मिलती है। इस प्रकार पुरस्कार, प्रमाण-पत्र, बैजिज, ट्रॉफी आदि खिलाड़ियों को प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हैं। यह सब बाह्य अभिप्रेरक हैं।

बाह्य प्रेरकों को प्राकृतिक प्रेरक नहीं समझा जाता। इसलिए शिक्षाशास्त्री इनकी अपेक्षा आंतरिक- अभिप्रेरणा पर बहुत बल देता है, परन्तु इसके बाह्य प्रेरकों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए कठिन प्रशिक्षण निरंतर अभ्यास और कठोर परिश्रम में से खिलाड़ी तभी गुजरते हैं जब उच्च उपलब्धि के लिए प्रेरित हों। इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि बाह्य अभिप्रेरणा के कारण ही खिलाड़ी खेल में व्यावसायिक निपुणता प्राप्त करके विश्व ख्याति प्राप्त करते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि खेलों में उच्च स्तरीय निपुणता प्राप्त करने के लिए बाह्य-प्रेरकों का अपना एक स्थान है। क्रिकेट, टेनिस, फुटबॉल, हॉकी तथा विभिन्न एथलैटिक क्रियाओं में खिलाड़ी उपलब्धि-लक्ष्य के अभिप्रेरणा से ही विश्व ख्याति प्राप्त कर सकता है।

(3) प्रोत्साहन - वस्तुतः बाह्य-अभिप्रेरक उन खिलाड़ियों को प्रेरित करता है जो खेल को व्यवसाय के रूप में अपनाते हैं। ऐसे खिलाड़ियों के लिए खेल से होन वाली आय भी अभिप्रेरणा से कम नहीं। खेल व्यवसाय में बने रहने के लिए वे कठोर परिश्रम और अभ्यास करते हैं। परन्तु प्रत्येक खिलाड़ी को तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक लाया नहीं जा सकता। इसलिए आन्तरिक अभिप्रेरणाओं को ही अधिक महत्व दिया जाता है। इसके द्वारा ज्यादा से ज्यादा व्यक्तियों की खेल- रुचियों को सुरक्षित रखा जा सकता है। प्रोत्साहन आन्तरिक प्रेरणा की ही विधि है। खेलों में स्वाभाविक रुचि होते हुए भी बच्चों को खेलना सिखाना पड़ता है। बच्चों की मानसिक और शारीरिक योग्यताएँ एक जैसी नहीं होती। इसलिए उनके सीखने की गति और स्तर भी एक जैसी नहीं होता। कई जल्दी सीख जाते हैं और कइयों के सीखने की गति धीमी होती है। कई खेल के मैदान में अच्छे खेल का प्रदर्शन करते हैं और कई आशा के अनुकूल प्रदर्शन नहीं कर पाते। प्रोत्साहन ही एक ऐसी विधि है जो खेलों के प्रति बच्चों की रुचि को सुरक्षित रखते हैं। अच्छा खिलाड़ी अपने कोच या अध्यापक का प्रोत्साहन पाकर और अच्छा खेलने का प्रयास करता है। एक नौसिखिया या धीमी गति का खिलाड़ी प्रोत्साहन पाकर अच्छा खेलने का प्रयास करता है। केवल आन्तरिक- अभिप्रेरणा में ही नहीं बल्कि बाह्य अभिप्रेरणा में भी प्रोत्साहन की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। अतः आन्तरिक - शिक्षकों को प्रोत्साहन द्वारा खिलाड़ियों के मनोबल को विकसित करते रहना चाहिए।

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