बी ए - एम ए >> बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
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प्रश्न- सीखने के आधुनिक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
मनुष्य जन्म से मृत्यु तक औपचारिक व अनौपचारिक रूप से सीखता रहता है। मनोवैज्ञानिकों को यह जानने की इच्छा सदैव रही है कि जीव कब, क्यों, कैसे तथा कितने प्रयास से सीखता है। इसको समझने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने जीवों, पशु और पक्षियों पर अध्ययन किया कि वह कैसे सीखते हैं तथा सीखने की गति क्या है? क्या मनुष्य अपने प्रयास से इसमें बढ़ोत्तरी कर सकता है? सीखने के सिद्धान्तों के सम्बन्ध में अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये। इनको दो भागों में बाँटा जा सकता है-
1. व्यवहारवादी दृष्टिकोण - अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जॉन बी. वाटसन को व्यवहारवाद का जनक माना जाता है। रूसी दार्शनिक इवान पावलव को वास्तव में व्यवहारवाद में पाये जाने वाले उपयोगी प्रयोगों का अग्रदूत माना जाता है। उन्होंने कुत्ते की लार को मापकर (जो घंटी की आवाज होने पर निकलती थी) शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। थार्नडाइक ने बिल्ली पर प्रयोग किया तथा अधिगम का प्रयत्न और त्रुटि का सिद्धान्त दिया। एक अन्य व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक बी. एफ. स्किनर ने चूहों व कबूतरों पर प्रयोग किया तथा क्रियाप्रसूत अनुबंधन का सिद्धान्त दिया। इसी क्रम में ई. आर. गुथरी ने निकटता अनुबंधन का सिद्धान्त दिया व्यवहारवादी क्लार्क एल. हल ने क्रमबद्ध व्यवहार सिद्धान्त दिया।
2. संज्ञानवादी दृष्टिकोण - 20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में मैंक्स वर्दिमर, कुर्टकोफ्का का, वोल्फगेंग कोहलर और कुर्ट लेविन आदि ने सीखने का संज्ञानवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। संज्ञानवाद की अवधारणा हमें बताती है कि हम अपने जीवन में अपने आवश्यक समायोजन, विकास और प्रगति के लिए किस प्रकार सोचते हैं और ज्ञान का अर्जन करते हैं। संज्ञानवादियों ने मानव अधिगम की व्याख्या और मानव व्यवहार के अध्ययन के लिए विभाजित और यांत्रिक उपागम के स्थान पर सम्पूर्ण मानसिक कार्यात्मकता और अन्तः दृष्टि की वकालत की। इन्होंने वातावरण में उपस्थित चीजों या बातों को समझने तथा अधिगम करने में बुद्धि तथा अन्तर्दृष्टि की भूमिका को महत्वपूर्ण माना है।
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