बी ए - एम ए >> बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए बीएससी सेमेस्टर-4 शारीरिक शिक्षा - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- टॉलमैन के अधिगम से सम्बन्धित व्यवहारवादी ज्ञानात्मक सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
टॉलमैन का सिद्धान्त सीखने के ज्ञानात्मक सिद्धान्तों में से अत्यंत विकसित सिद्धान्त है। उन्होंने 1932 ई. में अपनी पुस्तक 'परपसिव बिहेवियर इन ऐनिमल ऐण्ड मैन' में अपने सिद्धान्त की व्याख्या की है। वह उद्देश्यात्मक व्यवहारवाद में विश्वास रखते थे। उनकी नजर में सीखा हुआ व्यवहार सदैव किसी लक्ष्य की ओर निर्देशित तथा उन्मुख होता है। उनका यह दृढ़ मत था कि वस्तुनिष्ठ रूप से सीखा हुआ व्यवहार योग्य उद्देश्यों द्वारा ही व्यवहार नियमित होता है। इस कारण इनको प्रयोजनशील व्यवहारवादी कहा जाता है। यह सिद्धान्त अनेक नामों से पुकारा जाता है, जैसे उद्देश्यात्मक व्यवहार का सिद्धान्त, चिन्ह स्वरूप सिद्धान्त, चिन्ह महत्व सिद्धान्त, ज्ञानात्मक सिद्धान्त इत्यादि।
'टॉलमैन' ने अपनी प्रणाली में सम्मिश्रण को स्वीकार किया है। उन्होंने अन्य सम्प्रदायों से कई सिद्धान्त लिए हैं। जैसे - वाटसन का व्यवहारवाद, मैक्डूगल का 'हामिक' मनोविज्ञान, वुडवर्थ का गत्यात्मक मनोविज्ञान।
टॉलमैन के सिद्धान्त की मुख्य विशेषताएँ - इस प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1) विशुद्ध व्यवहारवाद - टॉलमैन की प्रणाली विशुद्ध व्यवहारवाद पर आधारित है। यह विधि के रूप में आत्म विश्लेषण का खण्डन करती है। चेतना युक्तिमान विचार जैसी क्रियाओं की चर्चा करते हुए उनका अभिप्राय केवल इस बात से था कि निरीक्षित व्यवहार की व्याख्या की जाए।
(2) आणविक व्यवहार - टॉलमैन ने आणविक व्यवहार पर बल नहीं दिया, बल्कि सामूहिक व्यवहार पर बल दिया है। सामूहिक व्यवहार में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
(i) लक्ष्य प्राप्ति के साधनों में यह हमेशा वातावरण सम्बन्धी समर्थनों का प्रयोग करता है।
(ii) यह लक्ष्य निर्देशित होता है। यह हमेशा किसी चीज को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ता है।
(iii) यह चुनाव करता है अर्थात् लम्बे और कठिन साधनों की अपेक्षा यह छोटे और आसान साधनों को चुनता है। इसे लघु प्रयत्न का सिद्धान्त कहा जाता है।
(iv) यह शिक्षणीय है अर्थात् सामूहिक व्यवहार में शिक्षणीयता होती है। शिक्षणीयता उद्देश्य का ही चिन्ह है।
टॉलमैन के सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य - टॉलमैन विश्वास रखता है कि लक्ष्य को जाने वाले मार्ग को ही सीखा जाता है, अनुक्रियाओं को नहीं सीखा जाता। हम अर्थ सीखते हैं गतियाँ नहीं, हम उन चिन्हों की सहायता लेते हैं जो अर्थ सिखाते हैं। इन चिन्हों तथा लक्ष्यों के आपस के सम्बन्ध को सीखते हैं। दूसरे शब्दों में हम सीखते हैं कि कौन-सी चीज किस ओर जाती है। अतः सीखने के चिन्हों को पहचानना और लक्ष्य से सम्बन्धित उनके अर्थों को समझना शामिल है। घटनाओं और अनुक्रम चिन्ह व्यवहार के तत्व को स्पष्ट करता है अर्थात् विशिष्ट लक्ष्यों पर पहुँचने की ओर संकेत करता है। इस अनुक्रम का परिणाम है साधन और साध्य के सम्बन्ध में सीखना। टॉलमैन के प्रयोग प्रयोग इस प्रकार हैं-
टॉलमैन के प्रयोग - अपने सिद्धान्त को अच्छी प्रकार से स्पष्ट करने के लिए के कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
(1) स्थान - शिक्षण पर प्रयोग स्थान शिक्षण पर प्रयोग इस बात को स्पष्ट करने के लिए किए गए कि शिक्षार्थी आरम्भ से ही लक्ष्य की ओर निश्चित घटना-क्रम से नहीं चलता बल्कि उसमें परिवर्तन स्थितियों के अनुसार विभिन्न व्यवहार करने की योग्यता होती है जैसे कि वह जानता है कि लक्ष्य कहाँ है। टॉलमैन और 'Ritchie' ने इस पर एक प्रयोग किया उन्होंने चूहों के दो वर्ग के लिए। एक वर्ग को एक ऊँची भूल-भुलैया में दौड़ने का इस प्रकार प्रशिक्षण दिया कि किसी भी ओर से प्रवेश होकर यदि हम बाईं ओर मुड़ेंगे तो उन्हें भोजन मिलेगा। इसे अनुक्रियात्मक शिक्षण कहते हैं। दूसरे वर्ग को एक विशिष्ट स्थान पर हुए भोजन को प्राप्त करना सिखाया गया। इसे स्थान शिक्षण कहते हैं।
(2) पुरस्कार प्रत्याशा पर प्रयोग - पुरस्कार प्रत्याशा का सरल अर्थ यह है कि विद्यार्थी को पुरस्कार का पहले से ज्ञान होता है, परन्तु यदि पुरस्कार समाप्त कर दिए जाएँ या परिवर्तित कर दिए जाएँ तो व्यवहार में बाधा पड़ जाती है।
टॉलमैन और Tinklepaugh ने दो बर्तन लिए उन्होंने बंदर की उपस्थिति में एक बर्तन में केले डाल दिए। बंदर ने केले वाले बर्तन को पहचानकर उसमें से केला निकाल लिया। फिर केले की जगह पर कुछ पत्ते रख दिए, जिन्हें बन्दर पसंद नहीं करता। यह देखा गया कि बन्दर ने पत्ते को स्वीकार नहीं किया, बल्कि केले की तलाश करने लगा। इससे स्पष्ट होता है कि पशुओं को किसी विशिष्ट लक्ष्य या पुरस्कार की प्रत्याशा होती है।
(3) अव्यक्त - शिक्षण पर प्रयोग यह छुपा हुआ शिक्षण होता है जो दिखाई तो नहीं देता, परन्तु अनेक स्थितियों में स्पष्ट किया जा सकता है। टालमैन और हॉन्जिले ने चूहों पर अव्यक्त - शिक्षण सम्बन्धी प्रयोगों का अध्ययन किया। उनके एक विशिष्ट प्रयोग में चूहा एक भूलभुलैया में कई दिनों तक भोजन के बिना भागता रहा। फिर पुरस्कार रख दिया गया और परिणाम को देखा गया। परिणाम से स्पष्ट हुआ कि भोजन पुरस्कार के न होने पर भी गलतियों की संख्या कम हो रही थी। परन्तु नियमित रूप से भोजन- पुरस्कार रखने से गलतियाँ अति शीघ्र कम होने लगीं। चूहों के वर्ग के लिए 11वें प्रयास में भोजन- पुरस्कार रखा गया था। वैसे ही अच्छा काम किया जैसे दूसरे वर्ग के लिए नियमित रूप से भोजन- पुरस्कार की व्यवस्था थी। इसका मतलब है कि पहले 10 प्रयासों में भी पहले वर्ग के चूहों ने कुछ सीख लिया था। यही अव्यक्त शिक्षण प्रयोग कहलाता है।
टॉलमैन के सीखने के नियम - सन् 1932 ई. में टॉलमैन ने निम्नलिखित नियमों का प्रतिपादन किया-
(1) क्षमता का नियम - सीखना व्यक्ति की विभिन्न क्षमताओं पर निर्भर करता है। क्षमता नियमों में टॉलमैन ने छः उपनियम शामिल किए हैं-
(i) औपचारिक साधन साध्य क्षमताएँ।
(ii) प्रभेदात्मक एवं प्रबन्धात्मक क्षमताएँ।
(iii) धारता क्षमता।
(iv) विकल्पनात्मक मार्गों के लिए आवश्यक साधन- साध्य क्षमताएँ।
(v) कविचारात्मक क्षमता।
(vi) निर्माण क्षमता।
(2) उत्तेजना सम्बन्धी नियम - टॉलमैन ने पाँच उत्तेजना सम्बन्धी नियम बताये हैं-
(i) एक रूप होने की योग्यता,
(ii) गेस्टाल्ट के अन्य नियम,
(iii) विकल्पों का स्थानीय एवं भौतिक प्रकृतियों में परस्पर सम्बन्ध,
(iv) अनिवार्य चिन्हों का इकट्ठा होना और साधन-साध्य के प्रति उनका सम्बन्ध,
(v) क्षेत्र के नए अवरोधों और विस्तारों के अनुकूल सामग्री की चारित्रिक विशेषताएँ।
(3) प्रस्तुतिकरण विधि के नियम - इस विधि के भी इन्होंने पाँच नियम बताये हैं-
(i) आवृत्ति नवीनता,
(ii) अनुप्रेरणा,
(iii) प्रभाव नहीं बल्कि बल,
(iv) विकल्पों के प्रस्तुतिकरण का क्रम और अनुक्रम,
(v) पहले से दिए गये विकल्पों और वास्तविक समाधान के प्रस्तुतीकरण में भौतिक सम्बन्ध।
टॉलमैन प्रणाली का नवीन स्वरूप - सन् 1949 ई. में टॉलमैन ने अपनी प्रणाली का नवीन रूप प्रस्तुत किया। उन्होंने निम्नलिखित छः प्रकार के सीखने का उल्लेख किया-
(i) क्षेत्र - प्रत्याशाएँ - इससे तात्पर्य उन चिन्ह स्वरूप प्रत्याशाओं से है जिनसे व्यक्ति छोटे रास्तों का प्रयोग करता है। टॉलमैन का विचार है कि 'कैथेक्स' और समतुल्य विश्वासों की अपेक्षा क्षेत्र प्रत्याशाएँ जल्दी भुला दी जाती हैं।
(ii) गत्यात्मक-प्रतिमान - इसका सम्बन्ध प्रस्तुत स्थिति में किसी प्रकार के गत्यात्मक - प्रतिमान की प्राप्ति के साथ है। टॉलमैन का विश्वास है कि इस प्रकार की प्राप्ति सरल प्रतिबन्धता पर आधारित है।
(iii) कैथेक्स - चालक और लक्ष्य के बीच में विकसित होने वाले धनात्मक या ऋणात्मक सम्बन्धों को कैथेक्स कहते हैं। यदि एक प्यासा बच्चा 'प्यास' रूप चालक और पानी के बीच में कोई सम्बन्ध स्थापित कर लेता है तो वह धनात्मक-कैथेक्स होगा। यदि एक जला हुआ बच्चा स्रोत से डरता है और उससे दूर रहता है तो वह ऋणात्मक कैथेक्स होगा।
(iv) समतुल्य विश्वास - लक्ष्यों तथा उपलक्ष्यों में उपस्थिति सम्बन्धों के ज्ञान को समतुल्य विश्वास कहते हैं। इससे व्यक्ति पहले उपलक्ष्य की ओर ऐसा व्यवहार करता है जैसे वह वास्तविक लक्ष्यों की ओर करेगा। अतः वह उन उपलक्ष्यों की ओर अग्रसर होगा जिनके प्रति उनमें धनात्मक समतुल्य विश्वास उत्पन्न हुआ होगा और उन उपलक्ष्यों से दूर रहेगा जिनके प्रति उसमें ऋणात्मक समतुल्य विश्वास उत्पन्न हुआ होगा। टॉलमैन ने इस बात पर बल दिया है कि समतुल्य विश्वास, सीखने में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
(v) क्षेत्र-ज्ञान विधियाँ - क्षेत्र ज्ञान विधियाँ सीखने में लगाई जाने वाली जटिल मानसिक विधियाँ हैं। ये आंशिक रूप से आंतरिक योग्यताओं पर निर्भर करती हैं। ये प्रत्यक्षात्मक, स्मृत्यात्मक तथा निष्कर्षात्मक प्रक्रियाओं पर आधारित क्षेत्र प्रत्याशाएँ प्राप्त करने की योग्यता का प्रतिनिधित्व करती हैं।
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