बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 चित्रकला बीए सेमेस्टर-4 चित्रकलासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- जॉन रस्किन के सौन्दर्य सम्बन्धी दृष्टिकोण को बताइये ।
उत्तर-
जॉन रस्किन (John Ruskin, 1819-1900 ई.) - रस्किन ब्रिटेन के प्रसिद्ध कला- विचारक हैं। उन्होंने कला के विषय में अपने विचार मार्डन पेण्टर्स में व्यक्त किये हैं जिसे सुप्रसिद्ध ब्रिटिश दृश्य-1 चित्रकार 'टर्नर' के चित्रों की प्रंशसा में लिखा गया था। उन्होंने कला को प्रधान रूप से विचारों तथा भावों की वाहिका के रूप में सामाजिक माध्यम माना है और सौन्दर्य का नैतिकता से सम्बन्ध अनिवार्य रूप से स्थिर किया है।
कला और अभिव्यक्ति रस्किन के अनुसार चित्रकला व्यंजनात्मक भाषा के अतिरिक्त कुछ नहीं है। यह विचारों तथा भावों की वाहिका है और वस्तुओं का प्रतिरूप उपस्थित नहीं करती। लय, संक्षिप्तता शक्ति आदि कलाकृतियों की विशेषतायें तो हो सकती हैं पर केवल इन्हीं से कला महान नहीं होती। कला की भाषा का जो अर्थ है, जो व्यंजना है, वहीं कला की महानता का कारण है।
रस्किन के कला सम्बन्धी विचार 'मार्डन पेन्टर्स' नामक पुस्तक में लिखे गये हैं। उनके अनुसार सौन्दर्य ईश्वर की विभूति है तथा सौन्दर्य को नैतिकता से अलग नहीं किया जा सकता। कला भी विचारों तथा भावों की वाहिका है जो समाज के उत्थान में सहायक है। रस्किन के अनुसार कला का कार्य प्रतिकृति करना नहीं है। कला सृष्टि करती है। कला द्वारा विचारों तथा भावों की अभिव्यक्ति होती है।
रस्किन ने कला की दूसरी विशेषता सत्य की प्रस्तुति बताई है। सत्य का तात्पर्य है कला में प्रकृति के किसी तत्व को, जो मन अथवा इन्द्रियों से सम्बन्धित हो, प्रस्तुत करना। रस्किन ने सत्य तथा प्रतिकृति में तीन भेव बताये हैं-
(1) सत्य भौतिक वस्तुओं के गुण, भाव, प्रभाव तथा विचारों से सम्बन्धित होता है। भौतिक वस्तुओं को भी सत्य कहा जाता है जबकि प्रतिकृति केवल भौतिक वस्तुओं की ही हो सकती है। जिसमें नैतिकता का विचार होना आवश्यक नहीं है किन्तु सत्य की प्रतिकृति में विचार महत्वपूर्ण है। इस प्रकार भौतिक सत्य की तुलना में नैतिक सत्य श्रेष्ठ है।
(2) विचारक तथा विचार ग्रहण करने वाले दोनों पक्षों के मन में निश्चित अर्थ रखने वाले प्रतीकों अथवा चिन्हों द्वारा नैतिक सत्य को व्यक्त किया जा सकता है।
(3) प्रतिकृति में वस्तु के दृश्यमान सभी पक्षों का अंकन होता है। वस्तु के गुण, विशेषता, प्रकृति ही सत्य है। इन्होंने मानव मन में वो वृत्तियों का निवास माना है सहज-वृत्ति तथा काल्पनिक वृत्ति।
इस प्रकार हम देखते हैं कि रस्किन ने कला में विचार या व्यंजना को सर्वोपरि माना है। उनके अनुसार श्रेष्ठ कला सदैव सृजनात्मक और मौलिक होती है।
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