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बीए सेमेस्टर-4 चित्रकला

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2750
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर

 

प्रश्न- हर्बर्ट रीड के अनुसार कला क्या है?

अथवा
आधुनिक कला के विशत् व्याख्याकार तथा अभिव्यंजनवादी कला के विशेष समर्थक
अथवा
हर्बर्ट रीड के सिद्धान्त के विषय में आप क्या जानते हैं?

उत्तर-

हर्बर्ट रीड (Herbert Read, समय 1893 ई. 1968 ई. तक) - हर्बर्ट रीड ब्रिटेन निवासी थे। प्रारम्भ से ही रीड को कला में विशेष रुचि थी, किन्तु प्रथम महायुद्ध छिड़ जाने के कारण इन्होंने सेना में कार्य किया। सन् 1931 ई. में ये एडिनबरा में ललित कला के प्रोफेसर नियुक्त हुए। हर्बर्ट रीड ने कला पर अनेक पुस्तकें लिखी एवं व्याख्यान प्रस्तुत किये। इन्होंने आधुनिक कला की विशद व्याख्या की और अभिव्यंजनावादी कला के विशेष समर्थक माने जाते हैं। कला के प्रसार एवं प्रचार में हर्बर्ट रीड का अभूतपूर्व योगदान दृष्टव्य हैं। ये अभिव्यंजनावादी कला के विशेष समर्थक हैं। कला के प्रचार में इन्होंने अत्यधिक सहयोग दिया और उसी प्रसंग में कला तथा सौन्दर्य से सम्बन्धित विचार व्यक्त किये हैं। हर्बर्ट रीड के अनुसार, कला की परिभाषा सदैव बदलती रहती रही है। कला श्वास- क्रिया की भाँति लयात्मक, भाषा की भाँति व्यंजक है तथा ऐन्द्रिय बोध, विचार, भाव क्रियाओं आदि से अविभाज्य हैं। कला जीवन को नियन्त्रित नहीं करती वरन् कला जीवन का प्रयोज्य तंत्र है जिसके अभाव में सम्पूर्ण सामाजिक तथा आध्यात्मिक व्यवस्थित जीवन अस्त- व्यस्त हो जाती है।' हर्बर्ट रीड के अनुसार, कला सम्पूर्ण मानव तथा समाज के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग है। कला प्रिय लगने वाले रूपाकारों के सृजन का एक प्रयास है।

किसी भी कृति में माध्यम की जो रचना की जाती है वही उस कृति का रूप है। अतएव कला का रूप से गहनतापूर्ण सम्बन्ध है। इस रूप के विभिन्न तत्व प्रकृति से ही प्राप्त होते हैं एवं गहन निरीक्षण पद्धति द्वारा ये तत्व संस्कार रूप में मानव-मन ग्रहण करता है। इन तत्वों के माध्यम से हमें सौन्दर्यबोध होता है। रूप के साथ-साथ रंग संगति भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। हर्बर्ट रीड ने इन्द्रिय - बोधों में रूपात्मक सम्बन्ध की एकता को ही 'सौन्दर्य माना है। यह सम्पूर्ण मानवीय विकास का एक अंग है। हर्बर्ट रीड के अनुसार, यह आवश्यक नहीं है कि जो कुछ भी सुन्दर हो, वह सब कला भी हो। अनेक कलाकृतियों का सौन्दर्य से कोई सम्बन्ध नहीं होता। कला का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। अतः जो हमें आनंद प्रदान करे वह सौन्दर्य है और कला किसी विशेष आदर्श का प्रत्यक्षीकरण नहीं है। कला का आदर्श कोई भी हो सकता है। इन्होंने कला में कल्पना को भी प्राथमिकता दी है। हमारी संवेदनशीलता कलाकृति के सृजन तथा आस्वादन के समय उच्च स्तर पर पहुँच जाती है। इस स्तर पर आकार हमारी अनेक विरोधी अनुभवों में एक सामंजस्य उत्पन्न होता है जैसे- सामान्य विशेष, विचार - बिम्ब, समष्टिगत व्यक्ति, पारम्परिक नवीन आदि) में एक सामंजस्य उत्पन्न हो जाता है। यह कार्य कल्पना के आधार पर होता है। कल्पना की सर्वोच्च स्थिति, अमूर्त अनुपात तथा सामंजस्यपूर्ण संगति की दृष्टि है। यह कल्पना सभी कलाओं में होती है। हमारी इस कल्पना में चेतन की अनुकृति की इच्छा तथा अचेतन के ब्रह्मण्डीय व्यवस्था में में लीन होने की इच्छा दोनों निहित हैं। इस प्रकार कला मानसिक पक्ष के साथ शारीरिक तथा भौतिक सृष्टि के पक्षों से भी सम्बद्ध है।

कला की अभिव्यक्ति - हर्बर्ट रीड कला सृष्टि की प्रक्रिया के तीन चरण मानते हैं-

1. कलात्मक माध्यम की सामग्री की विशेषताओं का बोध (ज्ञान)

2. इस बोध को प्रिय लगने वाले रूपों की व्यवस्था,

3. भावाभिव्यक्ति या अभिव्यंजना

कलात्मक माध्यम की सामग्री की विशेषताओं के ज्ञान को उचित (प्रिय) लगने वाले रूपों की व्यवस्था के पश्चात ही भावों की अभिव्यक्ति या अभिव्यंजना को प्रस्तुत करना। इस स्थिति के अनुसार, हर्बर्ट रीड ने अभिव्यक्ति को कला के अन्तिम चरण के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि क्रोचे ने अभिव्यक्ति को प्रथम चरण ही नहीं बल्कि अभिव्यक्ति को ही एक मात्र चरण माना है।

हर्बर्ट रीड के अनुसार - "अभिव्यक्ति रूपात्मक संयोजन के अभाव में भी हो सकती है किन्तु तब वह कला नहीं होती क्योंकि कला का कार्य अनुभूति की व्यंजना है जो कुछ विशेष कला रूपों के माध्यम से की जाती है।' रूप में एक व्यवस्था है जो अभिव्यंजना में नहीं है। संख्या, संतुलन, लय, सामंजस्य आदि के आधार पर रूप का विश्लेषण किया जा सकता है किन्तु अभिव्यंजना आन्तरिक प्रेरणा से जन्म लेती है। रूप तत्व शाश्वत (सत्य) है तथा भाव की अभिव्यक्ति युग विशेष से जुड़े होते हैं। कलाकार अपने निजी अन्तर्दृष्टि के द्वारा कला के नियमों के अनुसार रूपों को परिवर्तित करता है एवं ऐन्द्रिय अनुभवों के आधार पर प्रतीकों की रचना करता है जिसके माध्यम से वह अपनी अनुभूत की व्यंजना कर कला सृष्टि करता है।

कला द्वारा हम भावों की अभिव्यक्ति सरलतापूर्वक करते हैं। इस प्रकार कलाकार विचारों के प्रति अपनी भावात्मक प्रतिक्रिया को इन्द्रिय - बोध के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। कला का कार्य मान्यताओं को प्रेषित करना है, वे धार्मिक हो अथवा अन्य प्रकार की। कला का सम्बन्ध जिस मानव समुदाय से होता है, वह उसके आनुवंशिक, जलवायु सम्बन्धी, आर्थिक तथा सामाजिक दबावों से प्रभावित होती है। कलाकार समाज से ही सब प्राप्त करता है तथा उन पर कला के माध्यम से अपने व्यक्तित्व की छाप लगाता है। कला का उद्देश्य भाव की व्यंजना तथा उसकी समझ का सम्प्रेषण है। हर्बर्ट रीड के अनुसार अरस्तू के विरेचन के सिद्धान्त का भी यही तात्पर्य है। कलाकृति के द्वारा हम लय, सामंजस्य, एकता आदि की सुखात्मक अनुभूति करते हैं। कलाकार द्वारा कृति की रचना के समय जो अनुभूति की गयी थी, यह उससे अलग है। यह एक प्रकार से आश्चर्य की अनुभूति है। यह कलाकार का सम्मान और उसकी कला की प्रतिष्ठा है। यदि इसे स्पष्ट समझा जाता तो कला के समाज में स्थान से सम्बन्धित कोई प्रश्न ही नहीं उठता। यूनानियों ने सौन्दर्य को नैतिक अच्छाई माना। यदि हम आज केवल एक ही सिद्धान्त का पूर्णत: पालन करें तो अन्य सभी वस्तुएँ स्वत: ठीक हो जायेंगी। कला का समाज से गहरा सम्बंध स्पष्ट दृष्टव्य है।

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