बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 चित्रकला बीए सेमेस्टर-4 चित्रकलासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- "कला सहज ज्ञान की अभिव्यक्ति है, अभिव्यक्ति की अभिव्यक्ति नहीं" क्रौशे के इस कथन की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
अथवा
क्रोशे के सौन्दर्य सिद्धान्त की प्रमुख विशेषतायें बताइये।
उत्तर-
अभिव्यंजना वाद जर्मनी में प्रचलित घोर बुद्धिवाद की प्रतिक्रिया के रूप में उभरा। साथ ही यह बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ की समस्यापूर्ण मानसिक तथा सामाजिक स्थिति का परिणाम भी था। 20वीं शताब्दी के आरम्भ में औद्योगिक विकास आ चुका था।
इटली के सुप्रसिद्ध विचारक वेने देत्तो क्रौशे इस शताब्दी के महत्वपूर्ण सौन्दर्यशास्त्रीय थे। इन्होंने सहज ज्ञान पर आधारित स्वतन्त्र सौन्दर्यशास्त्र की स्थापना की। क्रौशे एक अर्थ में प्रत्ययवादी (आईडियलिस्ट) थे, ये मानसिक क्रिया को अधिक महत्व देते थे। इन्होंने मानसिक क्रियाओं का विश्लेषण कर उसकी दो अवस्थाएं बताईं। पूर्व अवस्था संवेदना और उसके बाद-
(1) ज्ञान या जानना - सैद्धान्तिक क्रिया, इसके दो रूप हुए
(i) कला - सहज ज्ञान द्वारा विशेषताओं को जानना।
(ii) दर्शन या शुद्ध विज्ञान- विचार - नियमों की खोज।
क्रिया या वास्तविक कार्य - इसके भी दो रूप हैं -
(i) आर्थिक कार्य
(ii) नैतिक कार्य।
ये केवल देखने में विभक्त प्रतीत होते हैं परन्तु परोक्ष रूप में मौजूद हैं। जैसे ज्ञान में क्रिया भी है। सहज ज्ञान में ज्ञान और क्रिया दोनों हैं।
क्रोशे के अनुसार - सौन्दर्यशास्त्र कला में सहज ज्ञान की स्थापना करता है या इसके आधार पर कला की व्याख्या करता है।
कला सहज ज्ञान है। कला भौतिक तथ्य नहीं है, ऊर्जा, ध्वनि शरीर आदि यह नहीं है। कला उपयोगी कार्य नहीं है। कला इन्द्रिय सुख भोग विलास की वस्तु नहीं है। कला सहज ज्ञान से उद्भूत क्रिया है। कला मानसिक व्यापार है। क्रौशे के अनुसार मानसिक व्यापार निम्नवत् है-

इस विषय में स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि कला सहज ज्ञान है। यह तार्किक धारणात्मक ज्ञान से अलग है। रचनात्मक कला सहजानुभूति की सामग्री को पूर्णता अनुपात व सामंजस्य देती है।
क्रोशे के अनुसार- सहजज्ञान की सफल अभिव्यक्ति सौन्दर्य है और अपूर्ण अभिव्यक्ति कुरूप है। अभिव्यंजना आंतरिक है और वही सौन्दर्य है।
कला को गीतिमय, लयपूर्ण सहज ज्ञान माना। इनकी कला का सिद्धान्त 'गागर में सागर" के समान है। सरलता व संक्षेप की अभिव्यक्ति है। "कला भाव की अभिव्यक्ति है, यह कल्पना की शुद्ध और सजीव क्रिया है।"
- क्रोचे
परिचय - क्रोचे का जन्म 25 फरवरी 1866 में इटली के प्रसिद्ध नगर नेप्ल्स के पास एहुजी नामक स्थान पर हुआ। ये नेप्ल्स विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य करते थे। इन्होंने कुल 29 ग्रन्थ लिखे। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक Aesthetic 1902 में प्रकाशित हुई।
बाद में इसके अन्य भाषाओं में अनुवाद होते रहे। इनकी प्रमुख पुस्तकों में-
1. Aesthetic
2. Logie
3. Philosophy of the Practical
4 Philosophy of the Spirit.
इनकी पुस्तक एस्थेटिक दो भागों में है - सैद्धान्तिक तथा ऐतिहासिक। हीगल ने त्रिपदा सिद्धान्त को माना बाद, प्रतिवाद, संवाद एस्थेटिक के सैद्धान्तिक भाग में क्रौरों के सौन्दर्यशास्त्र के मूलतत्व आ जाते हैं। इसमें इन्होंने बताया कि ज्ञान वो श्रोतों से प्राप्त होता है - तर्क व सहज ज्ञान। इसी के अनुसार ज्ञान के दो रूप हैं-
क्रा.सं. | सहज ज्ञान | तार्किक ज्ञान |
1. | कल्पना से प्राप्त होता है। | बुद्धि से प्राप्त होता |
2. | व्यक्तिनिष्ठ | सार्वभौम |
3. | कला | विज्ञान |
4. | कल्पना बिम्ब बनते हैं | प्रत्यय बनते हैं। |
5. | गुरु की आवश्यकता नहीं। | गुरु के निर्देश से चलती है। |
6. | सीखी नहीं जाती। | सीखी जाती है। |
7. | कलाकार जन्म लेते हैं | विज्ञानी बनते हैं। |
8. | स्वत्रंत हैं। | नियमों के अधीन हैं। |
सहज ज्ञान का कच्चा माल संवेदना व प्रत्यक्ष से मिलता है। फिर यह उत्पादक सहचर्य में जुड़ते हैं, इससे प्रतिबिम्ब बनते हैं।
क्रौशे के अनुसार - सच्चा सहज ज्ञान अभिव्यक्ति ही है क्योंकि यह क्रिया से इतनी भरी परिपूर्ण रहती है कि उसे बाहर आना ही पड़ता है जैसे पूरा भरा हुआ प्याला छलक जाता है।
कैरिट, क्रोशे के ब्रिटिश प्रशंसक कला समीक्षक थे इन्होंने कहा था कि चालीस से ऊपर प्राचीन व नवीन प्रतिनिधि सौन्दर्य शास्त्रियों की राय में पाया गया है कि रचनात्मक क्रिया के रूप में कला, सभी युगों में भाव संवेग और अन्तर्मन की अभिव्यक्ति रही है। कला अभिव्यंजना हैं।
कैरिट के अनुसार - ''सौन्दर्य का सिद्धान्त" देने की आवश्यकता कई कारणों से हुई-
इसके पक्ष और प्रमाण के रूप में बहुत सारी सामग्री उपलब्ध थी।
दूसरे विचारकों ने भी सौन्दर्य सम्बन्धी सिद्धान्त दिये पर इसमें स्पष्ट नहीं।
बहुत सारे पुराने सिद्धान्त इस एक सिद्धान्त पर आकर इकट्ठा हो गये।
इस सिद्धान्त (क्रोश के) आधार पर प्राचीन और सवा से चली आती हुई समस्याओं और गुत्थियों को सुलझाया जा सकता है।
कला के क्षेत्र की यह चिरस्थायी समस्यायें हैं-
औपचारिक (Pomal) बनाम अभिव्यंजना (Expressive)
रोमांसवादी (Romantic) बनाम शास्त्रीय (Classical)
सुन्दरता (Beauty) बनाम उदात्तता (Sublimity).
दोनों का सत्य और नैतिकता से सम्बन्ध कैरिट के अनुसार क्रोशे सौन्दर्य की समस्या के जड़ मूल तक पहुँच सके।
कला का उद्देश्य आत्म-अभिव्यक्ति है। सहजज्ञान बिम्बों से बनता है, बिखरे हुए बिम्बों से नहीं, एक सूत्र में पिरोये हुए इनको जोड़ने वाली कड़ी ही सहज ज्ञान है।
माइकेल एन्जेलो में कहा कि चित्र हाथ से नहीं मस्तिष्क से बनता है।'
कलाकार वस्तु की तह में जाकर उसके गुणों के रूप में उसे देखता है।
निष्कर्ष - सहजवृत्ति और अभिव्यक्ति पर निष्कर्ष देते हुए क्रोशे का कथन है कि सहज ज्ञान अभिव्यक्ति है। क्रोश कंठिन किन्तु रुचिकर विचारक हैं। उनके विचारों में सरलता है परन्तु उनकी विशद व्याख्या आवश्यक है। उन्होंने अस्तित्व पर अपने महत्वपूर्ण विचार दिये। अस्तित्व मन-आत्मा है।
क्र.सं. | सामान्य कार्य | विशेष कार्य | निर्धारक प्रत्यय | सम्बन्धितविज्ञान |
1. |
सिद्धान्तव्यक्तिगत | कला | सुन्दर | सौन्दर्यशास्त्र |
2. |
सिद्धान्त सामान्य | तर्क | सत्य | तर्कशास्त्र |
3. |
प्रयोग व्यक्तिगत | इच्छा | उपयोगी | अर्थशास्त्र |
4. |
प्रयोग | संकल्पशक्ति(Will) | कल्याणकारीअच्छा | नीतिशास्त्र |
उपरोक्त चार्ट में अस्तित्व की चार श्रेणियां बताई गई हैं। प्रत्येक का अपना उपयुक्त विचार और अनुशासन है। प्रत्येक अलग क्षेत्र से जुड़ा है। इस प्रकार क्रोशे ने सौन्दर्य को, कला को परिभाषित किया और बताया कि सौन्दर्य व कला भावों की अभिव्यक्ति expression of feeling है। यह कलाकार की सहजवृत्ति और रचनात्मक बिम्बों में प्रकट होती है।chauhan
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