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बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 चित्रकला बीए सेमेस्टर-4 चित्रकलासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 चित्रकला - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- भारतीय कला में सादृश्य के बारे में आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
सादृश्य का अर्थ है - वस्तु जैसी प्रतीत होती है अथवा जैसी वह मानस को दिखाई देती है। चित्रकला का कार्य इस सादृश्य की रचना करना है। अवनीन्द्रनाथ ठाकुर ने सादृश्य की व्याख्या इस प्रकार की है सादृश्यस्य भाव इति सादृश्य।'
भारतीय कला के छः अंगों में "सादृश्य" अंग का विशेष महत्व है। चित्रसूत्र में सादृश्य को चित्र की प्रधान वस्तु माना गया है - "चित्रे सादृश्यकरणं प्रधानं परिकीर्तितम्।' जिस चित्र की आकृति में दर्पण के प्रतिबिम्ब के समान सादृश्य होता है उसे "विद्धचित्र' कहते हैं। "बिद्धचित्रं तु सादृश्यं दर्पणे प्रतिबिम्बवत्।"
वस्तु की बाहरी आकृति की अपेक्षा उसके स्वभाव का अंकन अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है, जिसे भावगम्य सादृश्य कहा जाता है। 'भावगम्य सादृश्य' हेतु प्राकृतिक उपमानों का आश्रय लिया जाता है। काव्य में इन्हीं को सादृश्यमूलक अंलकार कहा गया है। भारतीय कला में शारीरिक रचना हेतु प्रधान रूप से निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया गया है। जैसे-
| पुरुष की भौंह | नीम की पत्ती के समान |
| स्त्री की भौंह | धनुष के समान |
| अधर | पल्लव के समान |
| अधरोष्ठ | बन्धुजीव पुष्प के समान |
| कान | गिद्ध की आकृति के समान |
| योगी का कान | ॐ की आकृति जैसा |
| स्थिर मुख | अण्डाकृति |
| चंचल मुख | पान की आकृति के समान |
| पलक | कमल की पंखुडी के समान |
| सात्विक नेत्र | कमल कली के समान |
| भोले नेत्र | मृगी के नेत्र जैसे |
| प्रसन्न नेत्र | खंजन पक्षी के समान |
| विलासी नेत्र | परवल की फाँक के समान |
| चंचल नेत्र | शफरी मछली के समान |
| नासिका | तिलपुष्प अथवा शुक नासिका के समान |
| नथुना | सेम के बीच के समान |
| कण्ठ | शंख के मुख भाग के समान |
| ठोड़ी | आम की गुठली के समान |
| घुटना | कर्कट की आकृति जैसा |
| वक्ष की ढलान | गो मस्तक जैसी |
| स्त्री की कमर | डमरू जैसी |
| पुरुष का वक्ष | बन्द किवाडो जैसा |
| पुरुष की कमर | सिंह की कमर जैसी |
| नवयौवना की जंघाए | कदली स्तस्म जैसी |
| मदंयुक्त राजंघाए | हाथी के सूड के समान |
| अंगुलियाँ | चम्पा कली जैसी |
| पैरों की पिंडली | मछली के समान |
| पुरुष के कंधे | गज मस्तक के समान |
| हाथ | पल्लव जैसे कोमल |
| हाथ - पैर | कमल की पंखुडियों के समान |
| पैर | पत्ते के सदृश्य |
| अंगुलियाँ | मटर अथवा सेम की फली के समान। |
भारतीय चित्र शास्त्रों में सादृश्य का महत्वपूर्ण स्थान है। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय कला का सादृश्य कैमरे की यथार्थ प्रतिकृति के समान न होकर गुणों तथा 1. भावों पर आधारित है।
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