बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 संस्कृत बीए सेमेस्टर-4 संस्कृतसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 संस्कृत - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
अनुच्छेद शब्द की प्रकृति अन् उच्छेद = अनुच्छेद है।
अनुच्छेद शब्द अंग्रेजी के Paragraph शब्द का हिन्दी पर्याय है।
अनुच्छेद 'निबन्ध' का संक्षिप्त रूप होता है। इसमें किसी विषय के किसी एक पक्ष पर 80 से 100 शब्दों में अपने विचार व्यक्त किये जा सकते हैं।
निम्न एक भाव या विचार को व्यक्त करने के लिए लिखे गए सम्बद्ध और लघु वाक्य समूह को अनुच्छेद लेखन कहते हैं।
किसी भी विषय को संक्षिप्त एवं प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने की कला को अनुच्छेद लेखन कहा जाता है।
अनुच्छेद में प्रत्येक वाक्य मूल विषय से जुड़ा रहता है। अनावश्यक विस्तार के लिए इसमें कोई स्थान नहीं होता।
अनुच्छेद का मुख्य कार्य किसी एक विचार को इस तरह लिखना होता है, जिसके सभी वाक्य एक-दूसरे से बंधे होते हैं। यह भी वाक्य अनावश्यक या व्यर्थ नहीं होना चाहिए।
अनुच्छेद में उदाहरणों और कहावतों का केवल संकेत दिया जाता है।
अनुच्छेद कहानी के रूप में नहीं लिखा जाता है।
अनुच्छेद में निष्कर्ष समझ में आना चाहिए।
समसामयिक का अर्थ है - वर्तमान समय का।
राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं तथा मुद्दों को जो वर्तमान के हों उन्हें ही समसामयिक में रखते हैं।
समसामयिक का पर्यायवाची शब्द है। समकालिक, समकालीन, समवयस्क तथा वर्तमान है।
समसामयिक अनुच्छेद में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक आदि क्षेत्र से सम्बन्धित विषयों को लिया जाता है।
समसामयिक अनुच्छेद के उपविषय के रूप में राष्ट्रीय समाचार, अन्तर्राष्ट्रीय समाचार, युद्धाभ्यास, सैन्याभियान, विज्ञान प्रौद्योगिकी, आर्थिक समाचार, पारिस्थितिकीय पर्यावरणीय समाचार, क्रीड़ा जगत के समाचार, पुरस्कार, सम्मान, विविध अन्य विषय आदि हैं।
विज्ञापन शब्द वि + ज्ञापन से बना है 'वि' का आशय विशेष और 'ज्ञापन' का आशय सूचना अर्थात् सामाजिक सूचना को विज्ञापन कहते हैं।
मुख्य रूप से विज्ञापन छः प्रकार के होते हैं-
(i) स्थानीय विज्ञापन - इसके अन्तर्गत बैनर, पोस्टर, पत्रिका, केबल टी.वी. इत्यादि प्रचार हैं।
(ii) राष्ट्रीय विज्ञापन - इसके अन्तर्गत सौन्दर्य प्रसाधन गृह उपकरण, विद्युत उपकरण आदि हैं।
(iii) वर्गीकृत विज्ञापन - वैवाहिकी विज्ञापन, खरीदना बेचना, रोजगार मेला आदि।
(iv) औद्योगिक विज्ञापन - अपरिपक्व सामग्री, उपकरण, परिवहन इत्यादि।
(v) जनकल्याण विज्ञापन - शिक्षा समस्या, कन्या भ्रूणहत्या, प्रदूषण समस्या आदि।
(vi) सूचनाप्रद विज्ञापन - विभिन्न सरकारी योजनायें, यातायात सुरक्षा, वन्यजीव सुरक्षा आदि।
विज्ञापन उत्पाद कम्पनियों के उत्पादों की प्रासंगिक जानकारी देता है।
विज्ञापन से किसी वस्तु की श्रेष्ठता एवं प्रभावपूर्ण दृश्यों को दिखाकर लोगों के ध्यान को आकर्षित किया जाता है।
विज्ञापन में प्रभावशाली तरीके से कम शब्दों में अधिक बोलना होता है।
विज्ञापन में वस्तु के गुणों को बढ़ा - चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है।
आजकल टी.वी., रेडियो के कार्यक्रम, समाचार पत्र-पत्रिकाएँ, भवनों की दीवारें विज्ञापनों से रंगी दिखाई पड़ती हैं।
समाचार लेखन एक कला है। समाचार नवीनतम घटनाओं और समसामयिक विषयों पर अद्यतन सूचनाओं को कहते हैं।
समाचार अंग्रेजी शब्द NEWS का हिन्दी रूपान्तरण है।
'समाचार = सम+ आचार' अर्थात् सभी के प्रति समान आचरण रखते हुए निष्पक्ष रहते हुए - समाचार दिया जाता है।
समाचार पत्रकारिता का मूल तत्व है।
समाचार का अंग्रेजी शब्द NEWS चारों दिशाओं (North East, West और South) की सूचनाओं की ओर संकेत करता है।
‘News' शब्द न्यू (New) नया का अंग्रेजी रूपान्तर का बहुवचन है अर्थात् ऐसी जानकारी जो नई है, समाचार है।
समाचार को संस्कृत में 'वार्ता' कहते हैं। 'वार्ता' अर्थात् बात-चीत के माध्यम से नई सूचनाओं को देना या लिखना, समाचार लेखन है।
समाचार के महत्वपूर्ण तत्व - नवीनता, प्रभाव, जनसमूह से जुड़ाव, सूचनाएँ, समसामयिकता, जिज्ञासा, तथ्यात्मकता, विश्लेषण, निष्पक्षता आदि हैं।
समाचार के छः ककार ('क' अक्षर से शुरू होने वाले छः प्रश्न) समाचार की आत्मा हैं। समाचार में इन तत्वों का समावेश अनिवार्य है।
छः ककार
(1) क्या,
(2) कहाँ,
(3) कब,
(4) कौन,
(5) क्यों,
(6) कैसे।
समाचार के मुख्य प्रकार - स्थानीय समाचार, प्रादेशिक या क्षेत्रीय समाचार, राष्ट्रीय समाचार, अंतर्राष्ट्रीय समाचार, विशिष्ट समाचार, व्यापी समाचार, डायरी समाचार।
समाचार लेखन की प्रमुख - शैलियाँ उल्टा पिरामिड शैली, सीधा पिरामिड शैली, कथात्मक शैली, रोचक शैली, रिपोर्ताज शैली, संक्षिप्त शैली, विवरणात्मक शैली आदि हैं।
समाचार लेखन में प्रायः उल्टा पिरामिड प्रारूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण जानकारी सबसे पहले दी जाती है, उसके बाद घटते क्रम में (महत्व की दृष्टि से) घटनाओं को प्रस्तुत कर समाचार का अन्त किया जाता है। यह समाचार लेखन की सबसे उपयोगी और प्रचलित शैली है।

उल्टा पिरामिड शैली के ये तीन चरण होते हैं-
(i) मुखड़ा
(ii) विश्लेषण
(iii) समापन
संस्कृत भाषा के दैनिक समाचार पत्र-
समाचार-पत्र | वर्ष | स्थान | संपादक |
1. जयन्ती | 1 जनवरी 1907 | त्रिवेन्द्रम | श्री कोमल मरुताचार्य व श्री लक्ष्मीनन्दन स्वामी |
2. विजयम् / संस्कृतिः | 19 नवम्बर 1861 | पूना | पं. बालाचार्य बरखेडकर |
3. सुधर्मा | जुलाई 1970 | मैसूर | श्री वरदान अयंगार |
4. भारतवर्ष जनता दैहिक | सितम्बर 2022 |
दिल्ली |
श्री रामकुमार शर्मा |
संस्कृतम्
प्रिंटिंग प्रेस के साथ ही विश्व में समाचार लेखन के नवीन युग का आरम्भ हुआ।
भारत में पत्रकारिता के विकास में यूरोप (इंग्लैण्ड) का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
समाचार-पत्र के अभाव में पहले गुप्तचरों के माध्यम से सूचनायें एकत्रित की जाती थीं।
1766 में विलियम वोल्ट्स ने भारत में समाचार पत्र लाने का प्रयास किया जो सफल नहीं हो सका।
भारत का पहला समाचार पत्र जेम्स आगस्टस हिक्की द्वारा 1780 में प्रकाशित किया गया, जिसे द बंगाल गजट या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर के नाम से जाना जाता है, किन्तु 1872 में या जोकि अंग्रेजी भाषा का साप्ताहिक पत्र था, बन्द कर दिया गया।
1829 में पं. जुगुलकिशोर शुक्ल के सम्पादन में हिन्दी की प्रथम पत्रिका 'उदन्त- मार्तण्ड' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
संस्कृत भाषा की विशुद्ध प्रथम पत्रिका 'काशी विद्या- सुधानिधिः' का 1 जून 1866 को काशी से प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
1867 में काशी से 'क्रम नन्दिनी' पत्रिका का प्रकाशन हुआ।
1872 में लाहौर से 'विद्योदय' नामक शुद्ध संस्कृत पत्र निकला।
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