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बीए सेमेस्टर-4 संस्कृत

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2749
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बीए सेमेस्टर-4 संस्कृत - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

कवि के कर्म (रचना) को काव्य कहते हैं - 'कवे : कर्म काव्यम्'।

जो सब कुछ जानता है अथवा सब कुछ वर्णन कर सकता है, उसे कवि कहते हैं

सर्व जानाति सर्वं वर्णयति वा कविः।'

व्याकरण आदि षड़ वेदाङ्गों की भाँति अलंकारशास्त्र अथवा काव्यशास्त्र का अध्ययन भी आवश्यक है, इसी कारण राजशेखर ने इसे सप्तम वेदान माना है।

राजशेखर ने काव्यशास्त्र को आन्वीक्षकी, त्रयी, वार्ता और दण्डनीति इन चार विधाओं का सारभाग, अतएव पञ्चम् विधा कहा है।

पाठ्यक्रम में प्रस्तावित आचार्य एवं उनका ग्रन्थ तथा उन ग्रन्थों का विभाजन निम्नवत् है-

आचार्य ग्रन्थ ग्रन्थ का विभाजन
(i) भरतमुनि नाट्यशास्त्र 36 अध्याय
(ii) भामह काव्यालङ्कार 6 परिच्छेद
(iii) दण्डी काव्यादर्श 3 परिच्छेद
(iv) वामन काव्यालङ्कार सूत्र 5 अधिकरण-12 अध्याय
(v) आनन्दवर्धन ध्वन्यालोक 4 उद्योत
(vi) अभिनवगुप्त अभिनव भारती नाट्यशास्त्र की टीका
(vii) कुन्तक वक्रोक्तिजीवितम् 4 उन्मेष
(viii) क्षेमेन्द्र औचित्यविचार चर्चा 19 कारिकायें
(ix) मम्मट काव्यप्रकाश 10 उल्लास
(x) विश्वनाथ साहित्यदर्पण 10 परिच्छेद
(xi) जगन्नाथ रसगङ्गाधर 4 आनन

 

 

 

 

 

 

 

 

 

कुछ अन्य महत्वपूर्ण काव्यशास्त्रीय आचार्य एवं उनके ग्रन्थ

आचार्य ग्रन्थ
उद्भट्ट काव्यालङ्कार संग्रह
रुद्रट काव्यालङ्कार
रुय्यक अलंकार सर्वस्व
हेमचन्द्र काव्यानुशासन
जयदेव चन्द्रालोक
अप्पय दीक्षित कुवलयानन्द
राजशेखर काव्यमीमांसा
भोजराज सरस्वतीकण्ठाभरण
महिमभट्ट व्यक्तिविवेक
धनञ्जय दशरूपक
मुकुलभट्ट, अभिधावृत्ति मातृका

आचार्य भरत का 'नाट्यशास्त्र' विश्व का अनूठा ग्रन्थ है। यह भारतीय काव्यशास्त्र का आदि स्रोत है।

भामह प्रथम आचार्य हैं जिन्होंने भारतीय अलंकारशास्त्र का विशुद्ध शास्त्रीय विवेचन किया।

आचार्य आनन्दवर्धन ने ध्वनि को काव्य की आत्मा स्वीकार कर काव्यशास्त्रीय विधान को नई दिशा प्रदान की।

अभिनवगुप्त का नाट्यशास्त्र की टीका 'अभिनव भारती' तथा ध्वन्यालोक की टीका 'लोचन' के कारण साहित्यशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान है।

आचार्य क्षेमेन्द्र का 'सुवृत्ततिलक' नामक ग्रन्थ छन्दशास्त्र विषयक ग्रन्थ है।

आचार्य मम्मट के ग्रन्थ 'काव्यप्रकाश' की इतनी महत्ता है कि इस पर संस्कृत में 70 से अधिक टीकाओं की रचना की गयी।

आचार्य विश्वनाथ ने अपने ग्रन्थ 'साहित्यदर्पण' के माध्यम से काव्य की परिभाषा 'वाक्यं रसात्मकं काव्यं स्थापित की।

आचार्य जगन्नाथ ने रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाले शब्द को काव्य कहा।

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