बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 संस्कृत बीए सेमेस्टर-4 संस्कृतसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 संस्कृत - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 1
काव्यशास्त्र परम्परा तथा प्रमुख
काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ एवं आचार्य
जहाँ काव्यतत्वों का सम्यक् विश्लेषण हो तथा उनके सौन्दर्य को परखा जाए उसे 'काव्यशास्त्र' कहते हैं। काव्यशास्त्र को अलंकारशास्त्र, साहित्यशास्त्र, क्रियाकल्प आदि अनेक नामों से जाना जाता है। काव्यशास्त्र में रीति, गुण, अलंकार आदि काव्य तत्वों का विवेचन होता है साथ ही काव्य के गुण तथा दोषों पर भी चिन्तन होता है। काव्यकृति मूलतः तिहरे आयाम से जुड़ी है- काव्य, काव्यकर्ता (कवि), काव्यानुशीलक। काव्य के विभिन्न अंगों पर बल देने से विभिन्न सम्प्रदायों की उत्पत्ति हुई। इन सम्प्रदाओं ने अपने नाम के अनुसार तत्तत् (वे गुण) 'काव्य की आत्मा' अर्थात् मुख्य प्राण के रूप में स्वीकार किया गया। प्रत्येक सम्प्रदाय के प्रतिष्ठाता विभिन्न आचार्य हुए जिन्होंने काव्य के उस अंङ्ग को अपने काव्य में मुख्य माना। मुख्य रूप से सम्प्रदायों की संख्या छः मानी गई-
सम्प्रदाय |
प्रवर्तक आचार्य |
1. रस सम्प्रदाय | आचार्य भरत |
2. अलंकार सम्प्रदाय | आचार्य भामह |
3. रीति सम्प्रदाय | आचार्य वामन |
4. ध्वनि सम्प्रदाय | आचार्य आनन्दवर्धन |
5. वक्रोक्ति सम्प्रदाय | आचार्य कुन्तक |
6. औचित्य सम्प्रदाय | आचार्य क्षेमेन्द्र |
प्रस्तुत अध्याय में इन आचार्यों तथा उनके ग्रन्थों के विषय में बताया गया है।
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