लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 संस्कृत

बीए सेमेस्टर-4 संस्कृत

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2749
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-4 संस्कृत - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

अलंकार शब्द और अर्थ का विन्यास है। यह शब्दगत और अर्थगत होता है।

यह विन्यास मनोहर अर्थात् चमत्कारपूर्ण होता है।

शब्द और अर्थ का विन्यास कविपरम्परा अथवा प्रौढ़ कल्पना के अनुसार होता है।

काव्य में अलंकार की स्थिति वही है, जो शरीर पर धारण किये गये हार आदि आभूषणों की।

आचार्य विश्वनाथ ने अनुप्रास अलंकार के पांच भेद बताये हैं।

आचार्य विश्वनाथ के काव्यशास्त्र विषयक ग्रन्थ का नाम साहित्य दर्पण है।

अनुप्रासः शब्द साम्यं वैषम्योऽपि स्वरस्य यत् साहित्यदर्पणकार के अनुप्रास अलंकार का लक्षण है।

'शब्दार्थयोः औयनरुक्त्यंभेदे तात्पर्यमात्रतः 'लाटानुप्रास इत्युक्तः' साहित्य दर्पणकार के अनुसार लाटानुप्रास कालप्रण है।

'केशः काशत्तवकविकासः' में अनन्यानुप्रास अलंकार है।

'नव पलाशपलाशवनं' में यमक अलंकार है।

'स्फुट परागपरागपंकजम्' में यमक अलंकार है।

'श्लिष्टैपदैरनेकार्थाभिद्याने श्लेष इष्यते' श्लोक अलंकार का लक्षण है।

साम्यं वाच्यमवैधम्र्म्यं वाक्यैक्य उपमाद्दयोः 'उपमालंकार का लक्षण है।

चन्द्रमिव मुखमाहलादकमेतत्' में पूर्णोपमालंकार है।

'सर्व एव सुधाकिरः' में प्रत्यय श्लेष एवं वचन श्लेष अलंकार है।

मालोपमा पदेकस्योपमानं बह दृश्यते यह विश्वनाथ आचार्य के अनुसार मालोपमा का लक्षण है।

'भवेत् सम्भावनोत्प्रेक्षा प्रकृतस्य परात्मना' यह उत्प्रेक्षा अलंकार का लक्षण है।

आचार्य विश्वनाथ ने श्लेषालंकार के आठ भेद बताये हैं।

रूपकं रूपितारोपो विषये निरुपहनवे' रूपक अलंकार का लक्षण है।

आचार्य विश्वनाथ के अनुसार रूपक अलंकार के मुख्य दो भेद होते हैं।

आचार्य विश्वनाथ के अनुसार साङ्गरूपक में दो समस्त वस्तुविषयक तथा एक देशवितर्ति भेद होते हैं।

नाटक, प्रकरण, भाण, प्रहसन, डिम, व्यायोग, समवकार, वीथी, अंक, ईहामृग रूपक के ये दस भेद हैं।

'प्रतिकूलतामुपगते हि विधौ' में विधौ' में श्लिष्ट पद है।

अनेकार्थक शब्दों के द्वारा जब अनेक अर्थों को कहा जाता है तब श्लेष अलंकार है।

उपमा के चार अंग उपमेय, उपमान, समान धर्म और उपमानवाचक शब्द हैं।

अनुप्रास अलंकार में व्यञ्जन की समानता होती है।

'आवहे जगदुद्भण्डराजमण्डलराहवे' में रूपक अलंकार है।

किसी वस्तु को निश्चय रूप से दूसरी वस्तु समझ लेने पर भ्रान्तिमान् अलंकार है।

'मन्ये, ध्रुवम्, शङ्के' से उत्प्रेक्षा अलंकार व्यंजित होता है।

सिद्धत्वेऽयवसायस्य' अतिशयोक्ति अलंकार है।

प्रश्नपूर्वक जहाँ कही हुई वस्तु से अन्य की शब्द के द्वारा व्यावृत्ति होती है, वहाँ परिसंख्या अलंकार होता है।

उत्प्रेक्षा अलंकार में उपमान की संभावना होती है।

बच्चे आदि की चेष्टाओं के वर्णन में स्वभावोक्ति अलंकार होता है।

'औपम्यगम्य' दृष्टान्त अलंकार होता है।

आधिक्यमुपमयेस्योपमानान्यूनताथवा व्यतिरेक में व्यतिरेकालंकार का लक्षण है।

वृत्यनुप्रास में एक या अनेक वर्ण की कई बार आवृत्ति होती हैं।

आवृत्ति आदि से अन्त तक अथवा वृत्ति के अनुसार होती है।

लाटानुप्रास में अर्थ वही रहता है, केवल अभिप्राय या अन्वय बदल जाता है जबकि यमक में अर्थ भिन्न होता है या एक बार वर्णसमूह सार्थक होता है तो दूसरी बार निरर्थक।

लाटानुप्रास में शब्द की आवृत्ति होती है।

अपहनुति में प्रस्तुत का निषेध होता है, रूपक में निषेध नहीं होता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book