बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
शिक्षा मनोविज्ञान को वर्तमान में व्यावहारिक विज्ञानों की श्रेणी में रखा जाने लगा है।
विज्ञान होने के कारण शिक्षा मनोविज्ञान में अध्ययन के लिए अनेक विधियों का विकास हुआ है।
शिक्षा मनोविज्ञान की विधियां वैज्ञानिक है।
शिक्षा मनोविज्ञान, विज्ञान की ही विधियों का प्रयोग करता है।
विश्वसनीयता, यथार्थता विशुद्धता, वस्तुनिष्ठता और निष्पक्षता, विज्ञान की विधियों की मुख्य विशेषता है।
वैज्ञानिक पद्धति का मूल उसकी वस्तुनिष्ठता है।
काम्टे ने वैज्ञानिक अध्ययन के लिए धर्म, दर्शन, पूर्वाग्रह, कल्पना आदि को निरर्थक माना है।
पर्यवेक्षण प्रयोग, परीक्षण, वर्गीकरण जैसी व्यवस्थित प्रणाली शिक्षा मनोविज्ञान को व्यवहारिक वैज्ञानिक पद्धति प्रदान करती है।
शिक्षा मनोविज्ञान समाज विज्ञान की एक शाखा है।
समाज विज्ञान का उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में उत्पन्न समस्याओं एवं घटनाओं का अध्ययन करना भी है।
जार्ज लुण्ड वर्ग के अनुसार, "सामाजिक वैज्ञानिकों में यह विश्वास पुष्ट हो गया है कि उनके सामने जो समस्यायें हैं, उनको हल करने के लिए सामाजिक घटनाओं के निष्पक्ष एवं व्यवस्थित, निरीक्षण, सत्यापन, वर्गीकरण तथा विश्लेषण का प्रयोग करना होगा। ठोस एवं सफल होने के कारण ऐसे दृष्टिकोण को वैज्ञानिक पद्धति कहा जाता है।"
शिक्षा मनोविज्ञान में अध्ययन तथा अनुसंधान के लिए जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है उन्हें दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
(अ) आत्मनिष्ठ विधियाँ (Subjective methods)
(ब) वस्तुनिष्ठ विधियाँ (Objective methods)
आत्मनिष्ठ विधियाँ दो प्रकार की हैं-
(i) आत्म निरीक्षण विधि (Introspective methods)
(ii) गाथा वर्णन विधि (Anecdotal method)
शिक्षा मनोविज्ञान की वस्तुनिष्ठ विधियाँ निम्न हैं-
1. प्रयोगात्मक विधि (Experimental method)
2. निरीक्षण विधि (Observational method)
3. जीवन इतिहास विधि (Case history method)
4. उपचारात्मक विधि (Clinical method)
5. विकासात्मक विधि (Developmental method)
6. मनोविश्लेषण विधि (Psycho analytic method)
7. तुलनात्मक विधि (Comparative method)
8. सांख्यिकीय विधि (Statistical method)
9. परीक्षण विधि (Test method)
10. साक्षात्कार विधि (Interview method)
11. प्रश्नावली विधि (Questionaire method)
12. विभेदात्मक विधि (Different method) तथा
13. मनोभौतिक विधि (Psycho Physical method)
आत्मनिरीक्षण का अर्थ है - "मस्तिष्क द्वारा अपनी स्वयं की क्रियाओं का निरीक्षण करना।"
आत्म निरीक्षण विधियों के अन्तर्दर्शन अथवा अन्तर्निरीक्षण विधि भी कहा जाता है।
स्काउट के अनुसार -"अपनी मानसिक क्रियाओं का क्रमबद्ध अध्ययन ही अन्तर्निरीक्षण कहलाता है।
वुड्सवर्थ ने इस विधि का आत्मनिरीक्षण कहा है।
आत्मगत होने के कारण आत्मनिरीक्षण या अन्तर्दर्शन विधि अधिक उपयोगी होती है।
आत्मनिरीक्षण मनोविज्ञान की परम्परागत विधि है।
इसका नाम इंग्लैण्ड का प्रख्यात दार्शनिक लॉक के साथ जुड़ा हुआ है।
लॉक के अनुसार - यह मष्तिष्क द्वारा अपनी स्वयं की क्रियाओं का निरीक्षण है।
पूर्व काल में मनोवैज्ञानिक अपनी मानसिक और प्रतिक्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए इसी विधि पर निर्भर थे।
डगलस तथा हालैण्ड के अनुसार - "मनोविज्ञान ने इस विधि का प्रयोग करके हमारे मनोविज्ञान के ज्ञान में वृद्धि की हैं।"
इसके अनुसार यह विधि खर्चीली नहीं है क्योंकि इसमें किसी विशेष यंत्र या सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
रास के शब्दों में - "मनोवैज्ञानिक का स्वयं का मस्तिष्क प्रयोगशाला होता है और क्योंकि वह सदैव उसके साथ रहता है और इसलिए वह किसी भी समय अपनी इच्छानुसार निरीक्षण कर सकता है।"
वैज्ञानिकता का अभाव, ध्यान का विभाजन, असामान्य व्यक्तियों तथा बालकों के लिए अनुपयुक्तता, निरीक्षण की असम्भवता तथा मस्तिष्क की वास्तविक दशा के ज्ञान का असंभव होना इस विधि के मुख्य दोष हैं।
गाथा वर्णन पूर्व अनुभव या व्यवहार का लेखा तैयार करना है।
स्किनर के अनुसार - गाथा वर्णन की आत्मनिष्ठता के कारण इसके परिणाम पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।
प्रयोगात्मक विधि एक प्रकार की नियंत्रित निरीक्षण की विधि है।
इस विधि में प्रयोगकर्ता स्वयं अपने द्वारा निर्धारित की हुई परिस्थितियों या वातावरण में किसी व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है या किसी समस्या के संबंध में तथ्य एकत्र करता है।
यह एक वैज्ञानिक विधि है, इसके निष्कर्षों की जांच संभव है।
इसके निष्कर्ष विश्वसनीय होते हैं और यह शिक्षा संबंधी समस्याओं के समाधान में उपयोगी है।
कुछ दोषों के बावजूद कोई अनुसंधानों के लिए प्रयोगात्मक विधि को बहुधा सर्वोत्तम विधि माना जाता है।
इसके द्वारा बालकों के असामान्य व्यवहारों को ज्ञात कर उसको सामान्य बनाने की दिशा में पर्याप्त कार्य किया जा सकता है।
निरीक्षण का सामान्य तात्पर्य है-ध्यानपूर्वक देखना।
बहिर्दर्शन या निरीक्षण विधि के द्वारा हम किसी व्यक्ति के व्यवहार, आचरण, क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं आदि को ध्यानपूर्वक देखकर उसकी मानसिक दशा का अनुमान लगा सकते हैं।
व्यवहार वादियों ने निरीक्षण विधि को विशेष महत्व दिया हैं।
कोलेसनिक ने निरीक्षण को दो प्रकार का माना है -
( 1 ) औपचारिक तथा
(2) अनौपचारिक।
औपचारिक निरीक्षण नियंत्रित तथा अनौपचारिक निरीक्षण अनियंत्रित दशाओं में किया जाता है।
अनौपचारिक निरीक्षण शिक्षक के लिए अधिक उपयोगी है।
बालकों का उचित दिशाओं में विकास, शिक्षा के उद्देश्यों पाठ्यक्रम आदि में परिवर्तन तथा बाह्य अध्ययन के लिए उपयोगिता आदि इसके गुण है।
असत्य निष्कर्ष, आत्मनिष्ठता तथा स्वाभाविक त्रुटियाँ आदि इसके दोष हैं।
क्रो एण्ड क्रो के अनुसार - "सतर्कता से नियंत्रित की गयी दशाओं में भली भांति प्रशिक्षित तथा अनुभवी मनोवैज्ञानिक या शिक्षक अपने निरीक्षण से छात्र के व्यवहार के बारे में बहुत कुछ जान सकता है।"
क्रो तथा क्रो के अनुसार - "जीवन इतिहास विधि का मुख्य उद्देश्य किसी कारण का निदान करना है।"
उपचारात्मक विधि के प्रयोजन के बारे में स्किनर ने लिखा हैं कि "उपचारात्मक विधि साधारणतः विशेष प्रकार के सीखने, व्यक्ति या आचरण संबंधी जटिलताओं का अध्ययन करने तथा उसके अनुकूल विभिन्न प्रकार की उपचारात्मक विधियों का प्रयोग करने के लिए काम में लायी जाती है।"
उपचारात्मक विधि का प्रयोग करने वालों का उद्देश्य यह मालूम करना होता है कि व्यक्ति की विशिष्ट आवश्यकतायें क्या हैं और उसमें उत्पन्न होने वाली जटिलताओं का क्या कारण है और उनको दूर करने के लिए व्यक्ति को किस प्रकार सहायता दी जा सकती है।
उपचारात्मक विधि विद्यालयों की निम्न समस्याओं को दूर करने में काफी सहायक साबित हुई है-
1. पढ़ने में बेहद कठिनाई का अनुभव करने वाले बालक,
2. बेहद हकलाने वाले बालक,
3. बहुत पुरानी आपराधिक प्रवृत्ति वाले बालक, तथा
4. गंभीर संवेगों का शिकार होने वाले बालक।
विकासात्मक विधि बालक की वृद्धि तथा विकास क्रम का अध्ययन करने में उपयोगी है।
विकासात्मक विधि को जनेटिक विधि भी कहा जाता है।
यह विधि निरीक्षण विधि से बहुत मिलती जुलती है।
इस विधि में बालक के शारीरिक तथा मानसिक विकास का लेखा तैयार किया जाता है।
गैरेट के अनुसार - "इस प्रकार के अनुसंधान का अनेक वर्षों तक किया जाना आवश्यक है। इसलिए यह बहुत महंगा है।
मनोविश्लेषण विधि व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन करके उपचार करने से संबंधित है।
मनोवैज्ञानिक विधि का जनक फ्रायड था।
इस विधि में अचेतन मन का अध्ययन करके उसकी अतृप्त इच्छाओं की जानकारी प्राप्त की जाती है। तत्पश्चात् उन इच्छाओं का परिष्कार या मार्गान्तीकरण करके व्यक्ति का उपचार किया जाता है।
तुलनात्मक विधि में व्यवहार संबंधी समानताओं एवं असमानताओं का अध्ययन किया जाता है।
तुलनात्मक विधि का प्रयोग अनुसंधान के लगभग सभी क्षेत्रों में किया जाता है।
परीक्षण विधि में व्यक्ति की विभिन्न योग्यताओं को जानने के लिए परीक्षा की जाती है। यह विधि आधुनिक युग की देन है।
वर्तमान में, अनेक परीक्षण विधियों का निर्माण किया गया है यथा बुद्धि परीक्षा, ज्ञान परीक्षा, व्यक्तित्व परीक्षा आदि।
प्रश्नावली विधि में प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करके समस्या के संबंध में तथ्य एकत्र किया जाता है।
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