बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
अच्छे शिक्षण अधिगम की विशेषताएँ-
निर्देशात्मक (Suggestive) होता है।
प्रेरणादायक (Stimulating) होता है।
सुव्यवस्थित और सुनियोजित होता है।
प्रगति पर आधारित होता है।
सहानुभूतिपूर्ण होता है।
सहयोग पर आधारित होता है।
बाल-केंन्द्रित एवं मनोवैज्ञानिक होता है। बालक में आत्मविश्वास उत्पन्न करता है।
निदानात्मक और उपचारात्मक होता है।
बालक के पूर्व ज्ञान को ध्यान में रखकर दिया जाता है।
शिक्षण प्रक्रिया का संचालन मानव व्यवहार और उसकी संवेदनाओं से होता है। शिक्षण के क्षेत्र में शैक्षिक प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के उद्देश्य से शिक्षण को उद्देश्य केन्द्रित बनाया जाने लगा है-
शिक्षण एक सामाजिक घटना (Phenomena) है। इसका अर्थ स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित परिभाषाओं को देखा जा सकता है।
डॉ० माथुर - "वर्तमान समय में शिक्षण से यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि बालक के मस्तिष्क को थोथे, अव्यावहारिक ज्ञान से भर दिया जाए। अब तो शिक्षण का अर्थ है कि बालक को ऐसे अवसर प्रदान किए जाएँ जिससे बालक अपनी अवस्था एवं प्रकृति के अनुरूप समस्याओं को हल करने की क्षमता प्राप्त कर ले। वह अपने आप योजना बना सके, प्रदत्त सामग्री एकत्र कर सके, उसे सुसंगठित कर सके और फल को प्राप्त कर सके जिसे वह फिर प्रयोग में ला सके।"
मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों के आधार पर ऐसे कारकों का अध्ययन किया है, जो सामान्य रूप से सभी व्यक्तियों के अधिगम को प्रभावित करते हैं। अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों का समुचित ज्ञान हो जाने पर ही अधिगम की प्रक्रिया में उन्नति की जा सकती है। इन कारकों में प्रेरणा, रुचि, ध्यान, बुद्धि, स्वासथ्य, विषय का स्वरूप और अधिगम की विधियाँ प्रमुख हैं।
अधिगम संबंधी ज्ञान सामग्री शिक्षण कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। एक अध्यापक उनका उपयोग करके शिक्षण को प्रभावशाली बना सकता है।
अध्यापक छात्र में होने वाले परिवर्तनों की अपेक्षाओं की तुलना में अपने अध्यापन की सार्थकता का मूल्यांकन कर सकता है या छात्रों के मूल्यांकन परिणाम के आधार पर अधिगम विधियों की उपयोगिता अथवा अनुप्रयोगिता का निर्धारण कर सकता है।
शिक्षण और अधिगम में संबंध
शिक्षण-अधिगम के द्वारा नवीन अधिगम का विकास किया जा सकता है।
यह शिक्षा में सामाजिकता को महत्व देता है।
यह शिक्षा को द्वि-मुखी प्रक्रिया की अंतःक्रिया के रूप में स्वीकार करता है।
इसके द्वारा अनेक नवीन अवधारणाओं का विकास होता है।
इससे शिक्षण की दशाओं में पर्याप्त परिवर्तन हुआ है।
इसके द्वारा शिक्षण के अनेक प्रारूप विकसित हुए हैं।
इसके द्वारा अधिगम हेतु परिपक्वता पर बल दिया जाने लगा है।
यह बालकों के गुणों को अधिगम में प्रयोग करता है।
यह शिक्षण दर्शन और सिद्धान्तों के निर्माण में सहयोग देता है।
अभिप्रेरणा की रचना, योग्यता, क्षमता तथा उद्दीपन में भी अन्तर आया है।
यह सार्थक अधिगम उपयोगी सिद्ध हुआ है।
इससे अनेक शैक्षिक आविष्कार हुए हैं।
इससे शैक्षिक लक्ष्यों को आसानी से निर्धारित किया जाने लगा है।
इसके द्वारा मानव के ज्ञान, बौद्धिक योग्यता तथा क्षमता का विकास किया गया है।
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