लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र

बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2748
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

 

अध्याय - 15
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया
(Teaching Learning Process)

शिक्षण, शिक्षा प्रक्रिया का एक प्रमुख अंग है। इसके द्वारा व्यक्ति नवीन ज्ञान अर्जित करने में सफल और सक्षम होता है। शिक्षण प्रक्रिया का संचालन मानव व्यवहार और उसकी संवेदनाओं से होता है। शिक्षण के क्षेत्र में शैक्षिक प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के उद्देश्य से शिक्षण को उद्देश्य केन्द्रित बनाया जाने लगा। यही नहीं मनोविज्ञान के क्षेत्र में शिक्षा की प्रक्रिया पूर्णतः मनोवैज्ञानिक मानी गई और इसके विभिन्न अंगों जैसे - शिक्षक, शिक्षार्थी, पाठ्यक्रम और शिक्षा प्रक्रिया को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया। आज यह सिद्ध हो चुका है कि अधिगम को. महत्त्व दिया जाए।

शिक्षण के सिद्धान्त और स्वरूप पर विचार करने से पूर्व यह आवश्यक है कि शिक्षण के अर्थ को समझ लिया जाए।

शिक्षण

अधिकांश व्यक्तियों की शिक्षण के विषय में भ्रमपूर्ण धारणा है। उनका मानना है कि शिक्षण का आशय रटने या ज्ञान को मस्तिष्क में ठूसने से है परन्तु वास्तव में यह गलत है। शिक्षण एक सामाजिक घटना (Phenomena) है। इसका अर्थ सपष्ट करने के लिए निम्नलिखित परिभाषाओं को देखा जा सकता है-

डॉ० माथुर - "वर्तमान समय में शिक्षण में यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि बालक के मस्तिष्क को थोथे, अव्यावहारिक ज्ञान से भर दिया जाए, अब तो शिक्षण का अर्थ है कि बालक को ऐसे अवसर प्रदान किए जाए जिससे बालक अपनी अवस्था एवं प्रकृति के अनुरूप समस्याओं को हल करने की क्षमता प्राप्त कर लें। वह अपने आप योजना बना सके, प्रदत्त सामग्री एकत्र कर सके, उसे सुसंगठित कर सके और फल को प्राप्त कर सके जिसे वह फिर प्रयोग में ला सके।"

थामस ई० क्लेटन (Thomes E. Clayton) - "शिक्षण वह कौशल है जो छात्रों में रुचि तथा धारणा को उद्दीप्त करने एवं ज्ञान वर्धन करने हेतु प्रयुक्त किया जाता है। वह दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य सम्प्रेषण है। इसमें एक व्यक्ति दूसरे से सीखने में संलग्न रहता है। यह विद्यालय में किया जाने वाला अभ्यास है जिसमें पहले से शिक्षित व्यक्ति बच्चों को शिक्षा देता है।"

बी०एफ० स्किनर - "शिक्षण उन आवश्यक परिस्थितियों की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत छात्र सीखते हैं, वे स्वाभाविक वातावरण में शिक्षण के बिना ही सीखते हैं। शिक्षक उन विशेष परिस्थितियों की व्यवस्था करते हैं जो सीखने के कार्य को तेज करें। ये व्यवहार की अभिव्यक्ति में तेजी लाती है, उसे निश्चित करती है।"

 

 

क्रम
टीचिंग
कंडीशनिंग
1.
 शिक्षण का उद्देश्य क्षमता और बुद्धि का विकास करना है। इसका उद्देश्य व्यवहार और सीखने की आदतों में संशोधन करना है।
2.
इसका व्यापक दायरा है। कंडीशनिंग का दायरा अपेक्षाकृत संकीर्ण है।
3.
शिक्षण के लिए सुदृढ़ीकरण आवश्यक नहीं है। सुदृढ़ीकरण यहाँ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
4.
पढ़ाए गए विषय की पुनरावृत्ति सिखाने में जरूरी नहीं है। अधिग्रहित किए जाने वाले व्यवहार की पुनरावृत्ति द्वारा कंडीशनिंग की जाती है।
5.
शिक्षण में, पाठ्यक्रम विस्तृत है। कंडीशनिंग में, पाठ्यक्रम तय होता है।
6.
शिक्षण में गुणात्मक और मात्रात्मक  तकनीकों का उपयोग मूल्यांकन के लिए किया जाता है।  कंडीशनिंग में मूल्यांकन एक व्यवहार या आदत के अधिग्रहण के आधार पर किया जाता है।
7.
शिक्षण विभिन्न स्तर के साथ एक व्यापक प्रक्रिया है। कंडीशनिंग को शिक्षण की पूरी प्रक्रिया का सबसे निचला स्तर माना जाता है।
8.
शिक्षण में लगातार बदलाव देखा गया है। कोई तैयारी या प्रशिक्षण, विशेष रूप से शरीर का एथलेटिक प्रशिक्षण

शिक्षण अधिगम में शिक्षक की भूमिका

बच्चे अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं करते हैं। इस क्रम में अध्यापक एक सुगमकर्त्ता के रूप में बच्चों की ज्ञान निर्माण प्रक्रिया में सहभागिता निभाता है जिससे सीखना बच्चों के लिए अर्थपूर्ण बन सके। इस विचार को संरचनावाद (Constructivism) के नाम से जाना जाता है। इसके लिए गहन संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है। इसमें सीखने-सिखाने की प्रक्रिया लोकतांत्रिक होनी चाहिए। एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें बच्चे को अपनी समझ ( बहुत बार नासमझी) को अभिव्यक्त करने के अवसर हों, दूसरों की बात सुनने का हुनर व धैर्य हों और सबसे महत्वपूर्ण कि बच्चे को अपनी हँसी उड़ाए जाने का भय न हो। सहमत - असहमत होने की आजादी भी हो। प्रस्तुत आलेख कक्षा-कक्ष के अनुभवों को संरचनावाद के आलोक में समझने का प्रयास हैं।

ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया

बच्चे अपने ज्ञान की संरचना कैसे करते हैं? अपने आसपास की दुनिया को कैसे समझते हैं? इन सभी प्रक्रियाओं को समझने के लिए हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि बच्चे ज्ञान निर्माण की इस प्रक्रिया में किस प्रकार शामिल होते हैं। इस प्रक्रिया को समझने से कक्षा में शिक्षण गतिविधियाँ निर्धारित करने में सहायता मिल सकती है।

संज्ञान व्यवस्थित अनुभव का नाम है। प्रत्येक अनुभव संज्ञान में तब्दील नहीं होता है परन्तु संज्ञान के लिए अनुभव अनिवार्य है। बच्चे अपने अनुभवों को सूत्रबद्ध करके सार्थक ज्ञान की रचना कर सकते हैं। इन्द्रियगत अनुभवों की ज्ञान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बच्चों का अनुभव अवधारणाओं के माध्यम से संज्ञान में तब्दील होता है और भाषा के माध्यम से इसे ज्ञान के रूप में संजोया जाता है।

बच्चे अपने ज्ञान की संरचना स्वयं करते हैं, इस पर सैद्धान्तिक समझ के बावजूद मन में ७ एक कौतूहल बना रहता है कि यह कक्षा-कक्ष में किस प्रकार घटित हो सकता है। एक विद्यालय में कक्षा-कक्ष में इसे व्यावहारिक रूप से घटित होते देखने का अवसर मिला।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book