बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
आदत डालने से पहले बालक को उसकी उपयोगिता का ज्ञान आवश्यक रूप से करा देना चाहिए।
आदत को डालने के लिए और उसे स्थायी रूप से शामिल करने के लिए प्रतिदिन अभ्यास किया जाना चाहिए। अभ्यास करने से आदतें दृढ़ हो जाती हैं।
संलग्नता विशेष रूप से आदत निर्माण में महत्वपूर्ण है जब तक नई आदत दृढ़ न हो जायें तब तक उसमें शिथिलता नहीं आने देना चाहिए।
जिस कार्य को करने की हमें आदत पड़ जाती है उसमें हम रुचि लेने लगते हैं। इसी रुचि के कारण ही आदतों का निर्माण हो जाता है।
आदतें दो प्रकार की होती हैं अच्छी और बुरी। जहाँ अच्छी आदतें उपयोगी तथा बुरी आदतें जीवन के लिए हानिकारक होती हैं।
वैलेन्टाइन के अनुसार, आदतों के निम्नलिखित भेद होते हैं-
(1) यांत्रिक भेद - ऐसी आदतें बिना प्रयास के पड़ जाती हैं।
(2) स्नायु मण्डल सम्बन्धी आदतें ऐसी आदतें - सांवेगिक असन्तुलन को प्रकट करती हैं।
(3) शारीरिक इच्छापूर्ति सम्बन्धी आदतें - इसमें शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है और एक प्रकार के आनन्द की अनुभूति होती है।
(4) भाषा सम्बन्धी आदतें - इनका सम्बन्ध बोलने से तथा शब्दों के सही या गलत प्रकार के उच्चारण से होता है। उदाहरण के तौर पर कक्षा में कुछ बालक घरेलू ढंग की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हैं जो शैक्षिक दृष्टि से त्रुटिपूर्ण होती है। यदि अध्यापक इनका सुधार न करें तो उन्हें गलत बोलने की आदत पड़ जाती है।
(5) नैतिक भावना सम्बन्धी आदतें - इन आदतों का सम्बन्ध नैतिक गुणों से होता है जैसे परोपकार तथा सद्चारण आदि।
आदत चरित्र के निर्माण में सहायक है इसलिए बालकों को उच्चकोटि के आदर्शों और विचारों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। अच्छी आदतें नैतिक और चारित्रिक गुणों के विकास में सहायक होती हैं। जिसके कारण बालकों में सद्गुण का विकास होता है।
आदतों का बालक के बौद्धिक विकास पर विशेष महत्व है जिसके कारण बालक को ज्ञान प्राप्त करने में सरलता होती है। आदत होने के कारण बालक को ज्ञानार्जन में रुचि उत्पन्न होती है।
बालक के सर्वागीण विकास को ध्यान में रखते हुए शिक्षक के आदत निर्माण सम्बन्धी नियमों का पालन करने में बालकों को उपयुक्त तथा रोचक विधियों द्वारा सहायता देनी चाहिए।
जेम्स ड्रेवर के अनुसार - "पहले से चलते चले आ रहे कार्य में खर्च की हुई शक्ति के कारण कार्य-कुशलता क्षमता अथवा उत्पादन में कमी को थकान कहते हैं। "
"Fatigue means diminished productivity efficiency an ability to carry on work because of previous expenditure of energy in doing work."
- James Draver
बोरिंग एवं अन्य के अनुसार - "लगातार कार्य करने के परिणामस्वरूप कुशलता में कमी आ जाना थकान है।"
"Fatigue is best defined as reduction in efficiency resulting from continuous work."
- Boring and others
मानसिक थकान के निम्नलिखित लक्षण हैं-
1. कार्य के प्रति रुचि न होना।
3. त्रुटियाँ अधिक होना।
5. सिर में भारीपन होना।
2. ध्यान बार-बार विचलित होना।
4. मस्तिष्क की नसों में तनाव होना।
6. सामान्य बातों में गुस्सा आना अथवा चिड़चिड़ापन होना।
7. अपने विषय को ठीक से न समझ पाना।
8. कार्य से सम्बन्धित उपकरण इधर-उधर होना।
शारीरिक थकान के लक्षणों का वर्णन निम्नलिखित है-
1. शक्ति, कार्यकुशलता, क्षमता का अभाव होना।
2. शरीर का भारीपन होना।
3. कार्य करने के प्रति उदासीनता।
4. कार्य को बीच-बीच में बन्द कर देना।
5. कार्य पर ध्यान केन्द्रित न होना।
6. चेहरे पर फीकापन होना।
7. सम्पूर्ण शरीर असन्तुलित दशा में होना।
थकान शरीर की वह अवस्था है जब निरन्तर शारीरिक कार्य करने के कारण शरीर की शक्ति कम हो जाती है. अंग शिथिल हो जाते हैं और व्यक्ति कार्य न करके विश्राम करना चाहता है।
थकान मस्तिष्क की वह अवस्था है जब निरन्तर मानसिक कार्य करने के कारण मस्तिष्क का ध्यान, चिन्तन आदि शक्तियाँ कम हो जाती हैं और व्यक्ति कार्य को स्थगित करके कुछ और. करना चाहता है।
शारीरिक थकान को मानसिक थकान का कारण माना जाता है।
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