बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
संवेदना की विशेषतायें
गुण ( Quality ) - प्रत्येक संवेदना में एक विशेष गुण पाया जाता है। एक ज्ञानेन्द्रिय द्वारा अनुभव की जाने वाली दो संवेदनाओं में भी समानता नहीं होती है। उदाहरणार्थ दो फलों की सुगन्ध और दो मनुष्यों की आवाज में भिन्नता होती है।
तीव्रता (Intensity) - प्रत्येक संवेदना में तीव्रता की विशेषता होती है। दो संवेदनायें समान रूप से तीव्र नहीं होती है। उनमें से एक प्रबल और एक निबल होती है। उदाहरणार्थ लाल और सफेद रंगों की तीव्रता में अन्तर होता है।
अवधि ( Duration) - प्रत्येक संवेदना की एक निश्चित अवधि होती है। उसके बाद व्यक्ति उसका अनुभव नहीं करता है। कुछ संवेदनायें अल्पकालीन होती हैं और कुछ दीघकालीन। उदाहरणार्थ एक मिनट सुनी जाने वाली आवाज की संवेदना अल्पकालीन और एक घंटा सुनी जाने वाली आवाज की संवेदना दीर्घकालीन होती है।
स्पष्टता (Clearness) - प्रत्येक संवेदना में स्पष्टता की विशेषता पाई जाती है। अल्पकालीन संवेदना की तुलना में दीर्घकालीन संवेदना अधिक स्पष्ट होती है। इसके अलावा जिस संवेदना पर हमारा ध्यान जितना अधिक केंद्रित होता है उतनी ही अधिक उसमें स्पष्टता होती है।
स्थानीय चिन्ह (Local sign ) - प्रत्येक संवेदना में स्थानीय चिन्ह की विशेषता होती है, उदाहरणार्थ यदि हमारे हाथ को किसी स्थान पर दबाया जाये तो हम बता सकते हैं कि इस स्पर्श- संवेदना का स्थान कौन-सा है।
विस्तार (Extension) - यह विशेषता प्रत्येक संवेदना में नहीं पाई जाती है। ज्ञानेन्द्रिय के कम क्षेत्र को प्रभावित करने वाली संवेदना का विस्तार कम और अधिक क्षेत्र को प्रभावित करने वाली संवेदना का विस्तार अधिक होता है। उदाहरणार्थ सुई की नाक से होने वाली संवेदना की तुलना में तकुए की नाक से होने वाली संवेदना का विस्तार अधिक होता है।
संवेदना व प्रत्यक्षीकरण में अन्तर
संवेदना में मस्तिष्क निष्क्रिय रहता है, प्रत्यक्षीकरण में सक्रिय रहता है।
संवेदना ज्ञान प्राप्ति की पहली सीढ़ी है, प्रत्यक्षीकरण दूसरी सीढ़ी है।
संवेदना का पूर्व अनुभव से कोई सम्बन्ध नहीं होता है, प्रत्यक्षीकरण का होता है।
संवेदना द्वारा प्राप्त ज्ञान अस्पष्ट और अनिश्चित होता है, प्रत्यक्षीकरण द्वारा प्राप्त ज्ञान स्पष्ट और निश्चित होता है।
संवेदना में मानसिक क्रिया का रूप सरल और प्रारम्भिक होता है, प्रत्यक्षीकरण से जटिल और विकसित होता है।
संवेदना की मानसिक प्रक्रिया में केवल एक तत्त्व होता है-अनुभव प्रत्यक्षीकरण की मानसिक प्रक्रिया में दो तत्त्व होते हैं - किसी वस्तु को देखना और सका अर्थ लगाना।
संवेदना हमको ज्ञान का कच्चा माल देती है, प्रत्यक्षीकरण उस ज्ञान को संगठित रूप प्रदान करता है।
Bhatia के अनुसार - संवेदना किसी वस्तु के रंग- स्वाद - गंध आदि के समान गुण को बताती है, प्रत्यक्षीकरण, वस्तु और गुण में सम्बन्ध स्थापित करता है।
Sturt and Oakden के अनुसार - संवेदना किसी वस्तु का तात्कालिक अनुभव देती है, प्रत्यक्षीकरण पूर्व ज्ञान के आधार पर उस अनुभव की व्याख्या करता है।
James के अनुसार - संवेदना किसी वस्तु का केवल परिचय देती है, प्रत्यक्षीकरण उस वस्तु का ज्ञान प्रदान करता है।
प्रत्यक्षीकरण का शिक्षा में महत्त्व
प्रत्यक्षीकरण बालक के ज्ञान को स्पष्टता प्रदान करता है।
प्रत्यक्षीकरण बालक के विचारों का विकास करता है।
Reyburn के अनुसार - प्रत्यक्षीकरण बालक को ध्यान केन्द्रित करने का प्रशिक्षण देता है।
Reyburn के अनुसार - प्रत्यक्षीकरण व्याख्या करने की प्रक्रिया है। अतः यह बालक को व्याख्या करने के योग्य बनाता है।
प्रत्यक्षीकरण बालक को विभिन्न बातों का वास्तविक ज्ञान देता है। अतः उसका परोक्ष ज्ञान प्रभावपूर्ण बनता है।
प्रत्यक्षीकरण बालक की स्मृति और कल्पना की प्रक्रियाओं को क्रियाशील बनाता है।
फुटबाल का मैच देखने के बाद ही बालक उस पर कुशलतापूर्वक निबन्ध लिख सकता है।
प्रत्यक्षीकरण का आधार ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। अतः बालक की ज्ञानेन्द्रियों को सबल रखने और स्वस्थ बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
Bhatia के अनुसार - प्रत्यक्षीकरण ज्ञान का वास्तविक आरम्भ है। इस ज्ञान प्राप्ति में ज्ञानेन्द्रियों का मुख्य स्थान है। अतः बालक की ज्ञानन्द्रियों को उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
Dumville के अनुसार - प्रत्यक्षीकरण और गति से बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है । अतः बालक के प्रत्यक्षीकरण का विकास करने के लिए उसे शारीरिक गतियाँ करने के अवसर दिये जाने चाहिए। इस उद्देश्य से खेलकूद, दौड़-भाग आदि की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। बालक के प्रत्यक्षीकरण का विकास करने के लिए उसे अपने आस-पास के वातावरण संग्रहालय प्रसिद्ध इमारतों और अन्य उपयोगी स्थानों को देखने के अवसर दिये जाने चाहिए।
बालक के प्रत्यक्षीकरण का विकास करने के लिये उसे स्वयं क्रिया द्वारा ज्ञान प्राप्त करने, वास्तविक वस्तुओं का प्रयोग करने और बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिये ।
बालक के प्रत्यक्षीकरण का विकास करने के लिये शिक्षक को पढ़ाते समय विविध प्रकार की शिक्षण सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।
प्रत्यय की विशेषतायें
Boring, Langfeld & Weld के अनुसार- प्रत्यय किसी सामान्य वर्ग को व्यक्त करने वाला सामान्य विचार है। (General idea standing for a general class).
Ross के अनुसार - प्रत्यय का सम्बन्ध हमारे विचारों से होता है, चाहे वे वास्तविक हो या काल्पनिक।
प्रत्यय एक वर्ग की वस्तुओं के सामान्य गुणों और विशेषताओं का सामान्य ज्ञान प्रदान करता है।
Crow & Crow के अनुसार - प्रत्यय किसी वस्तु का सामान्य अर्थ होता है जिस शब्द या शब्द- समूह द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।
प्रत्यय का आधार अनुभव होता है। जैसे-जैसे बालक के अनुभवों में वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे उसके प्रत्ययों की संख्या बढ़ती जाती है।
Hurlock के अनुसार - प्रत्यय में जटिलता होती है जिसमें बालक के ज्ञान और अनुभवों के अनुसार परिवर्तन होता रहता है।
प्रत्यय आरम्भ में अस्पष्ट और अनिश्चित होते हैं। ज्ञान अनुभव और समय की गति के, साथ-साथ वे स्पष्ट और निश्चित रूप धारण करते चले जाते हैं।
Bhatia के अनुसार - प्रत्यय वस्तुओं, गुणों और सम्बन्धों के बारे में हो सकते हैं जैसे -
1. वस्तु (Objects) - घोड़ा, मेज, टोपी
2. गुण (Qualities) - लाली, स्वाद, ईमानदारी, समय - तत्परता
3. सम्बन्ध (Relations) - छोटा, बड़ा, ऊँचा ।
प्रत्यय का आधार हमारा विचार होता है। अतः जिस वस्तु के सम्बन्ध में हमारा जैसा विचार होता है, वैसे ही प्रत्यय का हम निर्माण करते हैं-"जाकी रही भावना जैसी।"
एक वस्तु के सम्बन्ध में विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न प्रत्यय हो सकते हैं। उदाहरणार्थ- दीवार पर बनी हुई किसी आकृति को अशिक्षित व्यक्ति-साधारण नमूना कलाकार - कला की वस्तु और दार्शनिक किसी सावभौमिक सत्य का प्रतीक समझ सकता है। इस प्रकार एक ही वस्तु - सामान्य प्रत्यय, कलात्मक प्रत्यय और दार्शनिक प्रत्यय का रूप धारण कर सकती है।
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