बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 6
संवेदना, प्रत्यक्षीकरण व प्रत्यय ज्ञान
(Sensation, Perception and Conception)
संवेदना का अर्थ व स्वरूप
हमें बाह्य संसार का सब ज्ञान ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त होता है। इसीलिए इनको 'ज्ञान के द्वार' (Gateways of knowledge) कहा जाता है। एक इन्द्रिय से केवल एक प्रकार का ज्ञान प्राप्त होता है, उदाहरणार्थ - आँखों से प्रकाश का और कानों से आवाज का ज्ञान।
जब बालक का जन्म होता है तब वह अपने वातावरण के बारे में कुछ भी नहीं जानता है। कुछ समय के बाद उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ कार्य करना आरम्भ कर देती हैं। फलस्वरूप उसे उनसे विभिन्न प्रकार का ज्ञान प्राप्त होने लगता है। इसी ज्ञान को 'संवेदना' या 'इन्द्रिय - ज्ञान' कहते हैं।
संवेदना का पूर्व ज्ञान या पूर्व अनुभव से कोई सम्बन्ध नहीं होता है, उदाहरणार्थ- शिशु के कानों में कोई आवाज आती है। वह उसे सुनता है पर वह यह नहीं जानता है कि आवाज किसकी है और कहाँ से आ रही है। उसे इस प्रकार की आवाज का न तो पूर्व ज्ञान होता है और न पूर्व अनुभव। आवाज के इसी प्रकार के ज्ञान को 'संवेदना' कहते हैं।
'संवेदना सबसे साधारण मानसिक अनुभव और मानसिक प्रक्रिया का सबसे सामान्य रूप है।' यह ज्ञान प्राप्ति की पहली सीढ़ी है। यह सभी प्रकार के ज्ञान में होती है। इसके अभाव में किसी प्रकार का अनुभव सम्भव नहीं है। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने संवेदना को केवल नवजात शिशु द्वारा अनुभव किया जाने वाला शुद्ध ज्ञान माना है। Ward उनसे सहमत न होकर लिखता है- "शुद्ध संवेदना, मनोवैज्ञानिक कल्पना है।"
हम संवेदना के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषायें दे रहे हैं-
1. जलोटा - "संवेदना एक साधारण ज्ञानात्मक अनुभव है।"
2. जेम्स - "संवेदनायें ज्ञान के मार्ग में पहली वस्तुयें हैं।"
3. डगलस व हालड - "संवेदना शब्द का प्रयोग सब चेतना - अनुभवों में सबसे सरलतम का वर्णन करने के लिये किया जाता है।"
संवेदना के प्रकार
ज्ञानेन्द्रियों के अलावा शरीर की मांसपेशियाँ, शरीर के भीतर के अंग आदि भी संवेदनाओं के कारण हैं। Herrick ने अपनी पुस्तक Introduction to Neurology में उनकी बहुत लम्बी सूची दी है। उनमें से Douglas & Holland ने निम्नलिखित को महत्त्वपूर्ण बताया है-
1. दृष्टि संवेदना (Visual sensation ) - सब प्रकार के रंगरूप आदि।
2. ध्वनि संवेदना (Hearing sensation)- सब प्रकार की आवाजें, ध्वनियाँ आदि।
3. घ्राण संवेदना (Smell sensation)- सब प्रकार की गंध।
4. स्वाद संवेदना (Taste sensation) - सब प्रकार के स्वाद।
5. स्पर्श संवेदना (Touch sensation ) - सब प्रकार के स्पर्श, दबाव आदि।
6. माँसपेशी संवेदना (Muscle sensation) - सब प्रकार की माँसपेशियों की गतियों से सम्बन्धित।
7. शारीरिक संवेदना (Organic sensation) - शरीर के अन्दर के अंगों द्वारा प्राप्त होने वाले सब प्रकार के अनुभव।
प्रत्यक्षीकरण का अर्थ व स्वरूप
समय के साथ-साथ बालक का अनुभव बढ़ता जाता है। जब वह आवाज को दूसरी या तीसरी बार सुनता है। अब वह जानता है कि आवाज किसकी है और कहां से आ रही है। उसका अनुभव उसे बताता है कि आवाज सड़क पर भौंकने वाले कुत्ते की है। आवाज के इस प्रकार के ज्ञान को 'प्रत्यक्षीकरण' या 'प्रत्यक्ष ज्ञान' कहते हैं। दूसरे शब्दों में पूर्व-अनुभव के आधार पर संवेदना की व्याख्या करना या उसमें अर्थ जोड़ना प्रत्यक्षीकरण है।
प्रत्यक्षीकरण का पूर्व ज्ञान या पूर्व अनुभव से स्पष्ट सम्बन्ध होता है। इसीलिए इसको ज्ञान प्राप्ति की दूसरी सीढ़ी और पिछले अनुभव से सम्बन्धित माना जाता है।
हम प्रत्यक्षीकरण के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषायें दे रहे हैं, यथा-
1. रायबन - "अनुभव के अनुसार संवेदना की व्याख्या की प्रक्रिया को प्रत्यक्षीकरण कहते हैं।"
2. जलोटा - 'प्रत्यक्षीकरण वह मानसिक प्रक्रिया है, जिससे हमको बाह्य जगत् की वस्तुओं या घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है।'
3. भाटिया - "प्रत्यक्षीकरण संवेदना और अर्थ का योग है। प्रत्यक्षीकरण संवेदना और विचार का योग है।"
प्रत्यय ज्ञान का अर्थ व स्वरूप
बालक के प्रत्ययों के आधार उसके पूर्व अनुभव पूर्व संवेदनायें और पूर्व प्रत्यक्षीकरण होते हैं। इसलिये इनको ज्ञान प्राप्ति की तीसरी सीढ़ी और पिछले अनुभवों से सम्बन्धित माना जाता है।
प्रत्यय और प्रत्यय - ज्ञान क्या है? इनको अधिक स्पष्ट करने के लिए हम कुछ लेखकों के विचारों को उद्धत कर रहे हैं, यथा-
1. Boring, Langfeld & weld के अनुसार - प्रत्यय किसी देखी हुए वस्तु की मानसिक प्रतिमा (visual image) हैं।
2. Ross के अनुसार - प्रत्यय क्रियाशील ज्ञानात्मक मनोवृत्ति (Active cognitive disposition) है। प्रत्यय देखी गई वस्तु का मन में नमूना या प्रतिमान (Pattern in mind) है।
3. वुडवर्थ - "प्रत्यय वे विचार हैं, जो वस्तुओं, घटनाओं, गुणों आदि का उल्लेख करते हैं।"
4. डगलस व हालड - "प्रत्यय-ज्ञान, मस्तिष्क में विचार के निर्माण का उल्लेख करता है।"
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