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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2748
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की ही एक महत्वपूर्ण शाखा है।

शिक्षा मनोविज्ञान का शाब्दिक अर्थ 'शिक्षा से संबंधित मनोविज्ञान है।

शिक्षा का संबंध मानव व्यवहार के परिमार्जन से तथा मनोविज्ञान का संबंध व्यवहार के अध्ययन से होता है।

मानव व्यवहार को उन्नत बनाने की दृष्टि से जब उसके व्यवहार का अध्ययन किया जाता है तो अध्ययन की इस शाखा को ही 'शिक्षा मनोविज्ञान' कहा जाता है।

शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षणिक परिस्थितियों में मानव व्यवहार का अध्ययन तथा परिमार्जन करता है।

शैक्षिक समस्याओं का वैज्ञानिक एवं तर्कसंगत ढंग से समाधान करने के लिए मनोविज्ञान के आधारभूत सिद्धांतों का उपयोग करना ही शिक्षा मनोविज्ञान का विषय-वस्तु है।

कुछ मनोवैज्ञानिक शिक्षा मनोविज्ञान का प्रारम्भ 19वीं सदी से मानते हैं।

कुछ लोग शिक्षा मनोविज्ञान के अस्तित्व को प्लेटो तथा अरस्तू के समय से स्वीकार करते हैं। कालसनिक ने शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन का प्रारम्भ ईसा से 500 शताब्दी पूर्व से यूनानी दार्शनिकों से माना है।

स्किनर ने शिक्षा मनोविज्ञान का प्रारम्भ अरस्तू के विचारों से माना है।

आधुनिक शिक्षा मनोविज्ञान की उत्पत्ति 19वीं शताब्दी में पेस्तालॉजी हर्वार्ट तथा फ्राबेल से हुई।

शिक्षा में मनोविज्ञान आन्दोलन का सूत्रपात रूसो द्वारा प्रकृतिवादी विचारधारा की प्रस्तुति से ही संभव हुआ।

रूसो ने शिक्षाशास्त्रियों का ध्यान बालक की ओर आकर्षित करते हुए इस बात पर बल दिया कि-बालकों को उनकी आवश्यकताओं, रूचियों, प्रवृत्तियों, योग्यताओं, अवस्थाओं के अनुरूप ही शिक्षा दी जानी चाहिए।

रूसो की उपर्युक्त विचारधारा से पेस्तालॉजी, हर्वार्ट, फ्रांबेल को प्रेरणा मिली।

20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में मनोविज्ञान की एक स्पष्ट शाखा के रूप में शिक्षा मनोविज्ञान का विकास होने लगा।

थार्नडाइक को सर्वप्रथम शैक्षिक मनोवैज्ञानिक कहा जा सकता है।

जॉन डीवी ने शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा मनोविज्ञान को एक नया आयाम दिया।

वर्तमान समय में शिक्षा मनोविज्ञान को एक स्वतन्त्र शाखा के रूप में स्वीकार किया जाता है।

कालसनिक के अनुसार मनोविज्ञान के सिद्धांतों व परिणामों का शिक्षा के क्षेत्र में अनुप्रयोग ही शिक्षा मनोविज्ञान है।

क्रो तथा क्रो के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति को जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक के सीखने के अनुभवों का वर्णन तथा व्याख्या करता है।

स्किनर के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जो शिक्षण तथा अधिगम से संबंधित होती है।

ट्रो ने कहा है कि शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों के मनोवैज्ञानिक पक्ष का अध्ययन है।

स्टीफन के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान का क्रमबद्ध अध्ययन है।

शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में महान व्यवहार का अध्ययन करता है।

शिक्षा मनोविज्ञान व्यवहार के परिमार्जन का विज्ञान है।

शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की मुख्य विषय-वस्तु मानव व्यवहार का परिमार्जन है।

शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है।

शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा प्रक्रिया को सरल, सुगम तथा द्रुत बनाकर शिक्षण अधिगम का मार्ग प्रशस्त करता है।

शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत सामान्य मनोविज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों तथा विधियों का उपयोग किया जाता है।

शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक होती है।

शिक्षा मनोविज्ञान का उद्देश्य शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करना है।

शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य उद्देश्य शिक्षार्थियों को उनके सर्वांगीण विकास में सहायता करना है।

शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षार्थी, अध्यापक तथा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन करता है।

स्किनर के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान के कार्यक्षेत्र में वह सभी ज्ञान तथा प्रविधियां सम्मिलित है जो सीखने की प्रक्रिया के अधिक अच्छी प्रकार से समझने तथा अधिक निपुणता से निर्देशित करने से संबंधित है।

शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र बालक के वंशानुक्रम, विकास, व्यक्तिगत मित्रता, व्यक्तित्व, अधिगम प्रक्रिया, पाठ्यक्रम निर्माण, मानसिक स्वास्थ्य, शिक्षण विधियों निर्देशन व समनुदेशन तथा मापन एवं मूल्यांकन तक विस्तृत है।

शिक्षा मनोविज्ञान छात्रों की योग्यताओं क्षमताओं तथा सामर्थ्य का अध्ययन करता है।

यह छात्रों की अभिरूचियों, विकासात्मक विशेषताओं का ज्ञान प्राप्त करता है।

शैक्षिक मनोविज्ञान छात्रों की अवस्थाओं के अनुरूप उन्हें विकास की ओर अग्रसर करता है।

यह छात्रों की विशेषताओं का ज्ञान प्राप्त करके उनके वातावरण तथा विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन करता है।

यह छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं, सीखने की प्रक्रिया, शिक्षण सिद्धांतों तथा शिक्षण विधियों का अध्ययन करता है।

यह शिक्षण सामग्रियों तथा उनकी उपयोगिता का भी अध्ययन करता है।

यह अधिगम सामग्री के निर्माण के साथ-साथ छात्रों के विशिष्ट व्यवहारों का भी अध्ययन करता है।

यह विद्यार्थियों के समस्याओं का अध्ययन करके उसके समाधान का भी प्रयास करता है।

शिक्षा मनोविज्ञान अपवादात्मक बालकों के लिए विशेष प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था का आग्रह करता करता है।

वास्तव में तीव्र बुद्धि अथवा मंद बुद्धि बालकों तथा गूंगे बहरे, अंधे बालकों के द्वारा सामान्य शिक्षा का समान लाभ उठाने की कल्पना करना त्रुटिपूर्ण है। ऐसे बालकों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा व्यवहार के आयोजन पर शिक्षा मनोविज्ञान विशेष बल देता है।

स्किनर के अनुसार शिक्ष मनोविज्ञान के क्षेत्र में वह सभी ज्ञान तथा प्रविधियां सम्मिलित है जो सीखने की प्रक्रिया को अच्छी प्रकार से समझने तथा अधिक निपुणता से निर्देशित करने से संबंधित हैं।

वंशानुक्रम व्यक्ति की जन्मजात योग्यताओं से संबंधित होता है।

किसी व्यक्ति के वंशानुक्रम में ऐसी समस्त शारीरिक, मानसिक अथवा अन्य विशेषतायें आ जाती है जिन्हें वह अपने माता - पिता तथा अन्य पूर्वजों से प्राप्त करता है।

मनोवैज्ञानिक ने यह साबित कर दिया है कि बालक के विकास के प्रत्येक पक्ष पर उसके वंशानुक्रम का प्रभाव अवश्य पड़ता है।

शारीरिक संरचना, मूल प्रवृत्तियों, मानसिक योग्यता, व्यावसायिक क्षमता आदि पर व्यक्ति के वंशानुक्रम का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।

वंशानुक्रम के ज्ञान के आधार पर अध्यापक अपने छात्रों को वांछित विकास कर सकता है। शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत भ्रूणावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त होने वाले मानव के विकास का अध्ययन किया जाता है।

शिक्षा मनोविज्ञान मानव में व्यक्तित्व तथा उससे संबंधित विभिन्न समस्याओं का भी अध्ययन किया जाता है।

शिक्षा प्रक्रिया का मुख्य आधार अधिगम है। अधिगम के बिना शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती है।

शिक्षा मनोविज्ञान सीखने के नियमों, सिद्धांतों तथा विधियों का ज्ञान प्रदान करता है।

शिक्षा पाठ्यक्रम के निर्माण में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है।

विभिन्न स्तर के बालक तथा बालिकाओं की आवश्यकताओं, विकासात्मक विशेषताओं तथा अधिगम की शैल आदि भिन्न-भिन्न होती है अतः पाठ्यक्रम के निर्धारण में इन सबका ध्यान रखा जाता है।

अध्यापकों तथा छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का भी शैक्षिक दृष्टि से व्यापक महत्व है।

शिक्षा मनोविज्ञान हमें यह बताता हैं कि जब तक छात्रों को पढ़ने के प्रति प्रेरित नहीं किया जायेगा तब तक अध्यापन में सफलता नहीं मिल पाना संदिग्ध होगा।

शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा मनोविज्ञान एक अत्यंत महत्वपूर्ण तथा सार्थक भूमिका का निर्वाह करता है।

विद्यार्थी, शिक्षक तथा शिक्षा व्यवस्था, तीनों ही पक्षों की दृष्टि से शिक्षा मनोविज्ञान का महत्त्व तथा उपयोगिता असंदिग्ध है।

शिक्षा से संबंधित अनेकों प्रश्नों का उत्तर शिक्षा मनोविज्ञान ही प्रदान करता है।

शिक्षा मनोविज्ञान दो प्रमुख ढंग से शिक्षा प्रक्रिया में अपना योगदान देता है-

1. शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा शिक्षा के सिद्धांत संबंधी क्षेत्र में सैद्धांतिक ढंग से योगदान किया जाता है, तथा

2. शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा शिक्षा के अभ्यास संबंधी क्षेत्र में व्यावहारिक ढंग से योगदान दिया जाता है।

शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा को एक नया स्वरूप प्रदान किया है जिसके परिणाम स्वरूप आधुनिक युग में शिक्षा प्रक्रिया में बालक को एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है।

शिक्षा विज्ञान के विकास के परिणामस्वरूप छात्रों की शैक्षिक, सामाजिक तथा व्यावसायिक समस्याओं का मानवीय आधार पर मनोवैज्ञानिक ढंग से निदान व समाधान किया जाता है।

परम्परागत शुष्क तथा निष्क्रिय शिक्षा प्रक्रिया के स्थान पर शिक्षा को एक आनन्दमयी प्रक्रिया तथा सक्रिय भागीदारी वाली क्रिया बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

सम्पूर्ण विश्व में आज शिक्षार्थी की आवश्यकता तथा परिस्थिति के अनुरूप दूरस्थ तथा मुक्त अधिगम पर जोर दिया जा रहा है।

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