बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
मूल प्रवृत्तियों की विशेषताएँ
McDougall के अनुसार - मूल प्रवृत्तियाँ जन्मजात होती हैं। अतः सीखकर या अनुकरण करके उनकी संख्या में वृद्धि नहीं की जा सकती है।
Bhatta के अनुसार - मूल प्रवृत्तियाँ एक जाति के प्राणियों में एक-सी होती हैं, जैसे - मुर्गी द्वारा भूमि का कुरेदा जाना और बालकों की अपेक्षा बालिकाओं का शान्त होना।
James के अनुसार - अनेक मूल प्रवृत्तियाँ एक विशेष अवस्था में प्रकट होती हैं और फिर धीरे-धीरे अदृश्य हो जाती हैं, जैसे- जिज्ञासा और काम प्रवृत्ति।
Valentine के अनुसार - मूल प्रवृत्तियाँ जिन कार्यों को करने की प्रेरणा देती हैं, उनमें शीघ्र ही कुशलता आ जाती है। यदि बत्तख को पानी में डाल दिया जाये तो वह दो तीन डुबकी खाने के बाद अच्छी तरह तैरने लगती है।
Jha के अनुसार - सब मूल प्रवृत्तियाँ सब व्यक्तियों में समान मात्रा में नहीं मिलती है। शिशु रक्षा सम्बन्धी मूल प्रवृत्ति पुरुष के बजाय स्त्री में अधिक होती है।
Bhatia के अनुसार - मूल प्रवृत्तियों का प्राणी के हित से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। अनेक पक्षी अपने को आँधी पानी से सुरक्षित रखने के लिए घोंसले बनाते हैं।
Bhatia के अनुसार - मूल प्रवृत्तियों का कोई-न-कोई प्रयोजन अवश्य होता है पर उसे प्रयोजन का ज्ञान होना आवश्यक नहीं है। बालक में आत्म प्रदर्शन की प्रवृत्ति होती है पर वह उसके प्रयोजन से अनभिज्ञ होता है।
Bhatia के अनुसार - मूल प्रवृत्तियों को बुद्धि अनुभव और वातावरण द्वारा परिवर्तित और विकसित किया जा सकता है। जिज्ञासा की प्रवृत्ति को अध्ययन करने के अच्छे कार्य या पड़ोसियों के दोष खोजने के बुरे कार्य के रूप में विकसित किया जा सकता है।
Valentine के अनुसार - मूल प्रवृत्तियों के कारण किये जाने वाले कार्यों में जटिलता और विभिन्न अवसरों पर विभिन्नता होती है। यह आवश्यक नहीं है कि क्रोध आने पर व्यक्ति सदैव एक ही प्रकार का व्यवहार करे।
मूल प्रवृत्तियों का शिक्षा में महत्त्व
रास के अनुसार - "मूल प्रवृत्तियाँ, व्यवहार के अध्ययन के लिये अति आवश्यक हैं। अतः शिक्षा सिद्धान्त और व्यवहार में उनका बहुत अधिक महत्त्व है।"
प्रेरणा देने से सहायता - शिक्षक बालकों की मूल प्रवृत्तियों का प्रयोग करके उनको नये विचारों को ग्रहण करने की प्रेरणा दे सकता है। इस विधि को अपनाकर वह अपने शिक्षण और शिक्षा प्रक्रिया को सफल बना सकता है।
रुचि व रुझान जानने में सहायता - बालकों की मूल प्रवृत्तियाँ उनकी रुचियों और रुझानों की संकेत चिन्ह हैं। शिक्षक को उनकी पूरी जानकारी होनी आवश्यक है। यह जानकारी उसे पाठ्य विषयों और शिक्षण विधियों का चुनाव करने में बहुत सहायता दे सकती है।
ज्ञान प्राप्ति में सहायता - बालकों की जिज्ञासा प्रवृत्ति ज्ञान प्राप्त करने में अद्भुत योग देती है। शिक्षक इस मूल प्रवृत्ति को जाग्रत करके बालकों को ज्ञान का अर्जन करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
रचनात्मक कार्यों में सहायता - बालकों में रचना की मूल प्रवृत्ति बहुत प्रबल होती है। शिक्षक बालकों की रचना प्रवृत्ति का विकास करके उनको रचनात्मक कार्यों द्वारा स्वयं ज्ञान का अर्जन करने में सहायता दे सकता है।
व्यवहार परिवर्तन में सहायता - शिक्षक बालकों की मूल प्रवृत्तियों को रूपान्तरित करके उनके व्यवहार को समाज के आदर्शों के अनुकूल बना सकता है।
चरित्र निर्माण में सहायता - इस सम्बन्ध में Ross ने लिखा है- "मूल प्रवृत्तियाँ ईंटें हैं, जिनसे व्यक्ति के चरित्र का निर्माण किया जाता है। ये शिक्षक को अपनी प्राकृतिक दशा में मिलती है। उनका महान् कर्त्तव्य इनको परिवर्तित और परिष्कृत करना है। "
अनुशासन में सहायता - बालक - चोरी उद्दंडता, लड़ाई-झगड़ा, अनुचित आचरण आदि अनुशासनहीनता के कार्यों को तभी करते हैं जब उनकी मूल प्रवृत्तियाँ उचित दिशाओं में निर्देशित नहीं होती हैं। शिक्षक उनकी मूल प्रवृत्तियों का मार्गान्तीकरण करके उनमें अनुशासन की भावना का विकास कर सकता है।
पाठ्यक्रम निर्माण में सहायता - पाठ्यक्रम निर्माण का आधारभूत सिद्धान्त बालकों की मूल प्रवृत्तियाँ होनी चाहिये। उनकी मूल प्रवृत्तियों को सन्तुष्ट करने वाला पाठ्यक्रम ही उनके लिये हितप्रद हो सकता है। अतः विभिन्न स्तरों के पाठ्यक्रमों का निर्माण करते समय शिक्षकों को बालकों की मूल प्रवृत्तियों का अवश्य ध्यान रखना चाहिये।
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