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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2748
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 5
मूल प्रवृत्ति
(Basic Instincts)

मूल प्रवृत्तियों का अर्थ व परिभाषा

मनुष्य अपने अधिकांश कार्यों को समाज से प्रभावित होकर करता है पर कुछ कार्य ऐसे भी हैं, जिनको वह अपनी जन्मजात या प्राकृतिक प्रेरणाओं के कारण भी करता है जैसे-भय लगने पर भागना और भूख लगने पर भोजन की खोज करना। इन जन्मजात प्रवृत्तियों को, जो मनुष्य और पशु को कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं, मूल प्रवृत्तियाँ कहा जाता है।

हम मूल प्रवृत्तियों के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषायें दे रहे है-

1. वुडवर्थ - "मूल प्रवृत्ति, कार्य करने का बिना सीखा हुए स्वरूप है।"

2. मरसेल - 'मूल प्रवृत्तिय, व्यवहार का एक सुनिश्चित और सुव्यवस्थित प्रतिमान है, जिसका आदि कारण जन्मजात होता है, और जिस पर सीखने का बहुत कम या बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ता है।'

3. जेम्स - "मूल प्रवृत्ति की परिभाषा साधारणतः इस प्रकार कार्य करने की शक्ति के रूप में की जाती है, जिससे उद्देश्यों और कार्य करने की विधि को पहले से जाने बिना निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।"

4. मैकड्यूगल - "मूल प्रवृत्ति, परम्परागत या जन्मजात मनोशारीरिक प्रवृत्ति है, जो प्राणी को किसी विशेष वस्तु को देखने, उसके प्रति ध्यान देने, उसे देखकर एक विशेष प्रकार की सवेगात्मक उत्तेजना का अनुभव करने और उससे सम्बन्धित एक विशेष ढंग से कार्य करने या ऐसा करने की प्रबल इच्छा का अनुभव करने के लिए बाध्य करती है।"

मूल प्रवृत्तियों के तीन पहलू

मैकड्यूगल की उक्त परिभाषा से स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक मूल प्रवृत्ति में तीन मानसिक प्रक्रियायें या तीन पहलू होते हैं-

1. ज्ञानात्मक (Cognitive)  - किसी वस्तु या स्थिति का ज्ञान होना।
2. संवेगात्मक (Affective) - ज्ञान के कारण किसी संवेग का उत्पन्न होना।
3. क्रियात्मक (Conative ) - संवेग के कारण कोई क्रिया करना।

सारणी- मैकड्यूगल द्वारा दी गई 14 मूल प्रवृत्तियाँ तथा उनसे सम्बन्धित संवेग

 

क्रम
मूल प्रवृत्ति
संवेग
1.
पलायन (Escape) भय (Fear)
2.
युयुत्सा (Combat) क्रोध (Anger)
3.
 निवृत्ति (Repulsion) घृणा (Disgust)
4.
सन्तान कामना (Parental) वात्सल्य (Temderme)
5.
शरणागति (Appeal) करुणा (Distre)
6.
कामवृत्ति (Sex) कामुकता (Lust )
7.
जिज्ञासा (Curiosity) आश्चर्य (Wonder)
8.
दैन्य (Submission) आत्महीनता (Negative self felling)
9.
आत्म गौरव (Assertion) आत्माभिमान (Positive self felling)
10.
समूहिक (Gregariousness) एकाकीपन (Loneliness )
11.
भोजनोन्वेषण (Food Seeking) भूख (Hunger)
12.
12. संग्रहण (Acquisition) स्वामित्व (Ownership)
13.
13. रचनात्मकता (Construction) कृतिभाव (Creation)
14.
14. हास (Laughter) आमोद (Amusement)

मूल प्रवृत्ति

यह सिद्धान्त मैकड्यूगल ( McDougall), जेम्स (James) तथा बर्ट (Burt) ने प्रतिपादित किया। इनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में जन्म से ही कुछ विशिष्ट व्यवहारिक प्रवृत्तियों विद्यमान रहती हैं। जिनकी क्रियाशीलता पर व्यक्ति इनके सापेक्ष विशिष्ट व्यवहार करता है। यह प्रदर्शित व्यवहार उसकी प्रवृत्ति की संतुष्टि करता है। मूल प्रवृत्ति के प्रत्यय का सर्वप्रथम उपयोग विलियम जेम्स (William James) द्वारा किया गया।

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