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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2748
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

सीखना किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है।

सीखना अनुभव द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।

स्किनर के अनुसार - "सीखना व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है।"

क्रो तथा क्रो के अनुसार - "सीखना, आदतों, ज्ञान तथा अभिवृत्तियों का अर्जन है।"

गेट्स ने कहा है कि - "सीखना, अनुभव और प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।"

क्रानबेक के मतानुसार - "सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन द्वारा व्यक्त होता है।"

थार्नडाइक का कथन है - "उपयुक्त अनुक्रिया के चयन तथा उसे उत्तेजना से जोड़ने को अभिगम कहते हैं।"

वुड्सवर्थ ने कहा है कि - "नवीन ज्ञान तथा नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया सीखने की प्रक्रिया है।"

सीखना सम्पूर्ण जीवन चलता है। यह एक परिवर्तन है ।

गिलफोर्ड के अनुसार - "सीखना व्यवहार के परिणामस्वरूप व्यवहार में कोई परिवर्तन है।"

सीखना विकास है तथा यह सार्वभौमिक है।

सीखना अनुकूल तथा कोई नया कार्य करना है।

सीखना उद्देश्यपूर्ण तथा अनुभवों का संगठन है।

मर्सेल के अनुसार - "सीखने के लिए उत्तेजित तथा निर्देशित उद्देश्य की अति आवश्यकता है और ऐसे उद्देश्य के बिना सीखने में असफलता निश्चित है।"

मर्सेल का कहना है कि - "सीखना यांत्रिक कार्य के बजाय विवेकपूर्ण कार्य है।"

मर्सेल के अनुसार - "सीखने की असफलता का कारण समझने की असफलतायें हैं।" सक्रिय सीखना ही वास्तविक सीखना है।

सिम्पसन के अनुसार - "सीखना सामाजिक है क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असंभव है।"

मर्सेल के अनुसार - "सीखना उस बात को खोजने और जानने का कार्य है जिसे एक व्यक्ति खोजना और जानना चाहता है।"

दी कन्डीशन्स आफ लर्निंग में सीखने के आठ प्रकार बताये ये है।

प्रभावशाली अधिगम का तात्पर्य स्थायी तथा उपयोगी अनुक्रियाओं से है।

स्थायी तथा उपयोगी अनुक्रियायें व्यक्ति को जीवन में सफलता के शीर्ष पर पहुँचाती है।

अधिगम को प्रश्नावली बनाने वाले घटक है-

1. बहुविभीय घटक (Multi dimensional)
2. स्वयं अनुभव (Self Experience) तथा
3. प्रक्रिया (Process)

प्रभावशाली अधिगम का मूल घटक प्रेरणा है। प्रेरणा के अभाव में सीखना प्रभावशाली नहीं होगा।

प्रेरणा का अभाव सीखने की परिस्थिति, उद्देश्यहीनता तथा शिक्षक की अदूरदर्शित प्रभावशाली अधिगम के अवरोधक हैं।

परिणाम से परिचयन कराना, जीवन से न जुड़ना, भाषा को अधिगम से जोड़ना प्रश्नावली अधिगम के अन्य अवरोधक हैं।

उद्देश्य या सीखने की इच्छा, सीखने का आनंदमयी होना, प्रगति तथा परिणामों का ज्ञान तटस्थता का न होना, प्रशंसा, प्रतिबद्धता एवं सहयोग, चित्रीकरण, भर्त्सना, पुरस्कार एवं दण्ड, आकांक्षा का स्तर आदि प्रभावशाली अधिगम के उपाय हैं।

लगातार अभ्यास सीखने में सहायक होता है।

सीखने में पृथक तथा आसन्न काल के अनुभव महत्वपूर्ण होते हैं।

सीखने के लिए अध्ययन सत्र की अवधि पर्याप्त होनी चाहिए।

ध्यान, रुचि तथा उत्साह पैदा करना सीखने में सहायक होते हैं।

सीखी गयी सामग्री को समझ लेना आवश्यक होता है।

सीखने का वातावरण उचित होना चाहिए।

दृश्य श्रव्य सामग्री एवं भ्रमण का भी प्रभाव सीखने पर पड़ता है।

अधिगम के दो सिद्धांत है -

(1) अधिगम के साहचर्य सिद्धान्त, तथा
(2) अधिगम के ज्ञानात्मक क्षेत्र सिद्धांत।

अधिगम के साहचर्य सिद्धांत के अन्तर्गत निम्न सिद्धांत आते हैं-

1. थार्नडाइक का सम्बंध वाद
2. पावलव का अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत
3. स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत
4. हल (Hull) का प्रवलन सिद्धान्त तथा
5. गुथरी का सामीप्य सम्बन्धवाद

थार्नडाइक ने 1913 में अपनी पुस्तक - शिक्षा मनोविज्ञान में सीखने के एक नवीन सिद्धांत का प्रतिपादन किया। थार्नडाइक के इस सिद्धांत को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। थार्नडाइक के अनुसार सीखना संबंध स्थापित करता है। संबंध स्थापित करने का कार्य मनुष्य का मस्तिष्क करता है।

संयोजन वाद का प्रवर्तक थार्नडाइक को ही माना जाता है।

थार्नडाइक ने अपने सीखने के सिद्धांत की परीक्षा करने के लिए अनेक पशुओं और बिल्लियों पर प्रयोग किये।

थार्नडाइक ने संबंधवाद के सिद्धांत में सीखने के क्षेत्र में प्रयास तथा त्रुटि को विशेष महत्व दिया है।

अभ्यास का नियम इस सिद्धांत पर आधारित है कि अभ्यास से व्यक्ति में पूर्णता आ जाती है।

थार्नडाइक के सिद्धांत का सबसे महत्वपूर्ण नियम प्रभाविता / प्रभाव का नियम है।

प्रभाव के नियम के संतोष और असंतोष का नियम भी कहा जाता है।

पावलव के अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत का प्रतिपादन रूसी शरीरशास्त्री आई0पी0 पावलव ने किया था।

पावलव के इस सिद्धांत को संबंध प्रत्यावर्तन का सिद्धांत भी कहा जाता है।

पावलव ने अपना प्रयोग कुत्ते पर किया था।

अनुकूलित अनुक्रिया का शिक्षा में अनेक योगदान हैं। इसका प्रयोग निम्न में किया जा सकता है-

(1) स्वभाव तथा आदत के निर्माण
(2) भाषा का विकास
(3) गणित शिक्षण में उपयोग
(4) अभिवृत्ति का विकास
(5) मानसिक तथा संवेगात्मक अस्थिरता का उपचार
( 6 ) अनुशासन
( 7 ) भव निवारण
(8) समाजीकरण में सहायक

प्रबलन सिद्धांत का प्रतिपादन सी0एल0 हलनायक अमेरिकी वैज्ञानिक ने 1915 में किया था।

हल की पुस्तक का नाम - 'Principles of Behaviour' है।

हल के अनुसार - "सीखना आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया द्वारा होता है।'

हल ने अपने प्रयोग बिल्ली पर किया था।

स्किनर, प्रबलन सिद्धांत को सीखने का श्रेष्ठ सिद्धांत मानते हैं।

स्किनर के अनुसार - हल का सिद्धांत उद्दीपक प्रक्रिया का सिद्धांत है।

लेस्टर एन्डरसन ने हल के सिद्धांत को थार्नडाइक के सिद्धांत से अधिक परिष्कृत एवं नपा तुला माना है।

अन्तर्दृष्टि या सूझक सिद्धांत के समर्थक गेस्टाल्टवादी है।

सूझ पर प्रभाव डालने वाले कारक है - प्रत्यक्षीकरण, बुद्धि, समस्या की रचना तथा अनुभव।

कार्यात्मक अनुबंधन सिद्धांत का प्रतिपादन स्किनर ने किया।

प्रयोजनमूलक शिक्षण सिद्धांत का प्रतिपादन स्किनर ने किया।

सीखने को प्रभावित करने वाले कारक हैं - विषय सामग्री का स्वरूप, वातावरण, वंशानुक्रम, बालक को शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य, परिपक्वता, सीखने का समय, थकान, प्रेरणा, इच्छा, वृद्धि, सीखने की विधि तथा पाठ्य सहगामी क्रियायें।

कहानी विधि अभिनय विधि, खेल विधि, अवलोकन विधि सीखने की प्रभावशाली विधियां है।

प्रभावशाली अधिगम के निम्न आवश्यक घटक हैं -

( 1 ) बहुबिमीय घटक
(2) स्वयं अनुभव तथा
(3) प्रक्रिया।

प्रभावशाली अधिगम के अवरोधक हैं - प्रेरणा का अभाव, सीखने की परिस्थिति, उद्देश्य हीनता, शिक्षक की अदूरदर्शिता आदि।

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