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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2748
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की ही एक महत्वपूर्ण शाखा है।

मनोविज्ञान के क्षेत्र में विवृद्धि (Growth) तथा विकास (development) में कोई विशेष अन्तर नहीं पाया जाता है।

मनोविज्ञान में विकास का अर्थ मनुष्य के उस विकास क्रम से है जो मनुष्य के मृत्युपरान्त तक होता रहता है।

मनुष्य का विकास किसी अवस्था विशेष में पहुँचकर समाप्त नहीं हो जाता बल्कि यह प्रक्रिया जीवन पर्यन्त चलती रहती है।

बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक विकास की यह गति तीव्र होती है लेकिन प्रौढ़ावस्था तक बढ़ने पर यह गति मंद हो जाती है।

विकासात्मक मनोविज्ञान में विकास का अर्थ गर्भावस्था से लेकर, मृत्यु तक किसी निश्चित उद्देश्य की तरफ होने वाले उस निरन्तर परिवर्तन से है जो व्यवस्थित तथा समानुगत ह्वप से होते है।

जेम्स ड्रेवर के अनुसार - "विकास प्राणी में प्रगतिशील परिवर्तन है जो किसी निश्चित उद्देश्य की ओर लगातार निर्देशित होता है।"

हरलॉक के अनुसार - "विकास का तात्पर्य बढ़ने तक सीमित नहीं है। इसका तात्पर्य व्यवस्थित तथा समानुगत परिवर्तन से है जो कि परिपक्वता के लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर होते है।"

मुनरों ने विकास' की परिभाषा देते हुए कहा है कि- "विकास परिवर्तन श्रृंखला की वह अवस्था है जिसमें बालक भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है, विकास कहलाता है।"

यद्यपि विवृद्धि तथा विकास को समानार्थी माना जाता है लेकिन दोनों का संदर्भगत अर्थ अलग-अलग होता है।

विवृद्धि एक विशेष प्रकार के विकास को सूचित करता है न कि सम्पूर्ण विकास को।

बालक का शारीरिक विकास विवृद्धि कहलाता है जो गर्भावस्था शिशु के दो सप्ताह के बाद से प्रारम्भ होकर 20 वर्ष की आयु तक माना जाता है जबकि विकास मानसिक क्रियाओं की ओर संकेत करता है।

विकास तथा विवृद्धि में मुख्य अन्तर यह है कि विकास रचनात्मक एवं विनाशात्मक दोनों होता है, जबकि विवृद्धि केवल रचनात्मक होती है।

विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले मुख्य परिवर्तन है-

क. आकार संबंधी परिवर्तन
ख. अनुपात संबंधी परिवर्तन
ग. कुछ लक्षणों का लोप हो जाना तथा
घ. कुछ नवीन व्यवस्थाओं का प्रकट हो जाना।

उपरोक्त चारों परिवर्तन सभी बालक एवं बालिकाओं में होते है।

थामसन के अनुसार, "जन्मोत्तर जीवन से पहले छः भागों में शारीरिक अनुपातों में बहुत कम परिवर्तन होते है, फिर परिवर्तन दिखायी देते हैं। सिर की वृद्धि हाथ-पैरों की वृद्धि से धीमी हो जाती है।"

विकास के निम्न सिद्धान्त या नियम है- अर्थात् विकास निम्न सिद्धांतों के अनुसार होता है-

1. सभी का विकास एक निश्चित प्रारूप या क्रम होता है।
2. विकास सामान्य से विशिष्ट की ओर होता है।
3. विकास अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है।
4. विभिन्न अंगों के विकास की दर भिन्न-भिन्न होती है।
5. विकास की गति में वैयक्तिक विभिन्नता की स्थिरता होती है।
6. विकास की दृष्टि से अधिकांश गुणों में सहसंबंध होता है।
7. विकास की प्रत्येक अवस्था की विशिष्टतायें होती है।
8. किसी अवस्था में कल्पित समस्या-व्यवहार उस अवस्था का सामान्य व्यवहार ही है।
9. समंजित (Adjusted) विकास।
10. विकास संबंधी भविष्यवाणी संभव है।
11. विकास की चरम सीमा भी होती हैं।
12. प्रत्येक व्यक्ति विकास की सभी अवस्थाओं से गुजरता है।
13. विकास का क्रम काम प्रवृत्ति पर आधारित है।

विकास की कुल नौ अवस्थायें होती है-

1. गर्भकालीन अवस्था
2. शैशवावस्था
3. बचपनावस्था
4. बाल्यावस्था
5. वयः संधि की अवधि
6. किशोरावस्था
7. प्रौढ़ावस्था
8 मध्यावस्था तथा
9. वृद्धावस्था।

विकास को प्रभावित करने वाले तत्व है-

1. मानसिक योग्यता
2. यौन भिन्नता
3. अन्तः स्रावी ग्रंथियां
4. प्रजाति अथवा वर्ण
5. जन्मक्रम,
6. पोषण
7. आघात एवं रोग तथा
8. वातावरण।

ब्लेयर एवं जोंस के अनुसार - "बाल्यावस्था वह काल है जब व्यक्ति के बुद्धिवादी दृष्टिकोण मूल्य तथा आदर्श एक बड़ी सीमा तक निरूपित किये जाते हैं।

फ्रायड के अनुसार - "व्यक्ति जो कुछ भी बनना चाहता है, प्रारम्भ के चार-पांच वर्षों में ही बन जाता है।" अतः शैशवावस्था का व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्त्व होता है।

बाल्यावस्था को पूर्व बाल्यावस्था तथा उत्तर बाल्यावस्था में बांटा गया है।

इस अवस्था में बालक में आत्मनिर्भरता आ जाती है, वह स्वतन्त्र रूप से चलफिर सकता है, बात कर सकता है।

इस अवस्था में बालक नर्सरी स्कूल में जाने के योग्य हो जाता है।

पहले साल में बालक की ऊंचाई जन्म से 50% बढ़ जाती है।

अगले तीन-चार वर्ष में वृद्धि की रफ्तार 8% होती है।

पांच-छः वर्ष तक यह गति केवल 5% रह जाती है।

उत्तर बाल्यकाल को 'चुस्ती की आयु' भी कहा जाता है।

9 से 12 वर्ष तक की अवस्था बाल्यावस्था के अन्तर्गत आती है।

बाल्यावस्था में दूध के दांत गिरने लगते है और नये तथा पक्के दांत आने लगते है।

स्टैनले हाल के अनुसार - "बाल्यावस्था प्रबल दबाव, तूफान, तनाव एवं संघर्ष का काल है।"

किलपेट्रिक के अनुसार, "इस बात पर मतभेद नहीं हो सकता कि किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है।"

हैविंग हर्स्ट एवं एलब्रेख्त के अनुसार, "वृद्धावस्था किस तरह की होगी, यह बात अंशतः शारीरिक गठन अंशतः जिस प्रकार जीवन बिताया गया है, उस पर निर्भर प्रतीत होता है।"

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