बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 3
वृद्धि और विकास
(Growth and Development)
विकास जीवन को गति देने वाली प्रक्रिया है, जो गर्भावस्था के प्रथम चरण से ही प्रारम्भ हो जाती है। सामान्य विवृद्धि (Growth) तथा विकास (Development) को एक ही अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है। परन्तु दोनों अलग-अलग क्रियायें हैं। विवृद्धि का संबंध रचनात्मकता से है जबकि विकास का संबंध गुणात्मकता से है। विकास की प्रक्रिया में जो परिवर्तन होते हैं वे एक दिशा विशेष में होते हैं और जैसे-जैसे शरीर की रचना में परिवर्तन आता हैं वैसे-वैसे गुणात्मक परिवर्तन भी आता है। विकास की प्रक्रिया में एक क्रमबद्धता पायी जाती है और इसमें होने वाले परिवर्तन निरन्तर होते रहते हैं। इस प्रकार के परिवर्तनों में एक संबंध भी होता हैं और ये एक दूसरे से आपस में जुड़े रहते हैं। विकास हमेशा होता रहता है, परन्तु इसकी गति हमेशा बदलती रहती है। इसी के कारण गर्भावस्था में सबसे तीव्र तथा प्रौढ़ावस्था में सबसे धीमी गति से विकास होता है। विकास के जरिये ही मनुष्य नई-नई चीजों को सीखता है जिसके परिणामस्वरूप उसकी योग्यता में वृद्धि होती है। शिशु - एक कोरे कागज के समान होता है और उसका विकास वातावरण, विधियों, संवेगात्मक संतुलन, उपस्थिति आदि की सहायक से किसी निश्चित दिशा में मोड़ा जा सकता हैं। विकास में होने वाले परिवर्तन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- माप में परिवर्तन, शारीरिक मानसिक तथा विशिष्ट गुणों का लुप्त होना तथा विकास के साथ-साथ नये गुणों को ग्रहण करना। बच्चे की गर्भावस्था नौ महीने की होती है और तीन भागों में बंटी होती हैं -
1. डिम्बावस्था
2. भ्रूणावस्था तथा
3. गर्भावस्था।
शैशवावस्था जन्म से लेकर 15 दिनों तक चलती है। इसके बाद बचपनावस्था आती हैं जो दो वर्ष की उम्र तक रहती है। बाल्यावस्था 12 वर्ष की उम्र तक मानी जाती है। जिसके बाद वयः वस्था और फिर किशोरावस्था आती है और अन्ततः प्रौढ़ावस्था आती हैं जो मृत्युपर्यन्त तक चलती रहती है। हर उम्र में विकास की गति अलग-अलग होती है जो कभी तीव्र, कभी बहुत तीव्र और कभी धीमी होती हैं। विकास की क्रिया हमेशा सामान्य से विशिष्ट की ओर होती है और इसकी प्रत्येक अवस्था में कुछ स्वभाविक लक्षण भी होते हैं। इस प्रकार से विकास एक जटिल क्रिया है जिसके अपने नियम हैं और इन नियमों की जानकारी होने पर बच्चे के विकास, स्वभाव, व्यवहार नियंत्रण, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की उचित देखभाल में सहायता मिलती है।
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