बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
विकास का अर्थ उन आवश्कताओं की पूर्ति है जो वर्तमान में योग्यता सम्बन्धी समझौते जोकि आने वाली पीढ़ी की आवश्यकता पूर्ति में बगैर हानि या अवरोध पहुँचाए हों।
विकास का स्वरूप एक स्वस्थ रिश्तों को बनाने में सहायक होगा।
राष्ट्रीय स्तरों पर क्रमिक विकास के विभिन्न मानकों की खोज शुरू की गयी और यही गैर-सरकारी संगठनों के लिए उनके प्रबन्धन की बड़ी चुनौती के रूप में उभरकर सामने आयी।
ज्यादा धनविहीन होना ही गरीबी का कारण नहीं है बल्कि गरीबी का तात्पर्य है अन्य सामाजिक सुविधाओं को भोगने में ना कामयाबी, असफलता तथा अन्य राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक कारकों से भी है।
सन् 1990 में और भी विकास की अवस्थाएँ तथा अवधारणाएँ उभरकर सामने आयीं।
विकास के पहलू जोकि एक नई चुनौती के रूप में उभर कर सामने आये हैं।
विकास को क्रमबद्ध तरीके से आगे बढ़ाना ही मुख्य चुनौती के रूप में स्वीकारा गया।
सुचारू रूप से चलने वाला क्रमिक विकास पूरे विश्व के लिए एक उत्सुकता जगाने वाले शब्द में तब्दील हो गया।
विकास पर कार्य करने वाले विशेषज्ञ अब गरीबी अथवा धनविहीनता के कारकों का क्रमबद्ध परीक्षण करने के लिए एक क्रमिक अध्ययन करने का विचार करते हैं।
आमतौर पर एक व्यक्ति की सम्पन्नता, वैभव तथा उसके जीवनयापन की विधियाँ जोकि उचित पर्यावरणीय सामंजस्य तथा स्रोतों की उपलब्धि तथा मौजूद स्थिति पर आधारित हैं।
सुचारू रूप से होने वाले विकास से तात्पर्य एक उपयुक्त तथा बहुत ही मजबूत सामंजस्य से होता है।
भारत में मुख्यतः क्रमिक एवं सुचारु रूप से होने वाले विकास के अन्तर्गत सिर्फ पर्यावरणीय विकास को ही महत्व नहीं दिया गया, बल्कि आर्थिक, पर्यावरणीय तथा सामाजिक नीतियों कों भी ध्यान में रखा गया।
आज के समाज को पृथ्वी पर मौजूद सभी स्रोतों का उपयोग उचित प्रकार से करें, ना की कभी खत्म न होने वाली सुविधाओं के रूप में।
धन-विहीन लोग किस तरह से अपने आपको देखते हैं तथा परिभाषित करते हैं या उनकी राय में गरीबी का क्या अर्थ है इस बात को ज्यादा महत्व दिया गया है।
प्राकृतिक आपदा के रूप में व्यक्ति के सामने एक कष्ट पहुँचाने वाली स्थिति के रूप में आती है, जैसे - तूफान, बाढ़, सूखा तथा अन्य प्राकृतिक खतरे।
जीविका के स्तर को बढ़ाने के लिए विस्तृत अवधारणा जोकि जल्दी ही सहारा देने वाली जीविका के रूप में तब्दील हो गयी है।
1980 में लैंगिक अध्ययन को बढ़ावा देना और विभिन्न सरकारी नीतियों में महिला सशक्तिकरण को विकास का प्रमुख मुद्दा माना जाने लगा।
पर्याप्त धन वाले जिन सुख-सुविधाओं का सम्पूर्ण उपयोग करते हैं पैसे की कमी के कारण धनविहीन वंचित रह जाते हैं।
धनविहीन के लिए यह कमी शक्तिहीन भी बनाती है।
कई बार पैसे से कमजोर लोग सही काम करने के बावजूद बॉस द्वारा प्रताड़ित किये जाते हैं।
धनविहीन व्यक्ति को पूर्णरूप से पोषाहार भी नहीं मिल पाता है, जिसके कारण उनकी कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है।
वर्ल्ड बैंक गरीबी को हरेक दिन की एक व्यक्ति की आय रूप में ही आँकता है।
गरीबी किसी एक व्यक्ति की आय के स्तर को नापकर जानी जाये या उसके पूरे परिवार की महीने की आय को। यह एक ज्वलंत प्रश्न आज भी है।
इस सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि किसी न किसी रूप में पैसा गरीबी से जुड़ा हुआ है।
पैसे की कमी के कारण एक गरीब व्यक्ति कुछ भी करने को तैयार हो जाता है।
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