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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2747
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में नैर्भर्य सिद्धान्त में संसाधन, निर्धन एवं अल्पविकसित देशों की परिधि से धनी देशों के केन्द्र की ओर प्रवाहित होते हैं और निर्धन देशों को और गरीब करते हुए धनी देशों को और धनी बनाते हैं।

नैर्भर्य सिद्धान्त इस मूल मान्यता पर आधारित है कि राजनैतिक एवं आर्थिक कारकों के बीच एक गहन सम्बन्ध होता है।

आर्थिक कारकों के आधार पर राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिलते हैं।

निर्भरता शब्द की अनिवार्यता और तकनीकी परिष्कार में कोई अन्तर नहीं है।

विकासशील देश राजनैतिक रूप से तो स्वतन्त्र हैं लेकिन आर्थिक रूप से वे अभी भी अपने केन्द्रों से जुड़े हुए हैं।

सामान्यतौर पर एक व्यक्ति की सम्पन्नता, वैभव तथा उसके जीवनयापन की विधियाँ जोकि उचित पर्यावरणीय सामंजस्य तथा स्रोतों की उपलब्धि तथा मौजूदा स्थिति पर आधारित हैं विकास के सूचकांक होते हैं।

भारत में मुख्यत: क्रमिक एवं सुचारु रूप वाले विकास के अन्तर्गत सिर्फ पर्यावरणीय विकास को ही महत्व नहीं दिया, बल्कि आर्थिक, पर्यावरणीय तथा सामाजिक नीतियों को भी ध्यान में रखा गया है।

विकास शब्द का अर्थ सिर्फ आर्थिक विकास न होकर एक भावनात्मक, बौद्धिक, नैतिक तथा ईश्वरीय महत्ता को समझने के विकास से भी है।

विकास का अर्थ उन आवश्यकताओं की पूर्ति है जो वर्तमान में योग्यता सम्बन्धी समझौते, जोकि आने वाली पीढ़ी की आवश्यकता पूर्ति में बगैर हानि या अवरोध पहुँचाए हो।

सुचारु रूप से होने वाले विकास से तात्पर्य एक उपयुक्त तथा बहुत ही "मजबूत सामंजस्य" से होता है।

विकास पर कार्य करने वाले विशेषज्ञ अब गरीबी अथवा धन विहीनता के कारकों का क्रमबद्ध परीक्षण करने के लिए एक क्रमिक अध्ययन करने का विचार बना रहे हैं और इस प्रकार के अध्ययन के लिए "सूचकांकों" की आवश्यकता होगी।

आय की कमी अथवा धन विहीनता विकास के बीच में एक अवरोध होता है।

विकास एक अनवरत प्रक्रिया होती है।

विकास का कार्य शान्तिपूर्ण वातावरण में सम्भव होता है।

विकास के लिए राजनीतिक स्थिरता, उचित सांस्कृतिक और नियोजन व्यवस्था, प्रशासनिक कुशलता और स्थिरता, जनसहभागिता, सुदृढ़ आर्थिक नीति, अनुकूल आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, पर्यावरण आदि। शासन की अवधारणा का प्रतिपादन किया जाता है।

निर्भरता सिद्धान्त व्यक्तिगत राष्ट्रों पर केन्द्रित है।

विकसित और विकासशील देशों के बीच असमान विनिमय संबंध को खराब आर्थिक विकास में योगदान के रूप में देखा जाता है।

विकास के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि देश में राजनीतिक स्थिरता और शान्ति का होना अनिवार्य है।

विकास का तात्पर्य किसी सामाजिक संरचना का प्रगति की ओर बढ़ना है।

एक निश्चित लक्ष्य की अपेक्षा विकास एक विशिष्ट दिशा में परिवर्तन की गति है।

विकास का केन्द्र बिन्दु सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक परिवर्तन है।

निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विकास एक संयुक्त प्रयास है।

विकास सम्बन्धी नीतियों और लक्ष्यों का सूत्रीकरण करना है।

आधुनिक वैज्ञानिक और तकनीकी साधनों का प्रयोग करना विकास है।

विकास की अन्य विशेषता यह है कि प्रशासन प्रजातान्त्रिक मूल्यों से सम्बद्ध होता है, क्योंकि इसमें मानव अधिकारों और मूल्यों के प्रति सम्मान, जनहित का उद्देश्य तथा उत्तरदायित्व की भावना निहित रहती है।

विकासशील देशों के लिए आधुनिक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक हो गया है।

विकास एक व्यापक प्रक्रिया है इसके अन्तर्गत अनेक बातों का समावेश होता है। किन्तु विकास में आर्थिक विकास का अधिक महत्व रहता है।

राजनीतिक दल विकास कार्यक्रमों को समर्थन देने के लिए लोगों को तैयार करते हैं और सामाजिक संघर्षों का समाधान करते हैं।

विकास में जनसम्पर्क तथा जन सहभागिता का विशेष महत्त्व है।

विकास में मानवीय तत्व का अध्ययन अपरिहार्य है।

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