बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
तलाक देने के दो स्वरूप हैं- (i) परम्परागत स्वरूप और (ii) न्यायिक स्वरूप (1) बिना न्यायिक प्रक्रिया के यानि परम्परागत स्वरूप के अन्तर्गत तलाक का अधिकार मूल रूप में पुरुष को प्राप्त है। स्त्रियाँ पति की आपसी सहमति से ही तलाक दे सकती हैं। परम्परागत स्वरूप में तलाक के 7 प्रकार है।
तलाक - परम्परागत मुस्लिम कानून के अनुसार पति अपनी पत्नी को किसी भी समय बिना कारण बताए तलाक दे सकता है। यह तलाक लिखित व अलिखित दोनों रूपों में हो सकता है। लिखित तलाक में तलाकनामा जरूरी है।
अलिखित तलाक तीन प्रकार के हैं -
(1) तलाक-ए-अहसन - इसके अंतर्गत तुहर (मासिक धर्म) के समय एक ही बार तलाक की घोषणा की जाती है और इद्दत (तीन महीने) की अवधि तक यौन - सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जाता। इद्दत की अवधि के बाद तलाक हो जाता है।
(2) तलाक-ए-हसन - के अन्तर्गत तीन तुहरों के समय तलाक की घोषणा की जाती है। इस अवधि में यौन-सम्बन्ध स्थापित नहीं किए जाते। फिर तलाक हो जाता है।
(3)तलाक-ए-उल-बिद्दत - के अन्तर्गत तुहर के समय पति एक ही वाक्य में तीन घोषणाएँ (मैं तुम्हें तीन बार तलाक देता हूँ) या तीन बार तीन वाक्यों में दोहरा कर (मैं तुम्हें तलाक देता हूँ, मैं तुम्हें तलाक देता हूँ, मैं तुम्हें तलाक देता हूँ) कहने से तलाक हो जाता है।
इला - यदि पति चार माह तक या उससे अधिक समय तक यौन सम्बन्ध नहीं स्थापित करने का सौगन्ध लेता है और उस सौगन्ध का पालन करता है तो उस अवधि के बाद तलाक पूरा हो जाता है।
जिहर - यदि पति अपनी पत्नी की तुलना ऐसी औरत से करता है जिससे विवाह निषिद्ध है, ऐसी स्थिति में पत्नी पति को प्रायश्चित करने को कहती है। प्रायश्चित नहीं करने पर पत्नी अदालत की मदद से तलाक ले सकती है।
लियान - यदि पति अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाता है और यदि यह गलत साबित होता है तो पत्नी अदालत की मदद से तलाक ले सकती है। तलाक की इस प्रक्रिया को लियान कहते हैं।
मुबारत - के अन्तर्गत पति-पत्नी आपसी सहमति के आधार पर तलाक लेता है। इसमें किसी भी पक्ष को हरजाना देने की नौबत नहीं आती है।
खुला - के अन्तर्गत पत्नी की पति से तलाक की माँग करती है तथा मेहर लौटा देने का वादा करती है। यदि पति राजी हो जाता है तो तलाक हो जाता है।
तलाक - ए - तफबीज - के अन्तर्गत विवाह के समय प्राप्त अधिकार के आधार पर पत्नी तलाक की घोषणा करती है। यह अधिकार पति के द्वारा पत्नी को विवाह के समय प्राप्त हो सकता है।
परम्परागत मुस्लिम विवाह कानून के तहत तलाक का अधिकार मूलतः पुरुष को ही प्राप्त है। यह अधिकार स्त्रियों को नहीं के बराबर है।
1939 के मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम के अनुसार स्त्रियों को तलाक का पूर्ण अधिकार प्राप्त हुआ।
मुस्लिम विवाह का एक खास शर्त मेहर का करार है उसके बाद ही स्त्री - पुरुष के बीच वैवाहिक सम्बन्ध बन सकते हैं।
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