बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 17
तलाक
(Divorce)
भारतीय समाज में अनेकों वैवाहिक समस्याएँ विद्यमान हैं। जिनमें एक प्रमुख समस्या तलाक या विवाह विच्छेद की है। जो कि वैयक्तिक विघटन को प्रोत्साहन देती है। जब किसी व्यक्ति का विवाह किसी लड़की के साथ होता है तो वे दोनों पवित्र अग्नि के समक्ष फेरे लेकर एक-दूसरे का सुख-दुःख में साथ निभाने का वादा करते हैं, किन्तु जब इन दोनों के बीच कुछ कारण ऐसे उत्पन्न हो जाते हैं जिससे दोनों में विवाद होने लगता है तो दोनों ही असन्तुष्ट हो जाते हैं। ये विवाद जब अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाते हैं तो ऐसा लगता है कि इनके विवादों का समाधान असम्भव है वहाँ एक ही रास्ता बचता है कि इन दोनों को अलग-अलग कर दिया जाए। यह अलगाव की स्थिति जब कानून का सहारा लेकर की जाती है तो उसे तलाक या विवाह विच्छेद कहते हैं।
प्रत्येक समाज में विवाह विच्छेद की प्रक्रिया देखी जाती है परन्तु मुसलमानों में तलाक जितना आसान व सरल है, उतना अन्य समाजों में देखने को नहीं मिलता। यद्यपि मुस्लिम विवाह के अन्तर्गत तलाक की व्यवस्था स्त्री व पुरुष दोनों के अधिकार से सम्बन्धित है परन्तु व्यवहार में यह पुरुष अधिकार से ही सम्बन्धित है। महिला कानून के अन्तर्गत विवाह समझौता न्यायिक प्रक्रिया द्वारा या बिना न्यायिक प्रक्रिया द्वारा समाप्त किया जा सकता है जिसे तलाक कहते हैं। न्यायिक प्रक्रिया द्वारा मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1939 के अन्तर्गत तलाक प्राप्त किया जा सकता है। न्यायिक प्रक्रिया के बिना भी पति की इच्छा से या पति-पत्नी की आपसी सहमति से भी तलाक होते हैं। तलाक की प्रक्रिया दो रूपों में पूर्ण किया जा सकता है-
(i) मुंह जबानी कुछ उद्घोषणा के साथ और
(ii) तलाकनामा लिखकर।
पहले तलाक की धारणा मुसलमानों एवं पारसियों में अपनायी जाती थी न कि हिन्दुओं में, क्योंकि हिन्दुओं में विवाह एक धार्मिक कृत्य माना जाता है। इनमें तलाक का आना गलत है किन्तु मनु आदि ऋषियों ने कुछ स्त्रियों के लिए तलाक या विवाह विच्छेद की आज्ञा दी है। कौटिल्य ने भी पति के चरित्रहीन होने पर विवाह विच्छेद की आज्ञा की है । लेकिन फिर भी विवाह एक धार्मिक कार्य माना जाता है, अतः इसमें तलाक को महत्व नहीं दिया जाता है।
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