बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
दलितों को दुकान, होटल, सार्वजनिक जलपान गृह, मनोरंजन का स्थान, आवागमन के साधन, चिकित्सालय या शिक्षण संस्थाओं में जाने से रोकना अपराध समझा जाएगा।
डी० एन० मजूमदार ने लिखा है कि - अस्पृश्य जातियाँ वे हैं, जो विभिन्न सामाजिक तथा राजनैतिक निर्योग्यताओं के आधार पर पीड़ित हैं, जिनमें से अधिकांश परम्परागत रूप से उच्च जातियों द्वारा थोपी गई हैं।
वे सामाजिक दृष्टि से पतित आर्थिक दृष्टि से विपन्न, राजनैतिक दृष्टि से उच्च जातियों के सेवक तथा शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक सुअवसरों से स्थायी रूप से वंचित बने रहे।
अखिल भारतीय स्तर पर खुली प्रतियोगिता परीक्षा के जरिए सीधी भर्ती से भरे जाने वाले पदों में अनुसूचित जाति को 15% अनुसूचित जनजाति को 7.5% तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण की व्यवस्था की गयी है।
अन्य तरीकों से अखिल भारतीय आधार पर भर्तियों में अनुसूचित जातियों को 16.66%, जनजातियों को 7.5% तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 25.84% आरक्षण की व्यवस्था है।
जाति प्रथा ने समाज को दो मोटे भागों में विभक्त किया -
1. सवर्ण जिनकी संख्या कम है और
2. अवर्ण अथवा शासित जो संख्या में बहुत अधिक है। सत्ता और लाभों पर सवर्णों का एकाधिकार हो गया और बहुसंख्यक दलित सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक श्रेणी क्रम में निम्न स्तर पर ढकेल दिए गए।
दलितों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया - अस्पृश्य, असभ्य तथा अदर्शनीय।
1950 में इनकी संख्या लगभग 6 करोड़ थी, जो भारत की कुल जनसंख्या का 20% था। उपनिषदों में इन्हें चाण्डाल कहा गया है और उनकी गणना कुत्तों और सुअरों के साथ की गयी है।
जनवरी 2002 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दलित बुद्धिजीवियों का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें दलितों की दशा सुधारने के लिए 21 सूत्रीय कार्यक्रम तय हुए। कार्यक्रम की इस रूप रेखा को भोपाल घोषणा-पत्र भी कहा जाता है।
सन् 1955 में अस्पृश्यता निवारण अधिनियम बनाकर दलित समस्या को समूल रूप समूल रूप से समाप्त करने का प्रयास किया।
स्वतंत्र भारत के संविधान के अनेक अनुच्छेदों में दलित जातियों के कल्याण के लिए व्यवस्था की गयी। जैसे अनुच्छेद 15(1), अनुच्छेद 1.6, अनुच्छेद 17, अनुच्छेद 25, अनुच्छेद 29, अनुच्छेद 46, अनुच्छेद 164, अनुच्छेद 330, 332, 335 तथा 3381
संविधान के बारहवें भाग के 275 अनुच्छेद के अनुसार केन्द्रीय सरकार राज्यों को जनजातीय कल्याण एवं उनके उचित प्रशासन के लिए विशेष धनराशि देगी।
पन्द्रहवें भाग के 325 अनुच्छेद में कहा गया है कि किसी को भी धर्म, प्रजाति जाति एवं लिंग के आधार पर मताधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा।
सोलहवें भाग के 330 व 332वें अनुच्छेद में लोकसभा एवं राज्य विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित किए गए हैं।
335वाँ अनुच्छेद आश्वासन देता है कि सरकार नौकरियों में इनके लिए स्थान सुरक्षित रखेगी। 338वें अनुच्छेद में राष्ट्रपति द्वारा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति की गयी है।
अनुच्छेद 342 एवं 244 में राज्यों के राज्यपालों को जनजातियों के सन्दर्भ में विशेषाधिकार प्रदान किए गए हैं।
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