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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2747
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 14
दलित
(Dalits)

अधिकार विहीन, सुविधा वंचित अथवा अलाभकारी स्थिति वाले लोगों को निर्बल वर्ग से व्यक्त किया जाता है। दुर्बल वर्ग को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में पाया जाता है। इसी वर्ग में सबसे निरीह वर्ग दलित वर्ग कहलाता है। इसी वर्ग में कुछ अस्पृश्य जातियाँ दलित से भी सम्बोधित होती है। दलित का अभिप्राय समाज में अत्यन्त निम्न स्थान पर आसीन व्यक्ति से है जो सामान्यतः प्रताड़ित किया जाता है, उत्पीड़न का शिकार होता है और जिसका सम्पूर्ण जीवन अभाव दुख तथा अपमान में व्यतीत होता है। दलित शब्द का प्रयोग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों के ऐसे लोगों से है जो गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। गरीबी रेखा का निर्धारण केन्द्रीय सरकार करती है। वर्तमान में वह व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे है जिसकी कुल वार्षिक आय 11,000 रुपये से कम है। दलित वर्ग के व्यक्ति का रहन-सहन का खर्च अपर्याप्त है, उसकी क्रय शक्ति कम है और उसे भोजन को न्यूनतम निर्धारित कैलोरी की मात्रा ही प्राप्त नहीं हो पाती है। इन्हें अछूत, हरिजन और वाह्य जातियाँ भी कहा जाता है। इन्हें संविधान की सूची में सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनीतिक दृष्टि से सुविधाएँ दिलाने के उद्देश्य से शामिल किया गया है।

आज भारत वर्ष में 400 से ऊपर दलित और अस्पृश्य जातियाँ हैं, जबकि धर्मसूत्रों और स्मृतियों में मात्र 20 जातियों का ही उल्लेख मिलता है। सन् 1955 के अस्पृश्यता निरोधक कानून के द्वारा भी अस्पृश्यता पर प्रकाश पड़ता है। समान धर्म के अनुयायियों को खुले सार्वजनिक पूजा के स्थानों पर जाने से रोकना तथा किसी सार्वजनिक पूजा के स्थान पर पूजा करने से, प्रार्थना करने से, किसी भी धार्मिक कृत्य करने से तथा किसी भी पवित्र जलाशय, कुएँ झरना या जल स्रोत के रूप में किसी भी एक धर्म के मानने वालों को प्रयोग करने से रोकना अपराध समझा जाएगा।

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