बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
सन् 1950 में पहली बार अखिल भारतीय स्तर पर "अखिल भारतीय पिछड़ा महासंघ" की स्थापना की गई।
पिछड़े वर्गों को परिभाषित करते हुए 'राजनीति कोश' में कहा गया है कि - "पिछड़े वर्गों का अभिप्राय समाज के उन वर्गों से है जो सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक निर्योग्यताओं के कारण समाज के अन्य वर्गों की तुलना में निचले स्तर पर हों।"
प्रो0 आन्द्रे बिताई ने - कृषि करने वाली जातियों को पिछड़े वर्गों के अन्तर्गत सम्मिलित किया है। कुछ लोगों का मत है कि शूद्र वर्ण के लोगों को पिछड़ा वर्ग माना जाना चाहिए। पिछड़े वर्ग को द्विज जातियाँ - ब्राह्मण क्षत्रिय एवं वैश्य जातियों से नीचा माना जाता है।
बिहार राज्य में सरकारी स्तर पर दो वर्ग माने गए हैं- एक 'अगाड़ी वर्ग' एवं दूसरा 'पिछड़ा वर्ग'|
पिछड़ापन एक जाति समूह या समुदाय का लक्षण है न कि जाति का तथा अन्य पिछड़े वर्गों की सदस्यता की भाँति ही जन्म के आधार पर तय होती है।
भारतीय संविधान में पिछड़े वर्ग के लिए सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ेपन को आधार माना गया है।
पिछड़े वर्ग में ब्राह्मणों से निम्न और अछूत जातियों से उच्च, मध्यम श्रेणी की जातियाँ और समूहों को सम्मिलित किया गया है।
अनुच्छेद 15 (4) के अन्तर्गत राज्य को सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान किए जाने की शक्ति प्रदान की गई है।
अनुच्छेद 16(4) के अन्तर्गत राज्यों को पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में स्थान आरक्षित करने की शक्ति प्राप्त है।
29 जनवरी सन् 1953 को राष्ट्रपति ने काका कालेलकर की अध्यक्षता में एक आयोग की स्थापना की जो काका कालेलकर आयोग के नाम से जाना जाता है। यह पिछड़े वर्गों से सम्बन्धित अखिल भारतीय स्तर का प्रथम आयोग था।
लगभग दो वर्ष बाद आयोग ने केन्द्र सरकार को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
इस प्रतिवेदन में 2,399 जातियों को पिछड़े वर्गों की श्रेणी में बताया गया जिसमें देश की लगभग 70% जनसंख्या आ जाती है।
आयोग ने 'पिछड़ेपन' के निर्धारण की निम्न कसौटियाँ सुझायी-
1. जाति संस्तरण में निम्न सामाजिक स्थिति
2. शैक्षणिक प्रगति का अभाव
3. राजकीय सेवा में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व
4. व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व।
आयोग ने सुझाव दिया कि प्रथम श्रेणी की सेवाओं में 25%, द्वितीय श्रेणी की सेवाओं में 33.5% तथा तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी की सेवाओं में 40% स्थान पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित किया जाय।
सन् 1960 में कर्नाटक सरकार ने ब्राह्मणों को छोड़कर सभी जातियों को पिछड़ी माना बिहार सरकार ने मुंगेरी लाल आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखकर 124 जातियों को पिछड़ी जाति घोषित किया और उन्हें नौकरियों में 26% स्थान आरक्षित किए।
16 नवम्बर 1992 को सर्वोच्च न्यायालय ने मण्डल आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश में 27% आरक्षण को उचित ठहराया।
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