बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 13
पिछड़ा वर्ग
(Backward Class)
भारतीय संविधान के भाग 16 तथा कुछ अन्य प्रावधानों में पिछड़े वर्ग या अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ 'अन्य पिछड़े वर्गों' शब्द का प्रयोग किया गया है। सामान्यतः पिछड़े वर्गों में अनुसूचित जातियों, जनजातियों, भूमिहीन श्रमिकों, श्रमिकों एवं छोटे किसानों आदि को सम्मिलित किया जाता है। ये वे लोग हैं जो जाति-व्यवस्था में ब्राह्मणों से नीचे किन्तु अस्पृश्य जातियों से ऊँचे रहते हैं। भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामजिक, शैक्षणिक, आर्थिक और राजनीतिक कल्याण के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं। उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है, किन्तु पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में केवल विशेष प्रावधान ही किए गए थे, आरक्षण की व्यवस्था नहीं की गई थी जो अब कर दी गई है।
पिछड़े वर्ग की कहीं भी कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं की गई है वरन् केवल आशय ही स्पष्ट किया गया है। 'पिछड़े वर्ग' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1917-18 में और उसके बाद 1930-31 में किया गया। सन् 1934 में मद्रास में प्रान्तीय स्तर के 'पिछड़े वर्ग संघ' की स्थापना की गई थी जिसमें सौ से भी अधिक जातियों को सम्मिलित किया गया जिनकी कुल जनसंख्या तमिलनाडु में लगभग 50% थी। सन् 1937 में ट्रावनकोर राज्य ने उन सभी समुदायों के लिए पिछड़े समुदाय शब्द का प्रयोग किया जो आर्थिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए थे। सन् 1947 ई0 में बिहार में 'पिछड़े वर्ग महासंघ' की स्थापना की गई और बिहार सरकार ने अन्य पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए मैट्रिक के बाद के अध्ययन हेतु कुछ सुविधाओं की घोषणा की। सन् 1948 में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी अन्य पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा सम्बन्धी सुविधाएं देने की घोषणा की जिसमें राज्य की 56 जातियों को सम्मिलित किया गया।
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