बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
डॉ. सक्सेना का मत है कि - जाति हिन्दू सामाजिक संरचना का एक मुख्य आधार रहा है जिससे हिन्दुओं का सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन प्रभावित होता रहा है। हिन्दुओं के सामाजिक जीवन के किसी भी क्षेत्र का अध्ययन बिना जाति के विश्लेषण के अपूर्ण ही रहता है।
डॉ० मजूमदार के अनुसार - "जाति-व्यवस्था भारत में अनुपम है। सामान्यतः भारत जातियों एवं सम्प्रदायों की परम्परागत स्थली माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ की हवा में भी जाति घुली हुई है और यहां तक कि मुसलमान तथा इसाई भी इससे अछूते नहीं हैं। " जाति शब्द की उत्पत्ति का पता सन् 1665 में ग्रेसिया डी ओरटा नामक विद्वान ने लगाया था।
फ्रांस के अब्बे डुब्बॉय ने इसका प्रयोग (जाति) प्रजाति के संदर्भ में किया है।
जाति शब्द अंग्रेजी भाषा के 'Caste' का हिन्दी अनुवाद है । अंग्रेजी के Caste शब्द की व्युत्पत्ति पुर्तगाली भाषा के 'Casta' शब्द से हुई है जिसका अर्थ मत, विभेद तथा जाति से लिया जाता है।
मजूमदार एवं मदान के अनुसार - "जाति एक बन्द वर्ग है ।"
कूले के शब्दों में - "जब एक वर्ग पूर्णतः आनुवंशिकता पर आधारित हो, तो हम उसे जाति कहते हैं।
जाति एक ऐसा सामाजिक समूह है जिसकी सदस्यता जन्म पर आधारित होती है और जो अपने सदस्यों पर खान-पान, विवाह, पेशा, और सामाजिक सहवास सम्बन्धी अनेक प्रतिबन्ध लागू करता है। इस मत को हट्टन, दन्ती, धुरिये आदि मानते हैं।
मार्टिण्डेल एवं मोनेकेसी के अनुसार - "जाति का अर्थ ऐसे मानव समूह से है जिसके विशेषाधिकार तथा दायित्वं जन्म से निश्चित होते हैं तथा धर्म व जादू-टोने द्वारा समर्थित व अनुमोदित होते हैं।"
डॉ० घुरिये ने - जाति की छः विशेषताओं का उल्लेख किया है।
एन० के० दत्ता के अनुसार - एक जाति के सदस्य जाति के बाहर विवाह नहीं कर सकते, प्रत्येक जाति में दूसरी जातियों के साथ खान-पान के सम्बन्ध में प्रतिबन्ध होते हैं। अधिकांश जातियों के पेशे निश्चित होते हैं।
जातियों में ऊँच-नीच का एक संस्तरण होता है जिनमें ब्राह्मणों की स्थिति सर्वमान्य रूप से शिखर पर है।
व्यक्ति की जाति जन्म के आधार पर ही जीवन भर के लिए निश्चित होती है केवल जाति के नियमों को तोड़ने पर ही उसे जाति से बहिष्कृत किया जा सकता है अन्यथा एक जाति से दूसरी जाति की सदस्यता ग्रहण करना सम्भव नहीं है।
सम्पूर्ण जाति-व्यवस्था ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा पर आधारित है।
डी०डी० वरमन के अनुसार - "जाति व्यवस्था में निहित असमान अवसरों पर प्रतिष्ठा का वितरण मुख्य रूप से सामाजिक स्वीकृतियों के द्वारा संचालित होता है जिसका नियन्त्रण उच्च स्तर के हाथों में होता है।"
एच० टी० वार्न्स और हार्ड बेकर के अनुसार - भारतीय जाति व्यवस्था के आधार स्तम्भ चार वर्ण हैं। ये वर्ण हल्के श्वेत से लेकर पूर्णकाल तक है। इस व्यवस्था में शीर्ष पर ब्राह्मण है जो लगभग 3000 ई० पू० भारत पर आक्रमण करने वाले आर्यों के वंशज हैं।"
नर्मदेश्वर प्रसाद के अनुसार - "इन सबका उल्लेख हिन्दुओं के विभिन्न ग्रन्थों में हुआ है जो कि समय-समय पर युग की आवश्यकताओं के अनुरूप रचे गए हैं।"
श्री के0 एम0 पणिक्कर के अनुसार - "जातिवाद राजनीति की भाषा में उपजाति के प्रति परम निष्ठा का भाव है।
काका कालेलकर के अनुसार - "जातिवाद अन्य और परमोच्च समूह भक्ति है जो न्याय के स्वरूप सामाजिक मानदण्डों, औचित्य, नैतिकता तथा सार्वभौमिक भ्रातृत्व की अपेक्षा रखती है।"
डॉ0 नर्मदेश्वर प्रसाद के अनुसार - "जातिवाद राजनीति में रूपान्तरित जाति के प्रति निष्ठा है।"
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