बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 10
जातीय विषमता
(Caste Inequality)
विश्व में असमानता सार्वभौमिक है। कोई भी दो वस्तुएँ समान नहीं होती हैं। जुड़वाँ बच्चे (यमन) भी असमान होते हैं। प्रत्येक स्तर पर विषमता दृष्टिगत होती है। व्यक्ति तथा समाज स्तर पर भी असमानता होती है। समाज चाहे लोकतांत्रिक, साम्यवादी व समाजवादी कैसा भी हो उसमें असमानता विद्यमान रहती है। मानवीय समानता के समर्थनकर्ताओं का तर्क है कि सभी जीव प्रकृति ने बनाए हैं अतः सभी को समान समझा जाना चाहिए।
आंद्रे बेताई के अनुसार - "आधुनिक विश्व का महान विरोधाभास यह है कि हर स्थान पर मनुष्य स्वयं को समानता के सिद्धांत का समर्थक बनाता है और प्रत्येक स्थान पर वे अपने जवीन में तथा दूसरे के जीवन में असमानता की विद्यमानता का सामना करते हैं।" असमानताएँ सार्वभौमिक हैं। इनकी विद्यमानता सर्वत्र है दुनिया का कोई भी समाज समान नहीं है। जाति की समानताएँ अथवा 'जातीय असमानता' में दो शब्द जाति तथा असमानता शामिल है।
जाति व्यवस्था सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रकार हैं जो भारत में पाई जाती है। चूँकि यह अत्यन्त प्राचीन व्यवस्था है अतः इसके उत्पत्ति एवं विकास को लेकर कोई वैज्ञानिक या वस्तुनिष्ठ प्रमाण उपलब्ध नहीं है। इसकी उत्पत्ति कई ज्ञात-अज्ञात कारणों का परिणाम है।
असमानता का आशय उस दशा से है जो समान नहीं होती है। सामाजिक वर्ग को असमानता का ही रूप माना जाता है। असमानता का कारण यह भी हो सकता है कि हर व्यक्ति दूसरे की अपेक्षा स्वयं को बेहतर समझने व बनाने का प्रयास करता है असमान होने की दशा अथवा स्थिति अथवा समानता का अभाव असमानता है।
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