बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
वीवर के अनुसार - "निर्धनता को रहन-सहन की एक ऐसी दशा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें स्वास्थ्य और शारीरिक कुशलता का अभाव होता है।"
भारत में सन् 2001 की जनगणना के अनुसार अब तक जनसंख्या का केवल 65.38 प्रतिशत भाग ही साक्षर है। इस प्रतिशत में वे व्यक्ति भी सम्मिलित हैं जो मामूली रूप से भी लिख-पढ़ सकते हैं।
'भारत में आज भी उद्योगों की कमी है जिसके कारण यहाँ बेरोजगारी में वृद्धि होती है जो कि निर्धनता का एक प्रधान कारण है।
निर्धनता के लिए सामाजिक कारण भी जिम्मेदार होते हैं। जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा, उत्तराधिकार के नियम, शिक्षा व मानव कल्याण के प्रति उदासीनता आदि अनेक कारण हैं जो गरीबों को और गरीब बना रहे हैं।
एडम स्मिथ के अनुसार - "एक मनुष्य उस सीमा तक सम्पन्न या दरिद्र होता है, जिन अंशों में उसे जीवन की आवश्यक सुविधाएँ एवं मनोरंजन के साधन उपयोग के लिए प्राप्त हो सकते हैं।"
गोडार्ड ने लिखा है कि - "दरिद्रता में उन वस्तुओं का अभाव है जो कि एक व्यक्ति या अपने आश्रितों को स्वस्थ एवं पुष्ट बनाने के लिए आवश्यक है।"
देश में प्राप्त साधनों की अपेक्षा जनसंख्या का अधिक होना भी निर्धनता का प्रमुख कारण है। कभी-कभी सरकार की गलत नीतियों के कारण भी सामान्य निर्धनता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
निर्धनता के लिए व्यक्तिगत कारक भी जिम्मेदार होते हैं। व्यक्ति की मूर्खता उसके दुर्भाग्य का सबसे बड़ा कारण है। जो व्यक्ति अशिक्षित, बीमार, अनैतिक, अपराधी, आलसी, व्यसनी, शराबी, जुआरी, मूर्ख, अदूरदर्शी, अपंग, निर्बल और अपव्ययी हो उसे समृद्ध बनाने की सम्भावना कैसे की जा सकती है।
निर्धनता प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति से सम्बन्धित है जैसे कुटीर उद्योगों का अभाव, खेती की विपन्नता, विशेषज्ञों का अभाव, बैंक और साख-सुविधाओं की कमी, परिवहन संचार साधनों का अभाव, प्राकृतिक साधनों के प्रति उदासीनता आदि।
सामाजिक व्यवस्था का दोष निर्धनता का एक प्रमुख कारण है जैसे— संयुक्त परिवार प्रणाली गन्दी बस्तियाँ, कुरीतियाँ एवं अन्धविश्वास, दोषपूर्ण सामजिक स्तरीकरण आदि।
निर्धनता के दुश्चक्र से आशय तारामंडल के समान शक्तियों का इस प्रकार घूमने से लगाया जाता हैं कि वे परस्पर क्रिया प्रक्रिया करती हुई गरीब देश को गरीबी की श्रेणी में बनाए रखें। " यह कथन प्रो० रेगनर नर्कसे का है।
निर्धनता का समाज पर प्रभाव - शारीरिक प्रभाव, मानसिक प्रभाव, सामाजिक प्रभाव अपराधों में वृद्धि, भिक्षावृत्ति, चरित्र का पतन आदि अनेक प्रभाव समाज पर पड़ते हैं।
निर्धनता निवारण के उपाय - कृषि में सुधार, कुटीर उद्योगों का विकास, शक्ति के साधनों का पूर्ण उपयोग, परिवार नियोजन स्वास्थ्य के स्तर में सुधार, साख सुविधाओं में वृद्धि आदि के उपायों द्वारा निर्धनता का निवारण संभव हो सकता है।
लोगों को निर्धनता से उबारने के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा आवश्यक है, ताकि वे अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें और तरह-तरह के कार्यों को करने की उनमें शक्ति उत्पन्न हो।
सामाजिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, उद्योगों के विकास तथा पारिवारिक नियोजन आदि के द्वारा निर्धनता को दूर किया जा सकता है।
निर्धनता दूर करने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने विभिन्न उद्योगों की स्थापना करके देश में प्राप्त साधनों का अधिकाधिक उपयोग करना आरंभ कर दिया है।
जमींदारी उन्मूलन अधिनियम के द्वारा कृषकों की पराश्रयता को समाप्त करके भूमि पर स्थायी अधिकारों की व्यवस्था की गई है।
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