बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 9
निर्धनता
(Poverty)
निर्धनता समाज की एक जटिल समस्या है। यह हर समाज में विद्यमान रहती है लेकिन अन्य देशों में खासतौर से पाश्चात्य देशों में यह समस्या उतनी जटिल नहीं है जितनी की भारत में है। निर्धनता एक आर्थिक अवस्था है जो धनी अवस्था का विलोम है। वास्तव में गरीबी और अमीरी दोनों सापेक्षिक हैं, जो दो व्यक्तियों की आर्थिक दशा की तुलना करने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं।
भारत में गरीबी की परिभाषा पौष्टिक आहार के आधार पर दी गई है। योजना आयोग के अनुसार, किसी व्यक्ति को गाँवों में यदि 2400 कैलोरी तथा शहरों में 2100 कैलोरी प्रतिदिन की ऊर्जा का भोजन उपलब्ध नहीं होता है तो यह माना जाएगा कि वह व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। कुछ प्रमुख विद्वानों ने निर्धनता को निम्न प्रकार परिभाषित किया है ? गिलिन एवं गिलिन के अनुसार - "निर्धनता वह दशा है जिसमें एक व्यक्ति अपर्याप्त आय या विचारहीन व्यय के कारण अपने जीवन स्तर को उतना ऊँचा नहीं रख पाता है जिससे उसकी शारीरिक व मानसिक कुशलता बनी रह सके और वह तथा उसके आश्रित समाज के स्तर के अनुसार, जिसका कि वह सदस्य है, जीवन व्यतीत कर सके।"
उपर्युक्त परिभाषाओं के अनुसार निर्धनता एक सापेक्ष शब्द है। उसका मापदण्ड व्यक्तियों की न्यूनतम जीवन स्तर की सुविधाएँ प्राप्त न हो सकना है। न्यूनतम जीवन स्तर विभिन्न साधनों पर भिन्न-भिन्न होने के कारण निर्धनता के किसी साधारण मापदण्ड का निर्धारण नहीं किया जा सकता है।
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