बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
सिमोन द बोउवार एक फ्रांसीसी दार्शनिक, लेखिका, नारीवादी कार्यकर्ता तथा सामाजिक सिद्धान्तकार थी। नारीवादी सिद्धान्त तथा नारीवादी अस्तित्ववाद पर उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया है।
इनका जन्म 9 जनवरी 1908 को पेरिस, फ्रांस में हुआ था।
इनकी मृत्यु 14 अप्रैल 1986 को हुई थी।
इनके पिता जॉर्ज बंट्रेड डी बोउवार थे जो एक विधिक सचिव थे।
इनका माता फ्रैंकोइस डी बोउवार थी जो एक धनी बैंकर की बेटी थी।
इनकी एक छोटी बहन भी थी। इनका बचपन सम्पन्नता में व्यतीत हुआ परन्तु प्रथम विश्व युद्ध के बाद इनके परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई तथा इन्होंने बाद में कष्ट प्रद जीवन व्यतीत किया।
इनकी प्रारम्भिक शिक्ष कैथोलिक स्कूल में हुई थी तथा बचपन में ये एक नन बनना चाहती थी।
किशोरावस्था तक आते-आते धर्म में इनकी रूचि समाप्त हो गई तथा ये एक नास्तिक बन गई तथा आजीवन एक नास्तिक ही रहीं।
सिमोन ने 1926 में सोरबेन में दर्शनशास्त्र विषय का अध्ययन प्रारम्भ किया।
पेरिस विश्वविद्यालय में इनकी मुलाकात जीन पौल सार्त्र से हुई जो एक फ्रेंच लेखक तथा अस्तित्ववादी थी। इनके साथ सिमोन के दीर्घकालीन आत्मीय सम्बन्ध स्थापित हुए जो आजीवन चले।
सिमोन ने सार्त्र के विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था क्योंकि इनका विवाह नाम की संस्था में विश्वास नहीं था। परन्तु ये जीवनपर्यंत सार्त्र के साथ रहीं। सार्त्र का देहांत 1980 में हुआ था।
सिमोन ने दर्शन पर अनेक निबंध, उपन्यास, आत्मकथाएँ और मोनोग्राफ लिखे हैं।
सिमोन की रचना 'द सेकेण्ड सेक्स' विशेष रूप से प्रसिद्ध यह समकालीन नारीवाद का एक मूलभूत मार्ग है। इस पुस्तक को नारीवाद आंदोलन की गीता कहा जाता है।
इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद प्रभा खेतान ने 'स्त्री उपेक्षिता के नाम से किया है।
इनकी अन्य रचनाओं में द मंदारिन्स, शी मेम टू स्टे, ए बेरी ईजी डेथ, द वूमन डिस्ट्रॉयड, द कमिंग ऑफ ऐज, द एथिक्स ऑफ एम्बिगुएटी और इनसेपरेबल आदि सम्मिलित हैं।
सिमोन को उनके कार्यों के लिए अनेक पुरस्कार प्रदान किए गए, यथा, 1954 में प्रिक्स गोनकोर्ट, 1975 में जेरूसलम पुरस्कार, 1978 में यूरोपीय साहित्य के लिए आस्ट्रियाई राज्य पुरस्कार आदि।
उन्हें 'द मंदारिन्स' के लिए फ्रांस का सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
इनका मानना है कि स्त्री पैदा नहीं होती, उसे बनाया जाता है। बालिकाओं में स्त्रियोचित गुण परिवार एवं समाज के द्वारा भरे जाते हैं।
उनका मत है कि महिलाओं की बराबरी की बात करते समय हमें उनके जैविक अंतर की वास्तविकता को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। महिलाओं और पुरुषों के बीच जो जैविक अंतर है उसके आधार पर महिलाओं को दबाना बहुत ही अन्यायपूर्ण और अनैतिक है।
सिमोन आजीवन नास्तिक बनी रही। उनका मानना था कि धर्म तो वास्तव में पुरुषों के द्वारा बनाया हुआ एक तरीका है स्त्रियों पर शासन करने का।
सिमोन की पुस्तक 'द सेकेण्ड सेक्स' को नारीवाद पर लिखी गई सबसे उत्कृष्ट और लोकप्रिय पुस्तकों में गिना जाता है। इस पुस्तक को उन्होंने 38 वर्ष की आयु में लिखा था तथा इसको लिखने में उन्हें 14 महीनों का समय लगा था।
यह पुस्तक यूरोप के सामाजिक, राजनैतिक तथा धार्मिक नियमों को चुनौती देती है, जिन्होंने नारी अस्तित्व एवं नारी प्रगति में सदैव बाधा डाली है और नारी जाति को पुरूषों से नीचे स्थान दिया है।
सिमोन महिलाओं की स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता एवं पुरुषों से बराबरी का पुरजोर समर्थन करती हैं।
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