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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 22
सिमोन डी बेवॉयर
(Simone De Beauvoir)
सिमोन डी बेवॉयर का जन्म 9 जनवरी 1908 को पेरिस में हुआ था। इनके पिता जॉर्ज बट्रेंड डी बेवॉयर थे जो एक विधिक सचिव थे। इनकी माता फ्रैंकोइस डी बेवॉयर थी जो एक धनी बैंकर की बेटी थी। इनकी मृत्यु 14 अप्रैल 1986 को हुई थी।
ये एक फ्रांसीसी दार्शनिक, लेखिका, नारीवादी कार्यकर्ता और सामाजिक सिद्धान्तकारी थी। नारीवादी सिद्धान्त और नारीवादी अस्तित्ववाद पर उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। बेवॉयर ने दर्शन पर अनेक निबंध, उपन्यास, आत्मकथाएँ और मोनोग्राफ लिखे हैं। उनकी कृति 'द सेकेण्ड सेक्स' विशेष रूप से प्रसिद्ध है जो समकालीन नारीवाद का एक मूलभूत मार्ग है। इनकी अन्य लोकप्रिय रचनाओं में द मंदारिन्स, शी केम टू स्टे, द वूमन डिस्ट्रॉयड, द कमिंग ऑफ ऐज, द एथिकस ऑफ एम्बिगुएटी और इनसेपरेबल सम्मिलित हैं।
बेवॉयर को उनके कार्यों के लिए अनेक पुरस्कार, जैसे- 1954 में प्रिकस गोनकोर्ट, 1975 में जेरूसलम पुरस्कार तथा 1978 में यूरोपिय साहित्य के लिए आस्ट्रियाई राज्य पुरस्कार, प्रदान किए गए। उन्होंने 'द मंदारिन्स' के लिए फ्रांस का सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार भी प्राप्त किया।
वैसे तो उन्होंने दर्शन इत्यादि पर काफी कुछ लिखा, लेकिन वह खास तौर पर अपनी किताब, 'द सेकण्ड सेक्स' के लिए जानी जाती हैं। ये किताब उनके जीवन के निजी अनुभवों पर भी आधारित है। इस किताब कि वह लाइन बेहद मशहूर हैं जहाँ वह कहती हैं कि औरत पैदा नहीं होती है, बल्कि समाज औरत को गढ़ता है। वह बार-बार इस पर ज़ोर देती हैं कि हमारा धर्म, हमारी संस्कृति, हमारा समाज, लड़कियों को मजबूर करता है 'स्त्री' बनने के लिए। यही वजह रही थी कि वह आजीवन नास्तिक बनी रही। वह कहती थीं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे धर्म में औरतों की भी पूजा होती है। धर्म को वास्तव में आदमियों के द्वारा बनाया हुआ एक तरीका है औरतों पर शासन करने का। यही नहीं, उनकी इस किताब के द्वारा वह प्लेटों के ऊपर भी प्रहार करती हैं। प्लेटो कहते हैं कि इंसान का लिंग उसके हाथ में नहीं है। दोनों ही लिंग वाले व्यक्ति योग्य वर्ग प्रिविलेजड क्लास का सदस्य बन सकते हैं, लेकिन उसके लिए उस इंसान को एक पुरुष की तरह खुद को प्रशिक्षित करना होगा, एक पुरुष की तरह जीना होगा। प्लेटों के इसी बिन्दु की सिमोन आलोचना करती है। सिमोन के मुताबिक यह लैंगिक भेदभाव है। प्लेटो के अनुसार शासन वही कर सकता है जो पुरुष है या पुरुष की तरह व्यवहार- करता है। सिमोन यह कहती हैं कि बराबरी पाने के लिए ऐसा करना उचित नहीं है। बावजूद इसके कि पुरुषों और महिलाओं में जैविक अंतर है, दोनों लिंगों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। समान व्यवहार प्राप्त करने के लिए महिलाओं को पुरुषों की तरह व्यवहार करने की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए। वह आगे यह भी कहती हैं कि बराबरी और समानता एक नहीं है।
"महिलाओं और पुरुषों के बीच जो जैविक अंतर है उसके आधार पर महिलाओं को दबाना बहुत ही अन्यायपूर्ण और अनैतिक है।" द सेकण्ड सेक्स के के अतिरिक्त उनके एक उपन्यास 'द मैंडरिन' के लिए उन्हें फ्रेंच साहित्यिक पुरस्कार, 'द प्रिक्स गोंकोर्ट से भी नवाजा गया। सिमोन, जीन पौल सार्त्र, जो एक फ्रेंच लेखक थे उन के साथ भी अपने रिश्ते के लिए जानी जाती हैं। इनके साथ सिमोन के गहरे आत्मीय सम्बन्ध थे परन्तु सिमोन ने इनके साथ विवाह नहीं किया क्योंकि ये विवाह नामक संस्था में विश्वास नहीं करती थी। परन्तु सिमोन तथा इनका साथ जीवन पर्यन्त रहा।
एक नारीवाद के साथ-साथ, सिमोन दार्शनिक भी थी जो यह चाहती थी कि औरतों के पास अपने लिए 'चुनने की आजादी' होनी चाहिए। वह यह मानती थी कि हर इंसान एक वजह के लिए पैदा होता है।
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