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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2746
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

उन्नीसवीं शताब्दी के प्रख्यात अंग्रेज विचारक जे. एस. मिल को व्यक्तिवाद और स्वतन्त्रता का महान् उन्नायक माना जाता है। उदारवादी चिन्तन के परम्परा में उसका सबसे बड़ायोगदान था, उसने अपने समय के अनुरूप स्वतन्त्रता की संकल्पना को बदल दिया।

जे. एस. मिल ने स्वतन्त्रता के बारे मे अपनी संकल्पना अपने प्रसिद्ध निबन्ध आन लिबर्टी के अन्तर्गत प्रस्तुत की।

मिल व्यक्ति को ही समस्त उदात्त और विवेकपूर्ण तत्त्वों का स्रोत मानता था। अतः उसने यह

तर्क दिया कि व्यक्ति की स्वतन्त्रता समाज की सुख-समृद्धि के लिए अनिवार्य है।

मिल ने तर्क दिया कि व्यक्ति के आत्मपरक कार्यों में राज्य की ओर से कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए और उसके अन्य परक कार्यों में केवल उन्हीं कार्यों पर रोक लगायी जानी चाहिए जो दूसरों को हानि पहुँचाते हों और यह बात प्रमाणित की जा सकती हो।

मनुष्य को सभी विषयों पर चाहे वे व्यवहारिक जीवन से जुड़े हों या चिन्तन मनन के क्षेत्र से चाहे वे वैज्ञानिक हों भौतिक या धर्म शास्त्रीय हों, कोई भी विचार या भावना रखने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए।

मिल ने अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के महत्त्व पर विशेष बल दिया है। मिल यह दिखाना चाहता था कि लोकतन्त्र की स्थापना से व्यक्ति की स्वतन्त्रता की समस्या हल नहीं हो सकती, बल्कि उसके लिए नये-नये खतरे पैदा हो जाते हैं।

मिल ने तर्क दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता केवल तभी जरूरी नहीं जब सरकार भ्रष्ट या अत्याचारी हो बल्कि जब लोकमत पर आधारित न्याय प्रिय सरकार सत्ता सँभाले हो तब भी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता उतनी ही जरूरी है।

मनुष्य को स्वयं जैसा अच्छा लगे वैसे जीकर कष्ट उठाने में जितना लाभ होगा, जैसा दूसरों को अच्छा लगे वैसे जीकर सुख पाने में उतना लाभ नहीं होगा।

जो मनुष्य बँधे बँधाए तरीके से चलता है या केवल रीति-रिवाज का पालन करता है, वह अपने जीवन में चयन की क्षमता का प्रयोग नहीं करता।

औद्योगिक समाज का दबाव सब जगह एकरूपता को बढ़ावा देता है और सबसे एकरूपता की माँग करता है। जो व्यक्ति इस एकरूपता को चुनौती देता है वह विचार प्रस्तुत करके मिल औद्योगिक समाज के प्रति अत्यन्त मानवीय और लोकतन्त्रीय दृष्टिकोण का परिचय दिया है।

स्त्रियों की पराधीनता ऐसी विश्व जननी प्रथा का रूप धारण कर चुकी है कि जब कहीं स्त्री के वर्चस्व का कोई संकेत मिलता है तो वह अस्वाभाविक प्रतीत होता है।

बेन्थम ने स्वतन्त्रता के सिद्धान्त को उपयोगितावाद के साथ जोड़कर इसे बिल्कुल नये रंग में ढाल दिया।

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