बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
यूरोप में अठारहवीं शताब्दी के दौरान एक युगान्तकारी परिवर्तन आया जिसने वहाँ के सम्पूर्ण आर्थिक जीवन को नये रूप में ढाल दिया। इस महान् परिवर्तन का नाम औद्योगिक क्रान्ति था।
औद्योगिक क्रान्ति की शुरुआत आर्थिक जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन से हुई, परन्तु आगे चलकर इसने मानव जीवन के सभी पक्षों- राजनीति, धर्म, कला, संस्कृति, साहित्य, नैतिक और सामाजिक मूल्यों पर प्रभाव डाला।
जरमीं बेंथम अठारहवीं शताब्दी का अंग्रेज विचारक था जिसने चिरसम्मत उदारवाद को एक नया मोड़ दिया। बेन्थम से पहले अंग्रेज उदारवाद प्राकृतिक अधिकारों और प्राकृतिक कानून जैसी कपोल कल्पनाओं पर आधारित था।
एपीक्यूरस के इस विचार को नये सन्दर्भ में दोहराया कि मनुष्य को ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे वह अपने सुख को बढ़ा सके और दुःख से बच सके।
सुखवाद के विचार का समर्थन करते हुए बेन्थम ने लिखा है कि प्रकृति ने मनुष्य को दो शक्तिशाली स्वामियों के नियन्त्रण में रखा है, जिनके नाम हैं सुख और दुःख। मनुष्य सदैव सुख को पाना चाहता है। जो बात सुख को बढ़ाती है और दुःख को रोकती है या कम करती है उसे उपयोगिता कहा जाता है।
बेन्थम ने यह मान्यता प्रस्तुत की कि सुख और दुःख काल्पनिक मानदण्ड नहीं हैं, बल्कि ये बाकायदा नाप-तौल की वस्तुएँ हैं। ये कोई आत्मपरक अनुभूतियाँ नहीं हैं बल्कि आत्मपरक मानदण्ड हैं। उसने भिन्न-भिन्न प्रकार के सुखों में गुणात्मक अन्तर का खण्डन करते हुए उनके परिमाणात्मक अन्तर पर बल दिया।
बेन्थम के बाद उदारवादी चिन्तन की सबसे प्रबल-धारा उपयोगितावादी सिद्धान्तों पर आश्रित रही।
बेन्थम ने सुख को मापने के लिए सात मापदण्ड अपनाए हैं- तीव्रता, स्थायित्व, निश्चितता, निकटता, उर्वरता, शुद्धता, विस्तार।
बेन्थम ने अपनी सुखवादी गणना के अन्तर्गत एक व्यक्ति एक वोट के सिद्धान्त को उपयोगिता निर्धारित करने का सूत्र बनाकर लोकतन्त्र के विचार को बढ़ावा दिया है।
बेन्थम ने अपने उपयोगितावाद को एडम स्मिथ की आर्थिक शिक्षाओं के साथ मिलाने का प्रयत्न किया और ऐसे कल्याणकारी राज्य की योजना प्रस्तुत की जिसमें निःशुल्क शिक्षा, रोगावस्था - सुविधाओं, न्यूनतम मजदूरी और रोजगार गारण्टी की व्यवस्था की गयी थी।
बेन्थम का यह विचार बहुत महत्त्वपूर्ण और सर्वथा आधुनिक है कि राज्य को अपना औचित्य स्थापित करने के लिए यह सिद्ध करना होगा कि वह वर्तमान समाज की उपयुक्त सेवा कर रहा है।
राजनीतिक चिन्तन का ध्येय शक्ति के स्वरूप और नियमों को समझना तथा हितकर लक्ष्यों की सिद्धि के लिए उनका प्रयोग करना है।
उन्नीसवीं शताब्दी के राजनीतिक चिन्तन में लगातार इसका बोलबाला रहा और इसने वैज्ञानिक चिन्तन के मार्ग की ढेर सारी बाधाओं को परे हटा दिया।
बेन्थम के उपयोगितावाद के आधार पर उसने दार्शनिक आमूल परिवर्तनवाद की नींव रखी। ० अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख के मार्ग में बाधक थी। उसने लोकतन्त्रीय शासन को सराहा जिसका ध्येय शासितों का हित साधन था।
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