बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
एडमंड बर्क का जन्म 12 जनवरी 1729 में डबलिन, आयरलैण्ड में हुआ था।
बर्क को आधुनिक बौद्धिक रूढ़िवाद का मूल प्रवर्तक माना जाता है।
इनके पिता का नाम रिचर्ड तथा माता का नाम मैरी था।
1790 में इन्होंने फ्रांसीसी क्रान्ति पर अपने विचार "रिफ्लैक्शन ऑन द रीसेंट रिवोल्यूशन इन फ्रांस " के अन्तर्गत प्रकाशित किए। इस क्रांति ने बर्क को फ्रांसीसी क्रांति के आलोचक के रूप में स्थापित कर दिया।
बर्क के राजनीतिक दृष्टिकोण में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य की प्रधानता है। उनके विचार से राज्य ऐसे ऐतिहासिक विकास की प्रक्रिया का परिणाम है जैसा जीवित प्राणी के विकास में देखने को मिलता है।
बर्क के अनुसार समाज ऐसे सम्बन्धों का समुच्चय है जो अंततः अपने सदस्यों के क्रिया-कलाप पर आश्रित है।
ये सम्बन्ध ऐसे शिष्टाचार, रीति-रिवाज और व्यक्त या अव्यक्त नियमों का सृजन करते हैं जिनके अन्तर्गत हमारा समाजीकरण होता है। बर्क ने इन्हें पूर्वाग्रह की संज्ञा दी है।
बर्क कहते हैं कि - पूर्वाग्रह हमारे स्वभाव का अंग बन जाते हैं।
बर्क के अनुसार - पूर्वाग्रह मनुष्य के सद्गुण को उसका स्वभाव बना देता है। इन पूर्वाग्रहों को एक के बाद दूसरी पीढ़ी 'टुकड़े-टुकड़े' करके अपनाती चलती है।
एडमंड बर्क कहते हैं कि - रीति-रिवाज हमें प्रत्येक स्थिति के साथ समायोजन करना सीखाते हैं।
एक सक्रिय राजनीतिज्ञ के रूप में बर्क ने यह अनुभव किया कि सामाजिक संस्थाएँ निरन्तर ह्रास एवं पुनर्निर्माण की प्रक्रिया से गुजरती हैं और कभी-कभी उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए सुधारात्मक उपाय आवश्यक हो जाते हैं।
सामाजिक अनुबंध के सिद्धान्तकारों ने प्राकृतिक अधिकार या प्राकृतिक दशा जैसी संकल्पनाओं के आधार पर नागरिक समाज की जो समीक्षाएँ प्रस्तुत कीं, उन पर बर्क ने विशेष रूप से प्रहार किया।
बर्क का तर्क था कि सभ्य समाज के अस्तित्व से पहले जिन अधिकारों के अस्तित्व की कल्पना की जाती है, उन्हें सभ्य समाज पर लागू करना एक मूल है।
बर्क ने सामाजिक अनुबंध के आमूल परिवर्तनवादी चरित्र में संशोधन करके इसे रूढ़िवादी धारणा में बदल दिया।
बर्क का मानना है कि व्यक्ति नासमझ है, परन्तु जाति समझदार होती है। अतः जिस व्यवस्था के निर्माण में पूरी जाति की सूझ-बूझ लगी है, उसमें 'यथास्थिति' बनाए रखना ही उपयुक्त है।
बर्क ने 'यथास्थिति' का समर्थन करते हुए भी उसमें उपयुक्त 'सुधार' की गुंजाइश रखी है। मूलतः उसका रूढ़िवाद 'संशयवाद' के दर्शन पर आधारित है।
बर्क का कहना है कि जिस समाज में सुधार के साधन नहीं पाए जाते, उनमें स्थायित्व के साधन भी नहीं पाए जाते।
बर्क ने संरक्षण की प्रवृत्ति तथा सुधार की क्षमता को राजमर्मज्ञ (स्टेट्समैन) का आदर्श माना है।
बर्क सामाजिक परंपरा को सभ्यता के विकास की कुंजी मानते हैं। उनका मानना है कि मनुष्य सामाजिक अनुशासन से उत्तम मनुष्य बनते हैं, व्यक्तिगत विवेक से नहीं।
स्वतंत्रता के विषय में विचार व्यक्त करते हुए बर्क कहते हैं कि मनुष्य वहीं तक नागरिक स्वतंत्रता के पात्र हैं जहाँ तक वे आत्मसंयम, न्यायप्रियता, धैर्य और बुद्धिमत्ता से काम लेते हैं।
उनके अनुसार धैर्यहीन मनुष्य स्वतंत्र नहीं हो सकते।
बर्क के अनुसार राजनीति और नैतिकता किन्हीं काल्पनिक आदर्शों के अनुकरण की मांग नहीं करती, बल्कि ये दूरदर्शिता और व्यवहार कुशलता के विषय हैं।
बर्क का मानना है कि उत्तम व्यवस्था समस्त उत्तम गुणों की आधारशिला है। यदि व्यवस्था को कायम रखा जाए तो वह स्वतंत्रता को बढ़ावा देगी और इससे समाज में समृद्धि बढ़ेगी।
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