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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2746
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 14
एडमंड बर्क
(Edmund Burke)

एडमंड बर्क (1729-97) अठारहवीं शताब्दी के अंतिम दौर का प्रसिद्ध ब्रिटिश (आयरिश) राजमर्मज्ञ एवं लेखक था। उसने अपना लेखन एक साहित्यकार के रूप में आरम्भ किया, परन्तु आगे चल कर उसने राजनीति की समस्याओं पर विस्तृत विचार करके उनका विवेचन प्रस्तुत किया। बर्क को आधुनिक बौद्धिक रूढ़िवाद (Modern Intellectual Conservatism) का मूल प्रवर्तक माना जाता है। अपने राजनीतिक जीवन में बर्क शुरू-शुरू में ह्निग पार्टी के साथ रहा क्योंकि 1765 में उसे ह्निग दलीय प्रधानमंत्री लार्ड रॉकिंघम (1730-82) ने अपना निजी सचिव नियुक्त कर दिया था। परन्तु 1790 में जब उसने फ्रांसीसी क्रांति (1789) के बारे में अपने विचार 'रिफ्लैक्शन्स ऑन द रीसेंट रिवोल्यूशन इन फ्रांस' (फ्रांस की नवीन क्रांति की समीक्षा) के अंतर्गत प्रकाशित किए, तब ह्निग पार्टी के साथ उसका नाता टूट गया। इस कृति ने बर्क को फ्रांसीसी क्रांति के आलोचक के रूप में स्थापित कर दिया।

बर्क के रातजनीतिक दृष्टिकोण में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Historical Perspective) की प्रधानता है। उसके विचार से राज्य ऐसे ऐतिहासिक विकास की प्रक्रिया का परिणाम है. जैसा जीवित प्राणी (living Organism) के विकास में देखने को मिलता है। जैसे जीवित प्राणी अपने पृथक्-पृथक् अंगों की तुलना में बड़ा और जटिल होता है, और उसके अंगों की चीर-फाड़ करने पर वह जीवित नहीं रह पाता, वैसे ही राज्य अपने संघटक-तत्त्वों (Constituent Element) की तुलना में अधिक विशाल और जटिल होता है, और उन अंगों को काट देने पर उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं रह जाता।

बर्क के अनुसार - समाज ऐसे सम्बन्धों का समुच्चय है जो अंततः अपने सदस्यों के क्रिया-कलाप पर आश्रित हैं। ये सम्बन्ध ऐसे शिष्टाचार (Manners), रीति-रिवाज (Customs), और व्यक्त या अव्यक्त नियमों (Expressed or Unexpressed Rules) का सृजन करते हैं जिनके अंतर्गत हमारा समाजीकरण (Socialization) होता है। बर्क ने इन्हें 'पूर्वाग्रह' (Prejudices) की संज्ञा दी है। बर्क ने यह मान्यता रखी है कि जो पूर्वाग्रह हमारे स्वभाव का अंग बन जाते हैं, वे उन पूर्वाग्रहों की तुलना में अधिक विश्वस्त होते हैं जिन्हें हम नैतिक नियमों का सिद्धान्तों के रूप में जान-बूझ कर अपनाते हैं। बर्क के अनुसार, पूर्वाग्रह मनुष्य के सद्गुण (Virtue) को उसका स्वभाव बना देता है। इन पूर्वाग्रहों को एक-के-बाद दूसरी पीढ़ी 'टुकड़े-टुकड़े' करके अपनाती चलती है। वैसे यह नियम उन सभी समाजों पर लागू होता है जो चिर काल तक अपने अस्तित्व को कायम रखते हैं, परन्तु इंग्लैण्ड का संविधान इसका सटीक उदाहरण प्रस्तुत करता है क्योंकि उसमें लोक-विधि (Common Law) के अंतर्गत पूर्वदृष्टांत (Precedent) को प्रधानता दी जाती है। पुराने ह्निग विचारक इंग्लैण्ड के संविधान को प्राचीन संविधान (Ancient Constitution) के रूप में देखते थे जो कभी बदलता नहीं था, परन्तु कभी-कभी उसमें 1688 की गौरवमय क्रांति (Glorious Revolution) जैसे परिवर्तन लाए जा सकते थे। इसके विपरीत बर्क ने यह विचार रखा कि इस संविधान में समय के साथ क्रमिक विकास होता रहा है।

एक सक्रिय राजनीतिज्ञ के रूप में बर्क ने यह अनुभव किया कि सामाजिक संस्थाएँ निरंतर ह्रास और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया से गुजरती हैं, और कभी-कभी उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए सुधारात्मक उपाय जरूरी हो जाते हैं। समाज की कौन-कौन-सी संस्थाएँ, रीति-रिवाज और प्रथाएँ कायम रखने के लिए उपयुक्त हैं- इस बारे में किन्हीं सामान्य नियमों का पता नहीं लगाया जा सकता। दूसरे शब्दों में, समाज का विकास अपने आंतरिक नियमों से होता है- इस प्रक्रिया को तार्किक परीक्षण (Logical Test) का विषय नहीं बनाया जा सकता। सामाजिक अनुबंध (Social Contract) के सिद्धान्तकारों ने प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights) या प्राकृतिक दशा (State of Nature) जैसी संकल्पनाओं के आधार पर नागरिक समाज (Civil Society) की जो समीक्षाएँ प्रस्तुत कीं, उन पर बर्क ने विशेष रूप से प्रहार किया। उसने तर्क दिया कि सभ्य समाज के अस्तित्व से पहले जिन अधिकारों के अस्तित्व की कल्पना की जाती है, उन्हें सभ्य समाज पर लागू करना एक भूल है।

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