बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
जीन जेक्स रूसो आधुनिक युग का एक अत्यन्त प्रतिभाशाली फ्रांसीसी दार्शनिक था। वह जेनेवा में पैदा हुआ जहाँ उसके पूर्वज सोलहवीं शताब्दी से बसे हुये थे। बचपन में उसे बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
रूसो ने यह मान्यता रखी है कि वैज्ञानिक और साहित्यिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप साधारणतः सारा समाज नैतिक दृष्टि से भ्रष्ट हो गया है।
रूसो ने सामान्य इच्छा की संकल्पना प्रस्तुत करके लॉक की लोकप्रिय प्रभुसत्ता के विचार को हॉब्स के पूर्णसत्तावाद के साथ मिला दिया।
टी. एच. ग्रीन ने रूसो के सामान्य इच्छा के सिद्धान्त को आदर्शवादी दर्शन का रंग देकर नई दिशा में विकसित किया।
रूसो ने ज्ञानोदय की इस मान्यता को चुनौती दी कि ऐतिहासिक परिवर्तन मानव की प्रगति का संकेत देता है।
रूसो पहला ऐसा विचारक था जिसने समाज में प्रचलित विषमता का विश्लेषण करके उन विषमाताओं को दूर करने की माँग की जो सामाजिक अन्याय का उदाहरण प्रस्तुत करती थीं।
प्रकृति ने कुछ मनुष्य गोरे और कुछ काले बनाए हैं, यह प्राकृतिक विषमता का उदाहरण है। परन्तु यदि गोरे लोग शानदार मकानों में रहते हैं और काले लोग झोपड़ियों में रहते हैं, तो यह व्यवस्था प्रकृति ने नहीं बनाई, मनुष्यों ने बनाई है। यह परम्परागत विषमता है।
मनुष्य साधारणतः जिन विषमताओं की शिकायत करते हैं वे प्राकृतिक विषमाएँ नहीं होगी बल्कि ऐसी विषमताएँ होती हैं जो सामाजिक व्यवस्था में घर चुकी हों।
रूसो ने जिस प्राकृतिक मनुष्य की कल्पना की वह पूर्ण आनन्दमय जीवन जीता है। वह स्वाधीन, सन्तुष्ट और आत्मनिर्भर होता है। अत: प्राकृतिक दशा में मनुष्य उदात्त वन्य प्राणी होता है वह न किसी से डरता है न किसी को डराता है।
सभी एक-दूसरे से तटस्थ रहते हैं क्योंकि प्रत्येक मनुष्य प्रकृति के भण्डार से ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेता है। ऐसी हालत में किसी तरह से स्थायी सामाजिक बन्धनों या जंजीरों का उदय नहीं होता।
सभ्यता का विकास मानव जीवन के लिए एक अभिशाप है जिसने उसके नैसर्गिक जीवन के मधुर आनन्द को छीन लिया है।
इस अनुबन्ध के माध्यम से हम अपनी प्राकृतिक स्वतन्त्रता के बदले में नागरिक स्वतन्त्रता प्राप्त करते हैं।
रूसो ने यह मान्यता रखी कि जन-समुदाय ही यथार्थ प्रभुसत्ता का पात्र है सरकार केवल जन- इच्छा की अभिव्यक्ति और पूर्ति का साधन है।
सामाजिक अनुबन्ध के अन्तर्गत राज्य का औचित्य स्थापित करते समय वह प्राकृतिक दशा का खण्डन नहीं करता बल्कि प्राकृतिक अधिकारों को सभ्यता का कवच पहनाकर नया जीवन देने का प्रयत्न करता है।
सामान्य इच्छा ऐसा तत्त्व नहीं जो अस्तित्व में आ चुकी बल्कि वह ऐसा आदर्श प्रस्तुत करती है, जिसके अनुरूप वैयक्तिक इच्छाओं का संश्लेषण होना चाहिए।
सामान्य इच्छा का उदय कोई यान्त्रिक परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह विकासात्मक परिवर्तन है।
सामान्य इच्छा की संकल्पना के अन्तर्गत रूसो ने स्वशासन और उत्तम शासन के आदर्शों को एक साथ मिलाने का प्रयत्न किया है।
सामान्य इच्छा की संकल्पना का सर्वोत्तम गुण यह है कि यह राजनीतिक प्रयास को निश्चित दिशा प्रदान करती है और ऐसा आदर्श प्रस्तुत करती है जिसकी ओर प्रत्येक लोकतन्त्रीय समाज को अग्रसर होना चाहिए।
रूसो ने सहृदयता, क्षमा भावना और मानवीयता की पैरवी की। उसका नाम सर्वाधिकारवाद के साथ जोड़ना सरासर अन्याय है।
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