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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2746
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

अरस्तू प्राचीन यूनानी दार्शनिक था, जिसे राजनीतिशास्त्र का जनक माना जाता है। वह महान् यूनानी दार्शनिक प्लेटो का शिष्य था और विश्व प्रसिद्ध योद्धा एवं सम्राट सिकन्दर महान् का शिक्षक था।

प्रायः प्लेटो और अरस्तू के मतभेदों पर विशेष बल दिया जाता है परन्तु यह नहीं भूलना चाहिए कि अपने शिक्षक का तीव्र आलोचक होते हुए भी अरस्तू कई बातों में प्लेटो का ऋणी था और दोनों में समानताएँ भी थीं।

अरस्तू ने राजनीतिशास्त्र को सर्वोच्च विज्ञान माना है, जिसने उसे परम विद्या की भी संज्ञा दी है क्योंकि इसका सरोकार मानव जीवन के साध्य से है जबकि अन्य सब विज्ञान इसके लिए केवल उपयुक्त साधन प्रदान करते हैं।

अरस्तू ने राजनीतिक सत्ता का जो विश्लेषण प्रस्तुत किया है वह आधुनिक युग में प्रचलित अवधारणा की व्याख्या के लिए उपयुक्त नहीं है।

अरस्तू ने राजनीतिशास्त्र के अध्ययन के लिए अनुभव मूलक पद्धति को बढ़ावा दिया और इसके साथ तुलनात्मक पद्धति को भी मिला दिया।

अरस्तू के अनुसार - मनुष्य एक नैतिक प्राणी के नाते राज्य के अन्तर्गत सदजीवन की प्राप्ति के लिए जो कुछ करता है जिन-जिन गतिविधियों में भाग लेता है या फिर जो नियम संस्थाएँ और संगठन स्थापित करता है। वे सब राजनीति के विचारक्षेत्र में आते हैं। राजनीति के माध्यम से मनुष्य इस धरती पर अपनी नियति को वश में करने के उपाय करता है।

अरस्तू इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि मनुष्यों के शासन की तुलना में विधि का शासन सर्वथा उत्तम है।

अरस्तू का कहना था कि - हम राजनीति के बारे में तब तक कोई युक्तियुक्त निष्कर्ष नहीं निकाल सकते, जब तक हम आवश्यक आधार-सामग्री एकत्र न कर लें और जब तक तुलनात्मक विधि से उसका विश्लेषण न कर लें।

अरस्तू के अनुसार - परिवार वह प्रारम्भिक संगठन है जिससे आगे चलकर राज्य की उत्पत्ति होती है। परिवार के अस्तित्व की रक्षा के लिए सम्पत्ति आवश्यक है, क्योंकि यदि परिवार के पास निजी सम्पत्ति नहीं होगी तो वह शीघ्र ही छिन्न-भिन्न हो जायेगा। सम्पत्ति का निजी स्वामित्व मनुष्य को उसकी सुरक्षा और अभिवृद्धि की प्रेरणा देता है।

एक बनी-बनाई व्यवस्था के पोषक के नाते अरस्तू को रूढ़िवाद का मूल प्रवर्तक माना जाता है।

अरस्तू का विचार है कि - क्रान्ति का बीज मनुष्यों के मन में उगता है विषमता तथा अन्याय की अनुभूति असन्तोष की जननी है।

अरस्तू के अनुसार - सर्वोत्तम शासन प्रणाली वह है जिसमें अभिजाततन्त्र और लोकतन्त्र का मिश्रण है।

अरस्तू का विचार था कि - सब मार्गों से उत्तम मार्ग मध्यम मार्ग है, जिस पर चलकर खतरों से बच सकते हैं और पतन को रोक सकते हैं।

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