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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2746
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 राजनीति विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 3
अरस्तू
(Aristotle)

अरस्तू प्राचीन यूनानी दार्शनिक था जिसे राजनीतिशास्त्र का जनक माना जाता है। वह महान् यूनानी दार्शनिक प्लेटो का शिष्य था और विश्व प्रसिद्ध योद्धा एवं सम्राट सिकन्दर महान् का शिक्षक था। अरस्तू का जन्म 384 ई. पूर्व में मैसोडोनियन नगर स्टेगिरा में हुआ था, जहाँ उनके पिता शाही चिकित्सक थे। अरस्तू का पालन-पोषण औषधियों की गन्ध से महकते वातावरण में हुआ, जहाँ उसके मन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए उचित अवसर और प्रोत्साहन मिला। यही कारण है कि उसने नातिशास्त्र और राजनीतिशास्त्र से सम्बन्धित व्याख्यानों में जीववैज्ञानिक और आयुवैज्ञानिक दृष्टांतों का विस्तृत प्रयोग किया है। 30 वर्ष की आयु में उसने एथेन्स जाकर प्लेटो की छत्रछाया में दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया। प्लेटो उसकी कुशाग्र बुद्धि से इतना अधिक प्रभावित था कि वह अरस्तू को अपनी अकादमी का मस्तिष्क कहा करता था। प्लेटो की मृत्यु के बाद अरस्तू अकादमी का प्रधान बनने की आशा करता था किन्तु विदेशी होने के कारण उसे यह पद नहीं मिल सका। यह पद प्लेटो के भतीजे को प्राप्त हुआ, जिससे अरस्तू को कुछ निराशा भी हुई।

344 ई. पूर्व में हर्मियास ने अरस्तू को अपने राजदरबार में आमन्त्रित किया और अपनी बहन से उसका विवाह कराया। उसके साथ अरस्तू ने पारिवारिक जीवन सुख से बिताया। कुछ वर्ष बाद मैसीडोन के राजा फिलिप ने अरस्तू को आमन्त्रित करके सिकन्दर की शिक्षा का कार्य सौंपा। सिकन्दर उस समय तेरह वर्ष का उत्साही और उद्धत युवक था। उसे संयत करने में अरस्तू को विशेष सफलता नहीं मिली। विश्व विजय की महत्त्वाकांक्षा दर्शनशास्त्र की औषधि से ठण्डी नहीं हो पायी। देखा जाये तो अरस्तू ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में सम्पूर्ण विश्व को एक ही प्रणाली में बाँधना चाहता था, परन्तु सिकन्दर सम्पूर्ण विश्व पर अपना एकछत्र साम्राज्य स्थापित करके उसे एक-जैसे नियमों के अधीन लाना चाहता था।

सिकन्दर अपने गुरु अरस्तू का बहुत अधिक सम्मान करता था। जब वह 335 ई. पूर्व में राजगद्दी पर बैठा तो उसने अपने गुरु के विध्वस्त नगर को पुनः बनवा दिया। जब सिकन्दर विश्व विजय के लिये निकला तो अरस्तू एथेन्स लौट आया और वहाँ एक स्वतन्त्र विचारक के रूप में जम गया। एथेन्स में उसने निजी शिक्षालय स्थापित किया जो लीसयिम के नाम से विख्यात हुआ। वह 12 वर्ष तक इसका प्रधान रहा और इस काल में उसे सिकन्दर से बराबर सहायता मिलती रही। 323 ई.पूर्व में सिकन्दर की मृत्यु के बाद एथेन्स के देशभक्तों मैं आनन्द की लहर दौड़ गई और वहाँ मैसीडोनिया दल का पतन हुआ। अरस्तू पर धार्मिक प्रार्थनाओं और बलिदानों के तिरस्कार का आरोप लगाया गया और उसके साथ सुकरात की कहानी दोहरायी जाने का समय निकट था। अरस्तू ने सोच-समझकर नगर छोड़ दिया और 322 ई.पूर्व में 62 वर्ष की अवस्था में उसकी मृत्यु हो गई।

अरस्तू के महत्वपूर्ण कथन

राजनीति शास्त्र सर्वोत्तम विज्ञान है।
राज्य व्यक्ति का पूर्वगामी है।
परिवार नागरिक गुणों की प्रथम पाठशाला है।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।
राज्य परिवारों तथा ग्रामों का संगठन है।
विधि सब प्रकार के दोषों से मुक्त विवेक है।
समाज की बाहर रहने वाला व्यक्ति या तो देवता है या पशु।

समय के दृष्टि से परिवार पहले है, परन्तु प्रकृति की दृष्टि से राज्य पहले है।

राज्य शासन सत्ता में होने वाला प्रत्येक परिवर्तन क्रान्ति है।

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