प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- पाण्ड्य तथा चोलों के संघर्ष पर प्रकाश डालिए।
अथवा
चोलों और पाण्ड्यों के संघर्ष पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
पाण्ड्य - चोल संघर्ष
9वीं शताब्दी में चोलों और पाण्ड्यों के मध्य संघर्ष हुआ। सन् 807 ई. के लगभग चोल राजा विजयालय ने पाण्ड्यों से तंजौर छीन लिया था। विजयालय का पुत्र आदित्य प्रथम 871 ई. में सिहासनारूढ़ हुआ। सन् 910 ई. में उसने पाण्ड्य राज्य पर आक्रमण कर दिया था।
पाण्ड्य तथा चोलों का पूर्ण प्रभाव - सन् 1014 ई. में राजेन्द्र प्रथम नाम का प्रतिभाशाली सम्राट चोल सिंहासन पर बैठा। उसने पाण्ड्यों का बुरी तरह दमन किया और उसके राज्य में अपने पुत्र को गवर्नर नियुक्त कर दिया। 1044 ई. से 1052 ई. तक राजाधिराज प्रथम ने चोल राज्य पर शासन किया। चोल शासक राजेन्द्र II जिसका शासनकाल 1070 ई. से 1120 ई. तक माना जाता है, इसने भी पाण्डयों को उभरने नहीं दिया। इस प्रकार सन 1150 ई. तक पाण्ड्य दबे रहे। सन् 1150 ई. में पाण्ड्य राज्यकाल में सिंहासन प्राप्त करने के लिए पराक्रम पाण्ड्य और कुलशेखर पाण्ड्य में युद्ध हुआ जिसमें पराक्रम पाण्ड्य मारा गया। इसी बीच लंका नरेश पराक्रमबाहु ने पराक्रम पाण्ड्य के पुत्र को सिंहसनारूढ़ करने के लिए एक सेना भेजी। कुलशेखर पाण्ड्य के पुत्र वीरपाण्ड्य की सम्मिलित सेना पराजित हुई और कुलशेखर पाण्ड्य शासक बना। सन 1173 ई. में जब राजाधिराज द्वितीय चोल सिंहासन पर आरूढ़ हुआ तब भी पाण्ड्यों में गृहयुद्ध चलता रहा।
चोलों के विरुद्ध पाण्ड्यों का उत्थान - सन् 1178 में चोल राजाधिराज की मृत्यु हो गयी और उसके स्थान पर कुलोतुंग तृतीय सिंहासनारूढ़ हुआ। लंका के राजा पराक्रमबाहु ने वीरपाण्ड्य को अपनी ओर मिला लिया। कुलोतुंग तृतीय ने वीरपाण्ड्य के सम्बन्धी विक्रमबाहु की सम्मिलित सेनाओं को पराजित करके विक्रम पाण्ड्य को मदुरा का राजा बनाया। विक्रम पाण्ड्य ने कुलोतुंग के सम्मुख आत्म-समर्पण कर दिया। 1190 ई. में विक्रम पाण्ड्य की मृत्यु के बाद जटावर्मन कुलशेखर पाण्ड्य राजा बना। उसने चोलों के विरुद्ध विद्रोह किया। 1206 ई. में कुलोतुंग तृतीय की मृत्यु हो गयी और राजाराज तृतीय राजा बना। इसे अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सन् 1254 ई. में राजेन्द्र तृतीय चोलों का राजा बना। जटावर्मन सुन्दरपाण्ड्य ने दिग्विजय करते हुए चोलों पर आक्रमण किया और कांची पर अधिकार कर लिया। चोल नरेश आधीनता स्वीकार करने में बाध्य हुआ और उसने उसके सामन्त शासक के रूप में 1258 ई. से लेकर 1229 ई. तक राज्य किया।
सन् 1158 ई. के बाद चोल पाण्ड्यों के प्रभाव में ही रहे और अन्त में पाण्ड्यों के राज्य पर भी मुसलमानों का अधिकार हो गया।
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