प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- जटावर्मन सुन्दरपाण्ड्य प्रथम की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
तेरहवीं शती से पाण्ड्यों की स्थिति में कुछ सुधार आया। इस समय इस वंश के शासक सुन्दरपाण्ड्य (1216-1238 ई.) ने अपने वंश की शक्ति का पुनरुद्धार किया। उसने चोल शासकों- कुलोतुंग तृतीय तथा राजराज तृतीय को पराजित किया तथा विस्तृत भू-भाग पर शासन किया। किन्तु उसके उत्तराधिकारी मारवर्मन सुन्दरपाण्ड्य तृतीय (1238 - 1251 ई.) को राजेन्द्र चोल तृतीय ने पुनः जीत कर अपनी अधीनता में रहने के लिए बाध्य किया। परन्तु जटावर्मन सुन्दरपाण्ड्य प्रथम (1251- 1260 ई.) ने पुनः अपने वंश की स्वाधीनता प्राप्त कर ली। जटावर्मन सुन्दरपाण्ड्य प्रथम द्वितीय पाण्ड्य साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली राजा था। उसने चेर राजा को हराया, दक्षिण से होयसल शक्ति को नष्ट कर दिया तथा चोल शक्ति का पूर्ण विनाश कर दिया। उसने उत्तरी सिंहल की भी विजय की और चोलों के पतन के पश्चात् उभरने वाले विद्रोही सामन्तों का दमन किया। काञ्ची पर उसने अधिकार किया तथा काकतीय नरेश गणपति को भी हराया और नेल्लोर तक सफलतापूर्वक अपने विजय अभियान को बढ़ाया। उसने चोल तथा कोंगू दोनों राज्यों को अपने राज्य में मिला लिया। मैसूर के अतिरिक्त उसने सम्पूर्ण दक्षिणी भारत पर शासन किया। विजित प्रदेशों से प्राप्त हुई अपार धनराशि का प्रयोग उसने मन्दिरों, विशेषतः श्रीरंगम् और चिदम्बरम् के मन्दिरों को भव्य एवं सुन्दर बनाने में किया। उनकी छतें उसने सोने से मढवाई|
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