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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2745
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न - चोलकालीन सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व साहित्य व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. चोल कालीन सामाजिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
अथवा
चोल वंश के समय की सामाजिक दशा का उल्लेख कीजिए।
2. चोल कालीन आर्थिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
3. चोल कालीन धार्मिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
4. चोल कालीन साहित्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-

चोलकालीन सामाजिक व्यवस्था - सम्पूर्ण चोलकालीन समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों में विभाजित था। मिश्रित जातियों का भी प्रारम्भ हो गया था। व्यवसाय के आधार पर बंगलाई और इदगाई नाम के दो वर्ग बनाये गये थे जिनकी उपशाखायें भी थीं। अधिकांश विवाह सजातीय होते थे। परन्तु अन्तर्जातीय विवाहों के उदाहरण भी प्राप्त होते हैं। एक मोहल्ले में अधिकतर एक ही जाति के लोग रहते थे। ब्राह्मण वर्ग का अधिक सम्मान था। दास प्रथा भी प्रचलित थी। दासों पर अधिक अत्याचार नहीं किया जाता था।

साधारणजन एक ही विवाह करते थे। परन्तु सामंत, राजवंश और धनीवर्ग के लोग बहु-विवाह भी करते थे। सती-प्रथा अधिक प्रचलित नहीं थी, परन्तु इसके उदाहरण अवश्य प्राप्त होते हैं। परान्तक द्वितीय की पत्नी अपने पति के साथ ही सती हो गयी थीं।

आर्थिक व्यवस्था - चोल युग में दक्षिणी भारत आर्थिक दृष्टि से अधिक समृद्ध था। यद्यपि धन अधिक था परन्तु उसका उचित वितरण नहीं था। समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग निर्धन था और वह मजदूरी करके जीविका चलाता था। श्रमजीवियों की दशा अच्छी न थी। दूसरी ओर सामन्त लोग बड़े ठाट- बाट से रहते थे।"

कृषि अत्यन्त उन्नत दशा में थी और व्यापार भी अच्छी दशा में था। जल और थल दोनों ही मार्गों से व्यापार होता था। चोल युग के बन्दरगाह व्यापार के प्रमुख केन्द्र थे।

एक तमिल विद्वान ने कावेरी नदी के मुहाने पर स्थित बंदरगाह का वर्णन निम्न प्रकार से किया है-

"गुरुवुरपक्कम में बालू तट के निकट ऊँचे स्थान, गोदाम और भण्डारागार थे जिसमें हिरन की आँखों की आकृति वाली खिड़कियाँ थीं, वहाँ पर जहाजों से उतारा गया माल रखा जाता था। यहाँ पर चीते का चित्र (चोल राजाओं का चित्र) आयात कर लेने के बाद अंकित किया जाता था। समीप ही यवन " (यूनानी) व्यापारियों की बस्तियाँ थीं। वहाँ पर कई आकर्षक वस्तुएँ बिक्री के लिए रखी जाती थीं। यहाँ पर ही विदेशी व्यापारियों के निवास स्थान भी थे जो समुद्र पार से आते थे और कई भाषायें बोलते थे। सुगन्धित लेपों और धूलों तथा फूलों और गन्धों के व्यापारी, रेशम, ऊन और सूत की सिलाई करने वाले दर्जी, सन्दर, अगिल, प्रवाल, मोती, सोने और कीमती पत्थरों के व्यापारी, धोबी, मछलियों और नमक के व्यापारी, कसाई, ठठेरे, बढ़ई, ताँबे के कारीगर, चित्रकार, मूर्तिकार सुनार, मोची और खिलौने बनाने वाले सब गुरुवुरपक्कम में रहते थे।

इस बात के भी उदाहरण मिलते हैं कि भारत से माल सुदूर देशों में जाता था। बंगाल की खाड़ी 'चोलों की झील' बन गयी थी। व्यवसायियों का श्रेणी विभाजन था और चोल राजा भी आर्थिक उन्नति में अभिरुचि रखते थे।

धार्मिक व्यवस्था - चोल काल वैदिक धर्म की उन्नति का काल था। पौराणिक धर्म प्रचलित थे। शैव और वैष्णव दोनों ही सम्प्रदाय के लोग विद्यमान थे। इन दोनों के अपने अलग अलग मन्दिर थे और मन्दिर, पाठशालाओं, औषधालयों, बैंकों, नाट्यशालाओं आदि संस्थायें भी कार्य करती थीं।

मन्दिरों में अत्यंत योग्य ब्राह्मण निवास करते थे। वे प्रवचन भी देते थे। वहाँ देवदासियाँ भी निवास करती थीं, जो नृत्य और संगीत के द्वारा मन्दिर के वातावरण को आनन्दमय बनाये रखती थीं। उनका नैतिक स्तर अत्यन्त ऊँचा था। मन्दिर अनेक विद्वानों, कलाकारों और व्यवसायियों की जीविका के साधन थे।

यद्यपि चोल काल में वैदिक धर्म की पर्याय उन्नति हुई परन्तु चोल राजाओं ने अन्य धर्मों को मानने वाले लोगों पर अत्याचार नहीं किया। उन्होंने अन्य धर्मों के विद्वानों का भी आदर किया। बौद्ध धर्म की कुछ पुस्तकें इस युग में लिखी गयीं।

साहित्य - चोल सम्राटों ने तमिल साहित्य का पर्याप्त विकास किया। इस काल के अधिकांश ग्रन्थ तथा अभिलेख तमिल भाषा में हैं। संस्कृत भाषा के ग्रन्थों का अभाव दिखायी देता है। वेंकट माधवकृत ऋग्वेद का भावार्थ संस्कृत भाषा में प्राप्त होता है।

चोल काल तमिल साहित्य का स्वर्ण काल है। इस काल के साहित्य में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों के अनुयायियों ने समान योग दिया। कुलोतुंग द्वितीय के समय के कावि कंम्बन ने 'रामावतारम्' काव्य लिखा। पुगलेन्दि नामक कवि ने नल की कथा के आधार पर 'नवलेम्ब' काव्य लिखा। जयन्गोन्दार कवि ने 'कलिंगत्तुपर्णि' काव्य लिखा। सेक्किलर ने 'परियापुराणम्' की रचना की। इसी समय का एक ग्रन्थ शैव सिद्धान्तों का प्रतिपादन करता है। किसी विद्वान ने 'दण्डियलगारम' नामक ग्रन्थ लिखा।

चोल काल के जैन विद्वानों ने तिकत्तकदेवकर का नाम प्रसिद्ध है। इन्होंने अपने महाकाव्य 'जीवक - चिन्तामणि' की रचना की। एक अन्य जैन विद्वान टोलामुक्ति हुआ। इसका 'शूलमणि' नामक ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध है। पवनान्दि नामक जैन विद्वान ने 'नन्नूल' नामक व्याकरण ग्रन्थ लिखा। इसी प्रकार अमृतसागर ने 'काव्यादर्श' के आधार पर एक तमिल ग्रन्थ लिखा।

बौद्ध विद्वानों की कृतियों में प्रसिद्ध काव्य 'कुँडकेशि है। इसी समय के बौद्ध विद्वान बुद्धमिल ने 'वीर - सोलियम' नामक व्याकरण ग्रन्थ लिखा।

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