प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न - चोल कला का वर्णन कीजिए।
अथवा
चोल कला पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
चोल कला
चोल वंशी राजा कलाप्रेमी थे। वे महानं निर्माता भी थे। राजेन्द्र चोल ने अपनी राजधानी गंगर्डकोण्ड चोलपुरम् के निकट एक मील लम्बा बाँध बनवाया था। कृत्रिम झीलों और पत्थरों के जलद्वारों और नहरों सहित यह राजधानी अत्यंत सुन्दर थी। कटे हुए बड़े-बड़े पत्थरों के बाँध कावेरी तथा अन्य नदियों पर बनाये गये थे।
चोल मन्दिर निर्माण कला की कलात्मक परम्परा की शुद्धता के लिए प्रशंसनीय हैं। द्रविड़ शिल्पकला को प्रभावित करने वाली एक नयी चीज चोल कला में विकसित हुई और यह थी मन्दिर के समापरण में ‘गोपुरम' नामक विशाल प्रवेश द्वार बनाना। पाण्ड्यों के शासनकाल में यह कला विशेषतः अधिक विकसित हुई।
चोल कला का सबसे अधिक प्रदर्शन मन्दिरों के रूप में हुआ है। मन्दिरों में कुछ प्रमुख मन्दिरों की चर्चा यहाँ की जा रही है-
तन्जौर का वृहदेश्वर मन्दिर - राजराज महान और राजेन्द्र चोल ने दो मन्दिर बनवाये, जिसमें द्रविड़ शैली प्राप्त होती है। राजराज महान ने तन्जौर में वृहदेश्वर मन्दिर बनवाया। इसको उसकी राजसी निर्माता के नाम पर 'राजराजेश्वर मन्दिर' भी कहा जाता है। इसकी रचना लगभग 1000 ई. में आरम्भ हुई और 1011 ई. में मन्दिर बनकर पूर्ण हुआ। वृहदेश्वर मन्दिर 1803 फुट लम्बा और 190 फुट ऊँचा है। इस मन्दिर में चार भाग हैं- 1. गर्भग्रह 2. मंडप 3. अर्द्धमंडप 4. बर्हिभाग जिसमें नंदी स्थापित है।
मन्दिर के चारों ओर एक चहारदीवार है। इस मन्दिर का सबसे महत्वपूर्ण अंग शिखर है, इसके तीन भाग हैं-
1. आधार - इसकी ऊँचाई 50 फुट है, आधार 82' x 82' है। यह आधार में बनी भारी कार्निस से दो भागों में बांटा गया है।
2. मध्य भाग - यह हाथी की सूँड़ की भाँति ऊपर जाते हुए पटला है। यह 13 मंजिलों में बँटा है। ऊपरी मंजिलें क्रमशः छोटी होती गयी हैं।
3. शीर्ष भाग - मन्दिर का ऊपरी भाग एक गोले के समान है। इसके चारों ओर पंखवार ताक बनाये गये हैं। कला की दृष्टि से यह मंदिर द्रविड़ कला के मंदिरों में सर्वश्रेष्ठ है। इसके विषय में पस ब्राउन ने लिखा है, "प्रत्यक्ष में सबसे बड़ा, ऊँचा और भारतीय निर्माताओं द्वारा बनाया गया अपने ढंग का सबसे अधिक महत्वपूर्ण निर्माण, यह दक्षिण भारत की भवन निर्माण कला के विकास का सीमा चिन्ह है।'
उसकी श्रेष्ठता का वर्णन करते हुए वह पुनः लिखता है, "निस्संदेह यह द्रविड़ शिल्पकारिता का सर्वोत्कृष्ट नमूना है। तंजौर का विमान सम्पूर्ण भारतीय शिल्पकला की कसौटी है ।"
कोरंगनाथ का मन्दिर - कोरंगनाथ का मन्दिर त्रिचनापल्ली जिले में स्थित है। इसे चोल नरेश परान्तक प्रथम ने निर्मित करवाया था। कोरंगनाथ का मंदिर चोल काल की संक्रान्ति अवस्था की कृति है।
इस मन्दिर की लम्बाई 50 फुट है। इसमें गर्भगृह, अन्तराल और मंडप तीन भाग हैं। गर्भगृह 24’ × 23' है और मंडप 25' x 20' है। गर्भगृह के ऊपर मूर्तियों के द्वारा शृंगार किया गया है। इन मूर्तियों में सबसे अधिक प्रसिद्ध मूर्ति काली की है। एक ओर सरस्वती तथा दूसरी ओर लक्ष्मी की मूर्तियाँ हैं। काली के नीचे एक असुर की मूर्ति है। पल्लव कला का चिह्न सिंह चोल कला में नहीं परिलक्षित होता है। सिंह के स्थान पर कुछ विचित्र जीवों के शीश खुदे हुए हैं।
गंगैकोऽचोलपुरम् का मन्दिर - यह मन्दिर चोल नरेश राजेन्द्र प्रथम के शासनकाल में निर्मित हुआ था। इसकी शैली तंजौर के मन्दिर की शैली से मिलती है। परन्तु दोनों के विस्तार अलंकरण आदि में अंतर है। यह मन्दिर 340 x 110' के आयत में बनाया गया है। इसका शिखर केवल 150 फुट ऊँचा है।
यह मंदिर उजड़े हुए रूप में विद्यमान है। मन्दिर एक विशाल चहारदीवारी के ऊपर बना हुआ है। इस मन्दिर में निम्नलिखित भाग हैं-
1. गर्भगृह,
2 अन्तराल
3 मण्डप,
4. अर्धमण्डप
5. बर्हिभाग |
मंदिर के मंडप में 150 स्तम्भ हैं। इसके शिखर को तीन भागों में बाँटा गया है-
1. आधार - यह 100 x 100' का है। यह भी बीच में बनी कार्निस द्वारा बँटा है।
2. मध्य भाग - इसमें 8 मंजिल हैं और गंगैकोऽचोलपुरम के मंदिरों के मध्य भागों के निर्माण में महान अंतर परिलक्षित होता है। तंजौर के बीच भाग में एक रेखा सीधी है किन्तु गंगैकोऽचोलपुरम् के मध्य भाग की रेखा वक्र है। परिणामतः गंगैकोऽचोलपुरम् के मंदिर की सुन्दरता बढ़ गयी है किन्तु यह मजबूत कम है।
3. शीर्ष भाग - तंजौर के मन्दिर की तरह शीर्ष भाग एक ग्लोब के समान है। गंगैकोऽचोलपुरम के मन्दिर के चारों ओर मजबूत चहारदीवारी है। पर्सी ब्राउन ने तंजौर के मंदिर से गंगैकोऽचोलपुरम् के मन्दिर में अधिक सौन्दर्य के दर्शन करते हुए लिखा है, "बाद के निर्माण में विलासिता के दर्शन होते हैं, प्रारम्भ के निर्माण की पौरुषिक शक्ति के विरोध में पूर्ण नारीत्व का सौंन्दर्य दिखलायी पड़ता है।'
इन मंदिरों के अतिरिक्त चोल काल में अन्य मन्दिरों का भी निर्माण हुआ, जिसमें अधिकांश तंजौर जिले में ही प्राप्त होते हैं। इनमें निम्नलिखित मुख्य हैं-
1. एरावतेश्वर मन्दिर - यह तंजौर जिले में दरसुरम् नामक स्थान पर स्थित है। इसमें एक मण्डप एक रथ की तरह निर्मित किया गया है जिसमें हाथी बने हुए हैं।
2. सुबहण्य मंदिर - यह भी तंजौर में स्थित है। यह अपने अलंकृत शिखर के लिए प्रसिद्ध है।
3. त्रिभुवनेश्वर मंदिर - स्थापत्य की दृष्टि से यह मन्दिर बहुत सुंदर है। यह मंदिर भी तंजौर जिले में स्थित है।
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