प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- चालुक्य राज्य के अंधकार काल पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
चालुक्य राज्य का अंधकार काल
महान चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु 642-43 ई. में हुई। लगभग तेरह वर्षों तक विक्रमादित्य के राज्यग्रहण के समय में चालुक्यों का इतिहास अस्पष्ट है। इसे चालुक्य इतिहास में अन्धकार काल की संज्ञा दी गई है। बादामी में इस काल के बीच का एक पल्लव अभिलेख मिला है जो पुलकेशिन द्वितीय के शासनकाल और नरसिंहवर्मा प्रथम के तेरहवें शासन वर्ष ( 624 ई.) के काफी आस-पास का है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अधिक दिनों तक पल्लव चालुक्य प्रदेशों पर अधिकार न रख सके।
ऐसा प्रतीत होता है कि पुलकेशिन द्वितीय के अन्त के बाद चालुक्य राज्य में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हुई। उसके अनेक सामन्तों ने अपनी-अपनी स्वतंत्रता का दावा शुरू कर दिया। पुलकेशिन द्वितीय के समय में चालुक्यवंशी विजयराज को लाट का शासक नियुक्त किया गया था। 643 ई. में चालुक्यों की निर्गत कैरा वाले दानाभिलेख की कोई चर्चा नहीं मिलती है। इतना ही नहीं इस लेख को स्थानीय कुलचुरि सम्भव में जारी किया गया है। अन्धकार काल के समाप्त होने के आस-पास निर्गत सेन्द्रक राजकुमार श्रीपृथ्वीवल्लभ- निकुममल्लर शक्ति के कैरा लेख से भी प्रस्तुत होता है कि वह एक स्वतंत्र शासक था। सेन्द्रक कीर्तिवर्मा प्रथम के समय से ही चालुक्यों के स्वामिभक्त सामन्त थे। पुलकेशी द्वितीय के बेटे और सामन्त भी उत्तराधिकार के लिए एक-दूसरे से लड़ रहे थे। प्रमाणों के द्वारा पुलकेशिन द्वितीय के पुत्रों में विक्रमादित्य प्रथम, जयसिंवर्मा, आदित्यवर्मा, चन्द्रादित्य, नेडमरि तथा रणरागवर्मा का नाम मिलता है। इसमें विक्रमादित्य प्रथम, आदित्यवर्मा, चन्द्रदित्य के विषय में स्वतंत्र रूप से शासन करने के प्रमाण मिलते हैं।
विक्रमांकाभ्युदय नामक ग्रन्थ से आदित्यवर्मा के प्रथम शासन वर्ष में निर्गत लेख, इनके पुत्र अभिनवादित्य ने नेलकुण्ड अभिलेख से ज्ञात होता है कि पुलकेशिन द्वितीय के बाद उसका बड़ा पुत्र राजा हुआ। इन लेखों में आदित्यवर्मा को श्रीपृथ्वीवल्लभ, महाराजाधिराज, परमेश्वर जैसी महत्वपूर्ण उपाधियाँ दी गई हैं और इन्होंने अपने बाहुबल से समस्त पृथ्वी पर आक्रमण किया ( स्वभुजबलपराक्रमान्त सकलमहीमण्डलाधिराज )। आदित्यवर्मा तथा विक्रमादित्य को कुछ विद्वान अभिन्न मानते हैं, परन्तु यह सही नहीं है। डी.सी. सरकार का मानना है कि चालुक्य राज्य के भिन्न-भिन्न प्रान्तों में विक्रमादित्य प्रथम तथा आदित्यवर्मा एक ही समय में शासन कर रहे थे। सम्भवतः यही कारण है कि गद्दी के लिए उसके दावे की उपेक्षा करने के कारण विक्रमादित्य प्रथम ने अपने लेखों में आदित्यवर्मा के नाम का उल्लेख नहीं किया है। आदित्यवर्मा के बाद उसका पुत्र अभिनवादित्य राजा हुआ था। उसे भी महाराज तथा परमेश्वर जैसी उपाधियों से नवाजा गया। परन्तु उसने कितने समय तक शासन किया यह ठीक से ज्ञात नहीं हुआ।
नेरूर तथा कोचरे के दानाभिलेखों से चन्द्रादित्य के विषय में सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। नेरूर लेख पांचवें शासन वर्ष का है। इसमें विक्रमादित्य प्रथम के बड़े भाई की प्रिय रानी विजयभट्टारिका के दान का उल्लेख किया गया है। यह दान चन्द्रादित्य के मरने के बाद दिया गया था, क्योंकि इसमें विजयभट्टारिका के शासन का उल्लेख किया गया है। कुछ विद्वानों का कहना है कि नेरूर लेख में चन्द्रादित्य के शासन के समय का उल्लेख है। फ्लींट तथा डी.सी. सरकार के अनुसार चन्द्रादित्य सामान्त शासक था। प्लीट के अनुसार चन्द्रादित्य की मृत्यु के समय उसका पुत्र अवयस्क था, इसलिए उसकी पत्नी विजयभट्टारिका ने संरक्षिका के रूप में शासन किया। लेकिन इसी समय बादामी की गददी पर अधिकार कर विक्रमादित्य प्रथम ने अपनी शक्ति सुदृढ़ कर ली। आदित्यवर्मा तथा चन्द्रादित्य को नीलकंठ शास्त्री ने विक्रमादित्य का सौतेला भाई माना है। इस प्रकार न केवल चालुक्यों के अधीनस्थ सामन्त, प्रत्युत पुलकेशी द्वितीय के अपने पुत्र भी अलग-अलग प्रान्तों में अपनी स्वतंत्रता घोषित कर बादामी की गद्दी पर अपनी-अपनी नजरें जमाये थे। परन्तु दुर्भाग्यवश इनमें से किसी को भी चालुक्य राज्य में स्थायी शान्ति प्राप्त करने में सफलता नहीं मिली। लेकिन इसका श्रेय पुलकेशी द्वितीय के पुत्र विक्रमादित्य को मिला। हम यह नहीं जानते थे कि विक्रमादित्य प्रथम को शान्ति स्थापना में कोई मदद मिली थी या नहीं, लेकिन विक्रमादित्य के छोटे भाई जयसिंह वर्मा ने निःसन्देह उन्हें पर्याप्त सहायता पहुँचायी थी। इसके परिणामस्वरूप पुरस्कार के रूप में उसे दक्षिण गुजरात का गवर्नर नियुक्त किया गया। उन्हें राज्य में शक्ति एवं एकता स्थापित करने के लिए अपने नाना दुर्विनीत से भी उल्लेखनीय सहायता प्राप्त हुई। यह घटना 655 ई. के आस-पास की है। विक्रमादित्य प्रथम के शासन ग्रहण करने से चालुक्य राज्य का अल्पकालिक अन्धकार काल समाप्त हो गया।
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